Tuesday, December 27, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: क्यों दिव्यांग ही हमें जिंदगी में चुनौती लेना सिखाते हैं

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
दस माह की उम्र तक वह अन्य सामान्य बच्चों की तरह थी। एक दिन अपने पेरेंट्स के साथ एक सामाजिक शोभायात्रा में शामिल हुई। उसके जैसे और भी कई बच्चे इसमें शामिल हुए थे। कुछ बच्चे उससे छोटे थे, तो कुछ बड़े लेकिन, थे सब कम उम्र के ही। अचानक एक कर्कश आवाज़ ने सभी को परेशान कर दिया। पेरेंट्स के कंधों
पर सो रहे बच्चे जाग गए। फिर आवाज इतनी ज्यादा होने लगी कि पेरेंट्स भी इससे परेशान होने लगे। सारे बच्चे रोने लगे, सिवाय इस बच्ची के और तब उसके माता-पिता को चिंता होने लगी कि इतनी कर्कश आवाज में जब हमें परेशानी होने लगी है तो बच्ची इतनी शांत कैसे बनी हु़ई है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे डॉक्टर के पास पहुंचे तो बच्ची को लेकर उनके सपनों को गहरा धक्का लगा। बच्ची सुनने में पूरी तरह अक्षम थी लेकिन, पेरेंट्स ने हार नहीं मानी। बच्ची की शिक्षा आज के अन्य स्कूल जाने वाले बच्चों की तुलना में जल्दी शुरू हो गई। उसी दिन से उसे लिप रीडिंग सेशन में भेजने की शुरुआत हो गई। वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी साइन लैंग्वेज सीखे। वे उसे सामान्य स्कूल में पढ़ाने का इरादा रखते थे। वह बहुत ही कम उम्र में लिप रीडिंग सीख गई तो उसे नियमित स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजा गया। वहां उसकी खेल में रुचि और प्रतिभा सामने आई। 
वह सुनने और बोलने में अक्षम बच्चों के कई स्पोर्ट्स इवेंट में शामिल हुई। डिस्कस थ्रो और शॉट पुट में वह केरल स्टेट चैम्पियनशिप की आठ बार विजेता रही। इसके बाद तीन बार वह नेशनल चैम्पियन भी रही। खूबसूरत और मृदु व्यवहार वाली सोफिया एम जो जब 17 साल की थीं तो दालु कृष्णदास का ध्यान उन्होंने खींचा। उन्होंने उनका परिचय मॉडलिंग से कराया। 2010 में उसने लेस मैनिक्विंस मॉडल हंट 2010 में पहली बार रैम्प पर वॉक किया। यहां उन्होंने मिस कन्जीनीएलिटी का टाइटल जीता। इसके बाद उनकी यात्रा का नया सफर शुरू हुआ। उसका हमेशा से सपना था कि वह अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के साथ रैम्प पर आएं, क्योंकि वे इस तरह के कॉम्पिटिशन की हर प्रक्रिया में बेहतर थी। लेकिन वह जानती थीं कि सवाल और जवाब के राउंड में वह कमजोर थी, क्योंकि तय समय में लिखकर जवाब देना मुश्किल लग रहा था। फिर भी दीपिका से साथ रैम्प पर चलने का मौका मिला, जब वे मिस डेफ इंडिया में रनर-अप रही। इस तरह उन्होंने फैशन की दुनिया में अपना नाम बनाया। इसके बाद दूसरी बड़ी उपलब्धि 2012 में मिस फिटनेस में हासिल हुई, जिसमें वे सेकंड रनरअप रहीं। मिस डेफ वर्ल्ड में भी वे शामिल हुईं। 
22 साल की कोच्चि की इस प्रतिभाशाली लड़की का एक और पैशन है ट्रेवलिंग और उसमें भी सेल्फ ड्राइविंग करना। सोफिया केरल की पहली बधिर महिला हैं, जिन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस हासिल किया। जितने भी सक्षम लोगों ने उनके साथ कभी यात्रा की है खुद को उनकी कार में अधिक सुरक्षित माना है। असल में डिसेबिलिटी का अलग-अलग लोगों के लिए अलग मतलब है। यह सिर्फ सेहत संबंधी दिक्कत नहीं है, बल्कि जटिल मामला है जो व्यक्ति की खुद की विशिष्टताएं और जिस समाज में वो रहता है उसके चरित्र के साथ संबंधों में व्यक्त होता है। सोफिया जैसे लोगों के लिए उनकी डिसेबिलिटी उन्हें लगातार जीवन की हर बाधा से उबरने की चुनौती देती है। कोई भी सोफिया को अपने चाहे शीर्ष पर पहुंचने से रोक नहीं सकता, जो बोल और सुन नहीं सकती। वे उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो छोटी-सी बाधा पर ही हार मान लेते हैं। 
फंडा यह है कि अधिकतर दिव्यांग ही सक्षम लोगों को यह सिखाते हैं कि जब जीवन में चुनौती आए तो खुद चुनौती को स्वीकार करो। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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