Friday, March 17, 2017

स्वच्छ भारत का विचार कैसे साकार होगा: सीखें इनसे

एन. रघुरामन(मैनेजमेंट गुरु)
हाल ही में आधिकारिक काम से जापान गए एक भारतीय सज्जन वहां की लोकल ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। चूंकि उनके सामने की सीट खाली थी, इसलिए उन्होंने अपने दोनों पैर उस पर रख दिए, जैसा कि हमारे यहां आम
चलन है। एक जापानी बुजुर्ग ने दूर से यह देखा। वहां इसे ठीक नहीं माना जाता। उन्होंने कहा कुछ नहीं, लेकिन आकर उनके सामने बैठ गए। भारतीय यात्रऋी को यह संकेत समझ में नहीं आया कि बुजुर्ग व्यक्ति विरोध कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने अपने पैर उनसे थोड़े दूर हटा लिए, ताकि बुजुर्ग व्यक्ति आराम से बैठ सके। फिर बुजुर्ग ने यात्री के दोनों पैर उठाए और अपनी गोद में रख लिए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भारतीय व्यक्ति को काफी बुरा लगा, क्योंकि हमारे यहां हम बुजुर्गों का बहुत सम्मान करते हैं और कोशिश करते हैं कि हमारे पैर उनके शरीर के किसी भी अंग से कहीं छू जाए। इसलिए उन्होंने तुरंत अपने पैर उनकी गोद से खींचे और सामान्य यात्रियों की तरह बैठ गए। बुजुर्ग व्यक्ति मुस्कुरा दिए, पर कहा कुछ नहीं। 
बाद में जब शर्मिंदा भारतीय यात्री का मन शांत हो गया तो उन्होंने बुजुर्ग से इस गांधीगिरी का कारण पूछा। उन्होंने जवाब दिया कि रेलवे हमारे देश की संपत्ति है और हम इसका गलत इस्तेमाल होते नहीं देख सकते लेकिन, दूसरी तरफ आप हमारे देश के मेहमान हैं, इसलिए आपके प्रति हम सख्त भी नहीं हो सकते। जैसा आपके देश में होता है- मेहमान ईश्वर का रूप होता है, वैसी ही हमारी भी मान्यता है। इसलिए मैंने सोचा आपको एहसास कराने के लिए मुझे कुछ करना चाहिए। इस घटना के बाद तीन सप्ताह जापान में गुजारने वाले भारतीय यात्री का जापान, वहां की स्वच्छता, वहां के लोगों का सरकार की संपत्ति का अपना मानने की भावना देख इन बातों के प्रति उनका नज़रिया पूरी तरह बदल गया। उन्हें लगा कि इस तरह की अच्छी आदतें किसी के जीवन में बीच में ही नहीं डाली जा सकती, बल्कि बचपन से ही उसकी हर गतिविधि में स्कूल से सिखाई जा सकती हैं। जापानी लोग बाकी दुनिया की तुलना में अलग ही हैं। स्कूलों में साफ-सफाई अधिकतर बच्चे अपने हाथों से ही करते हैं, इसके लिए अलग हाउस कीपिंग स्टाफ नहीं होता, क्योंकि इससे वे चीजें का उनकी हैं, यह भावना आती है। 
एक परिचित के साथ हुई इस घटना के बाद मध्यप्रदेश के गाडरवारा के आदित्य पब्लिक स्कूल के मैनेजमेंट ने अपने यहां एक प्रयोग किया। पहले उन्होंने बच्चों के पैरेंट्स से संपर्क किया। उन्हें जापानी स्कूल का वीडियो दिखाया गया, जिसमें बच्चे और टीचर मिलकर स्कूल को साफ रखने के लिए सफाई कर रहे हैं। यह इसलिए जरूरी था, क्योंकि अधिकतर भारतीय हमेशा इस बात पर एतराज जताते हैं कि बच्चों से क्लासरूम की सफाई कराई जाए। इसके बाद टीचर्स और गैर-शिक्षक स्टाफ ने स्वच्छ स्कूल के इस लक्ष्य के लिए काम शुरू किया। बच्चे इसमें अपनी क्षमता के अनुसार काम करने लगे। इस प्रयोग का सीधा असर यह हुआ कि एक दिन टीचर्स ने सुबह आइसक्रीम कोन जैसा एक होल्डर प्राइमरी स्कूल के हर कमरे में हर टेबल पर रखा देखा। इसे वेस्ट कागज से बनाया गया था। टीचर्स को इन्हें देखकर आश्चर्य हुआ, क्योंकि कागज से बने ये कोन बहुत कमजोर थे और इसमें कुछ भी रखा नहीं था। जब बच्चों से पूछा गया कि ये क्या बनाया है तो सभी ने एक साथ बताया कि वे इन कोन का इस्तेमाल पेंसिल का कचरा एकत्र करने में करेंगे। क्योंकि वे करीब-करीब हर पीरियड में पेंसिल छीलते हैं। हाइजिन इंस्पेक्शन टीम को बाद में बच्चों के कोन के आइडिया पर आश्चर्य नहीं हुआ, बल्कि बच्चों का सफाई के प्रति यह कमिटमेंट पसंद आया। आज ये बच्चे कम कचरा फैलाते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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