Thursday, May 18, 2017

टेक्नोलॉजी की बजाय दृढ़ संकल्प अधिक शक्तिशाली

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
कुछ समय पहले वे ओडिशा के संबलपुर की सुनसान गलियों से गुजर रहे थे। उन्हें कोई ऐसा सरकारी अधिकारी खोजना पड़ता था, जो उनकी लॉगबुक पर सील लगाकर दस्तखत करे। यदि कोई वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए
आवेदन देता है तो यह उसके नियमों का हिस्सा है। शाम के करीब सात बजे थे। अचानक चेहरा छिपाए हुए कुछ लोग उनके सामने गए, उन्हें पकड़ा और आंखों पर पट्‌टी बांधकर अज्ञात स्थान पर ले गए। वे नक्सली थे और उन्होंने सोचा कि साइकिल वाला यह आदमी सरकारी जासूस है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन्होंने नक्सलियों को लॉगबुक दिखाई और उन्हें विस्तार से बताया कि उनके बैसिक डिवाइस किस तरह काम करते हैं। उन पर भरोसा करने में नक्सलियों को सात घंटे लगे। उन्होंने फिर आंखों पर पट्‌टी बांधी और अगली सुबह 4 बजे वहीं छोड़ दिया, जहां से उनका अपहरण किया गया था। 
उत्तर प्रदेश में जब वे 140 किलोमीटर तक साइकिल चलाने के बाद सुस्ता रहे थे तो एक आदमी ने उनका जीपीएस यह सोचकर चुराने की कोशिश की कि वह सेल फोन है। चूंकि वे राज्यस्तरीय बॉडी बिल्डर थे तो उन्होंने आसानी से उस पर काबू पा लिया। लेकिन, उसके बाद से वे अपनी 111 दिनों की साइकिल यात्रा में सतर्क रहने लगे। इसमें वे 15,222 किलोमीटर की दूरी तय करके एक ही देश में बिना मदद अकेले की जाने वाली सबसे लंबी यात्रा की श्रेणी में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज कराने वाले थे। यह कहानी उस लोगों के लिए हैं, जो सोचते हैं कि ऊंचे किस्म के डिवाइस के बिना कोई विश्व रिकॉर्ड नहीं बनाया जा सकता। इस कहानी के नायक के लिए डिवाइस था उनका दृढ़ संकल्प और लगातार प्रयास करने की प्रवृत्ति। 
करीब आठ साल पहले उनकी पत्नी ने उन्हें सिंगल-स्पीड बाइक तोहफे में दी थी ताकि पहले वैलेंटाइन डे पर वे विवाह बाद बढ़ा हुआ अपना वजन कम कर सकें। उन्हें जरा भी ख्याल नहीं था कि आने-जाने के लिए हम-आप जो साधारण-सी साइकिल इस्तेमाल करते हैं, वह उनके लिए विश्व रिकॉर्ड बनाने का रास्ता खोल देगी। पहले पुणे से कन्याकुमारी तक 1,800 किलोमीटर तय करके लिम्का बुक में जगह बनाई और फिर स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि स्वरूप जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक 23 दिनों में 3,700 किमी की साइकिल यात्रा की। 
इस बीच उन्होंने 40 हजार रुपए का ऑस्ट्रेलियन जीपीएस सिस्टम अपनी यात्रा की प्रगति पर निगाह रखने के लिए लगाया। फिर रफ्तार नापने के लिए पैडल पर सेंसर लगाए और हार्ट रेट मॉनिटर भी ले लिया ताकि रिकॉर्ड दर्ज करने वाले उनकी पैडलिंग पर संदेह करें। उन्हें अहसास नहीं था कि ये डिवाइस लगाने से उन्हें विश्व रिकॉर्ड तोड़ने में मदद मिलेगी। सोलापुर के मूल निवासी और फिलहाल पुणे में रह रहे संतोष होली ने बहुत ही मशक्कत भरा 12 घंटे प्रतिदिन का कार्यक्रम तय किया और रोज औसतन 137.37 किलोमीटर की यात्रा करके पहले का रिकॉर्ड तोड़ा, जो प्रशांत एरंडे ने 141 दिनों में 14,576 किलोमीटर की यात्रा करके बनाया था। 
आमतौर पर ऐसी यात्राओं में 7 से 8 लाख रुपए खर्च आता है लेकिन, संतोष ने मात्र 1.35 लाख रुपए में ही इसे पूरा कर लिया, क्योंकि उन्होंने ज्यादा प्रोटीन वाले भोजन की बजाय सादा भोजन किया, मंदिरों, धर्मशालाओं और गुरुद्वारों में सोए ताकि पैसे की बचत हो सके। संतोष की अगली योजना स्वर्णिम चतुर्भुज (चेन्नई-कोलकाता-दिल्ली-मुंबई) को सिर्फ 15 दिन में पूरा करना है। इसका मौजूदा रिकॉर्ड 20 दिनों का है। वे यह धारणा भी गलत साबित करना चाहते हैं कि ऐसी उपलब्धियां सिर्फ हाई एंड इक्विपमेंट से ही हासिल की जा सकती हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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