Wednesday, May 17, 2017

सुप्रीम कोर्ट अपडेट: आस्था का विषय है तीन तलाक - मुस्लिम पर्सनल बोर्ड

मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने मंगलवार को तीन तलाक को आस्था का विषय बताते हुए इसकी तुलना राम के अयोध्या में जन्म लेने के विश्वास और आस्था से की। बोर्ड की ओर से दी गई कि तीन तलाक 1400 साल से चल
रही प्रथा है हम कौन होते हैं इसे गैर इस्लामिक कहने वाले। ये आस्था का विषय है। इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत नहीं लागू होगा। बोर्ड के वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर मैं ये विश्वास करता हूं कि भगवान राम अयोध्या में जन्मे थे तो ये आस्था का विषय है और इसमें संवैधानिक नैतिकता का सवाल नहीं आता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। तीन तलाक मामले पर आजकल मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। मंगलवार को सिब्बल ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की पैरवी करते हुए कहा कि इस्लाम की शुरुआत में कबीलाई व्यवस्था थी। युद्ध के बाद विधवा हुई महिलाओं को सुरक्षित और उनकी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए बहुविवाह शुरू हुआ था और उसी समय तीन तलाक भी शुरू हुआ। कोर्ट कुरान और हदीस की व्याख्या नहीं कर सकता। संसद इस पर कानून बना सकती है लेकिन कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। 
क्या निकाहनामा में जिक्र संभव: जस्टिस कुरियन जोसेफ ने पूछा कि अगर तीन तलाक अवांछनीय है तो क्या निकाहनामा में ये कहा जा सकता है कि तीन तलाक नहीं दिया जाएगा। उन्होंने ये भी पूछा कि क्या ये भी शामिल कराया जा सकता है कि किसी भी तरह का तलाक नहीं दिया जाएगा। इसका जवाब बोर्ड की ओर से वरिष्ठ वकील हतिम मुछाला ने दिया। मुछाला ने कहा कि एक साथ तीन तलाक न देने की बात निकाहनामा में शामिल की जा सकती है लेकिन तलाक देने के बाकी दो प्रकार को उसमें शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि वो पर्सनल लॉ का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि एक बार में तीन तलाक अवांछनीय है पर वैध है। इसका दुरुपयोग हो रहा है और इसके बारे में समुदाय में सुधार लाने की कोशिश हो रही है। लोगों को शिक्षित किया जा रहा है। इसमें कुछ समय लगेगा। लेकिन हम नहीं चाहते कि कोई और इसमें दखल दे।
वाट्सएप से होता है तलाक: जस्टिस कुरियन जोसेफ ने जब सिब्बल से पूछा कि क्या ई-तलाक भी होता है तो सिब्बल ने कहा कि वाट्सएप पर भी तलाक होता है।
तीन तलाक वैध: सिब्बल ने तीन तलाक को वैध बताते हुए कहा कि ये इस्लाम का हिस्सा है। पैगम्बर के अनुयायियों और इमामों ने इसे सही करार दिया है। मुस्लिमों का हनफी संप्रदाय एक बार में तीन तलाक को सही मानता है और भारत में रहने वाले 90 फीसद मुसलमान हनफी हैं।
शरीयत एक्ट पर्सनल लॉ: सिब्बल ने कहा कि शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 को कानून नहीं माना जा सकता। ये पर्सनल लॉ है और इसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता। पर्सनल लॉ, रीति-रिवाज और प्रथाओं को संविधान में संरक्षण प्राप्त है। अगर कोर्ट इसे कानून मानकर संविधान के मौलिक अधिकारों की कसौटी पर कसेगा तो फिर मुसलमानों का कोई पर्सनल लॉ नहीं रहेगा। उनका कहना था कि हंिदूुओं के पर्सनल लॉ को कानून बनने के बावजूद संरक्षण दिया गया। इसे भी उसी तरह संरक्षण दिया जाना चाहिए। सिब्बल की बहस कल यानी बुधवार को भी जारी रहेगी।
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साभार: जागरण समाचार 
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