Friday, February 17, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: जागरूकता बन जाती है आगे बढ़ने का औजार

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
अनभिज्ञता की कहानी: यहां भीषण गर्मी में भी कोई पंखा नहीं घूमता और केरोसीन से जलने वाले दिये के अलावा रोशनी का कोई जरिया है। उन्होंने कभी कोई टेलीविजन सीरियल नहीं देखा और उन्होंने किचन में कभी
किसी उपकरण का प्रयोग नहीं किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि उन्होंने कभी अपने मोबाइल फोन तक चार्ज नहीं किए! आज वहां 150 परिवारों के सिर्फ 400 लोग रहते हैं और आज़ादी के 70 वर्षों से इस उम्मीद के साथ जी रहे हैं कि उनके गांव में कभी बिजली के खंभे देखने को मिलेंगे। 
कुछ थोड़े से घरों में मोबाइल फोन हैं, तो उन लोगों को चार्ज करने के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है। हर साल कोई कोई परिवार गांव छोड़कर कहीं और चला जाता है, क्योंकि गांव में बिजली होने के कारण उनके बेटों को कोई लड़की देने को तैयार नहीं होता। उन 400 लोगों में से केवल एक व्यक्ति के पास सरकारी नौकरी है और वह पोस्टमैन है। देश की राजधानी से करीब 230 किलोमीटर दूर स्थित उत्तर प्रदेश के मधुपुरी के लोगों ने भी बुधवार को विधानसभा चुनाव के लिए इस उम्मीद के साथ मतदान किया कि उन्हें किसी दिन बिजली मिलेगी। मजे की बात है कि इस गांव के लोगों ने हमेशा मतदान किया है। वे कभी इसमें चूके नहीं। इसके विपरीत आज़ादी के बाद से ही उत्तर प्रदेश के खेरी जिले की मितौली तहसील के सेहरुआ गांव की महिलाओं ने कभी मतदान नहीं किया। युगों पुरानी परदा प्रथा का पूरी धार्मिकता के साथ 68 साल तक पालन किया गया। 2014 में पहली बार मतदान केंद्र पर महिलाओं की कतार दिखाई दी। अब तो आयशा हसीबुल्लाह 1,800 की आबादी के इस गांव की मुखिया हैं। मुस्लिम बहुत इस गांव ने भी बुधवार को मतदान किया। 
जागरूकताकी कहानी: उत्तरप्रदेश के मधुपुरी गांव के मतदान करने वाले रहवासियों के विपरीत पुणे से 27 किलोमीटर दूर स्थित शिवारे गांव के 2,500 ग्रामीणों ने इस साल जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया, वह भी बिल्कुल विपरीत कारण से। मधुपुरी की तरह शिवारे गांव भी आजीविका के लिए पूरी तरह खेती पर निर्भर है लेकिन, महाराष्ट्र सरकार ने बिजली के खंभे लगाने के लिए 250 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया है और वहां से हाई टेंशन वायर गुजारने की अनुमति दे दी है। अभी ग्रामीण इस फैसले के विरुद्ध लड़ ही रहे थे कि उन्हें पता चला कि पुणे रिंग रोड के लिए और 200 एकड़ जमीन ले ली जाएगी। इसके बाद अधिकारियों राजनेताओं के साथ कई बैठकें हुई, जिसका सकारात्मक नतीजा नहीं निकलने पर ग्रामीणों ने आगामी स्थानीय चुनाव में मतदान करने का निर्णय लिया। 
जागरूकतासे फायदे की कहानी : चुनावके मौसम में नेता फिर समर्थन पाने के लिए लोगों तक पहुंचने की कोशिश में लगे हैं। दुर्भाग्य से बहुत कम ही ऐसा होता है कि कोई पार्टी अपना घोषणा-पत्र बनाने के पहले लोगों से उनकी इच्छा पूछे। इस अंतर को पाटने के लिए कॉलेज के कुछ छात्रों ने पुणे के कोंडवा, हडपसर, बिबवेवाडी और कैंप में यह जानने के लिए 'जन-जनहित जन' नाम से सर्वे कराया, यह जानने के लिए कि अपने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से लोगों की अपेक्षाएं क्या हैं। इस समूह में एलएलबी के छात्र मोहम्मद सैफ के नेतृत्व में 14 युवा हैं और उन्होंने बस्तियों में जाकर लोगों की जरूरतें दर्ज करना शुरू कर दिया है ताकि चुनाव के बाद जीतने वाले प्रत्याशी को रिपोर्ट के रूप में इन्हें पेश कर उनसे कहा जा सके कि वे अपने मतदाताओं की मूलभूत जरूरतें पूरी करें। 
फंडा यह है कि यदि आप आसपास क्या हो रहा है, उसके प्रति जागरूक नहीं हैं तो अापकी या समाज की तरक्की में मदद नहीं मिलेगी। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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