Saturday, February 25, 2017

1 महीने में पेरेंट्स ने छोड़ा; अब 9 साल की हो चुकी बच्ची 4 साल से सड़क किनारे सब्जी बेचती है, ताकि मां-पापा गुजरें तो मिल सके

यांगजिऊजिया एक महीने की थी जब उसके पेरेंट्स उसे पड़ोसी के दरवाजे पर छोड़ गए थे। अभी वो 9 साल की होने वाली है। उसने कभी अपने पेरेंट्स को नहीं देखा। लेकिन रोज उन्हें याद करती है। मां-पापा को ढूंढने के लिए करीब चार साल से वो सड़क किनारे बैठकर सब्जी बेचती है। वहीं पढ़ाई भी करती है। साथ में एक बोर्ड रखती है जिसपर लिखा है- 'मां-पापा, आप कहां हो? जब आपने मुझे छोड़ा था, मैं बीमार थी।
लेकिन अब ठीक हो गई हूं। आपका इंतजार कर रही हूं। आकर मुझे साथ ले चलो। मेरे लिए यहां कहीं घर नहीं है। लेकिन हर जगह घर है भी। मैं अपना घर मिस करती हूं।' यांग हर दिन स्कूल के बाद यहां इस उम्मीद से बैठती है कि किसी दिन उसके पेरेंट्स इधर से गुजरेंगे, उसे देखेंगे और वो उनसे मिल पाएगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यांग चीन के शहर दोंगुआन के एक गांव लियान्हु में रहती है। उसे पालने वाली 70 वर्षीय हुआंग रिटायर्ड मिलिटरी डॉक्टर हैं, लेकिन गरीब हैं। अपने पति के साथ सब्जियां उगाती और बेचती हैं। हुआंग कहती हैं, '10 मई 2008 की रात मैंने घर के बाहर के बच्चे के रोने की आवाज सुनी। दरवाजा खोला तो नीचे यांग पड़ी थी। वो बुखार से तप रही थी। उसे निमोनिया था। उसके घर पर ताला लगा था। पहले मैं परेशान हुई, फिर मामला समझ गया। तब से वो मेरे पास है। उसके पेरेंट्स शायद अब इस शहर में नहीं रहते। उसे ये बात पता है। लेकिन वो उनसे मिलने की कोशिश नहीं छोड़ना चाहती। 4 साल की थी, तब से मेरे साथ सब्जियां बेचने बैठती थी। मेरे मना करने पर कहती कि बाहर रहूंगी तो शायद मां-पापा मुझे देख कर मेरे पास जाएं।' 
चौथी कक्षा में पढ़ने वाली यांग को उसके गांव के लोग माओ माओ के नाम से जानते हैं। वो हुआंग को दादी कहकर पुकारती है। यांग कहती है कि मेरी दादी बीमार रहती है। उन्हें कुछ हो गया तो मैं पढ़ाई भी नहीं कर पाऊंगी। शायद उन्हें मुझे चाइल्ड केयर होम को देना पड़े। लेकिन मुझे घर चाहिए। मां-पापा चाहिए। 
मां-पापा मेरे सपनों में साथ हैं, पर जागती हूं तो देख नहीं पाती: यांग को तो ये भी नहीं पता कि उसके पेरेंट्स दिखते कैसे हैं। लेकिन वो कहती है, 'मेरी मां कहां है? मेरे पापा कहां हैं? वो दोनों रोज मेरे सपनों में मेरे साथ होते हैं। पर जब मैं जागती हूं, उन्हें देख नहीं पाती। वो मिलेंगे तो पूछूंगी कि मैं बीमार थी तो मेरा इलाज कराने के बजाए उन्होंने मुझे छोड़ क्यों दिया।' 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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