Monday, December 26, 2016

आप चाहें तो प्रतिदिन ही सैंटा क्लॉज की जिंदगी जी सकते हैं; बहुत कुछ है आपके पास बांटने को

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
इस शनिवार को पूरा रायपुर एयरपोर्ट और वहां मौजूद हवाई जहाज क्रिसमस पूर्वसंध्या के मूड में थे। सजावट और माहौल रंगीन तथा खुशनुमा था। सुखद आश्चर्य था कि एयरपोर्ट पर लोग एक-दूसरे को देखकर मुस्करा रहे
थे, जो आमतौर पर खुद को अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन तक ही सीमित रखते थे। जाहिर था कि सारे लोगों पर फेस्टिव मूड हावी हो गया था। यह भावना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही हमें हमारी खोल से बाहर आने को प्रेरित कर हमें सच्चे अर्थों में मानव बनाती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हवाई जहाज में भी फॉर्मल ड्रेस में नज़र आने वाले एग्ज़ीक्यूटिव से ज्यादा तो बच्चे ही थे। शायद छुटि्टयों के कारण ऐसा हो। मैं जब अपनी विंडो सीट पर बैठ गया तो पके बालों वाला एक युगल मुस्कराता हुआ आकर शेष दो सीटों पर बैठ गया। सज्जन सिर्फ कड़क सफेद कपड़ों और सफाईदार ब्राउन पेंट के कारण ही नहीं बल्कि जिस तरह से वे दोनों पेश रहे थे उससे बहुत ज्ञानी लगते थे। जिनसे भी आंखें मिलती वे मुस्कराते, शुभकामनाएं व्यक्त करते। वे आपस में भी बहुत अच्छी अंग्रेजी बोल रहे थे। उनके व्यवहार से नफासद टपकती थी, बोलने में एक सलीका था। 
दोनों ने अमेरिका में लैंग्वेज प्रोफेसर के रूप में अपना परिचय दिया और बताया कि रिटायर होने के बाद वे अपना पूरा समय गेस्ट लेक्चर और यात्रा में बिताते हैं। मैंने मन में मोटा-सा हिसाब लगाया कि फ्लाइट में वैसे ही 20 मिनट की देरी हो गई थी। दो घंटे उड़ान के और 30 मिनट मुंबई के आसमान में मंडराते रहने के, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंबई आए हुए थे और उसी समय उनका हवाई जहाज भी वहां होना था। मैंने सोचा इस तरह मुझे बौद्धिक सूचनाअों के आदान-प्रदान के लिए तीन घंटे का अच्छा-खासा समय मिल जाएगा, जो इन दिनों दुर्लभ ही हो गया है। 
जब वे सज्जन अपने काम के बारे में बता रहे थे तो हमारी सीट के आगे बैठा 11 साल का एक लड़का 'लालालाला' गाने लगा और फिर अचानक स्वर बदलकर 'नानानाना' गाने लगा। पहले हम एक-दूसरे को देखकर मुस्कराए, लेकिन जब हवाई जहाज ने उड़ान भरी तो वह बेसुरा गाना कई लोगों को अखरने लगा। अचानक हमारी सीट के पीछे बैठा एक और लड़का किसी जुगलबंदी की तरह उसका साथ देने लगा। जब आगे वाले बच्चे ने अपना स्वर नीचा किया और पीछे वाले ने भी उसका अनुसरण किया। फिर आगे का स्वर ऊंचा हुआ तो पीछे वाले ने स्वर ऊंचा करने के साथ ताल देते हुए प्रोफेसर की सीट पर पैरों से जूता मारने लगा। आसपास के दो-तीन यात्री उन्हें हतोत्साहित करने की बजाय तालियां बजाने लगे, जिससे उन किशोरों को प्रोत्साहन मिल गया। कई बार फेस्टिव मूड में लोग कुछ खुलापन अपना लेते हैं, लेकिन उसमें निहित अभद्रता को नहीं पहचान पाते। जाहिर है मृदु व्यवहार करने वाले उस अमेरिकी दंपती को यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा, जिसे उनके देश में रूखापन माना जाता है। 
नफासती तौर-तरीकों वाले प्रोफेसर साहब ने मामला अपने हाथ में लिया। उन्होंने अागे वाले लड़के के सिर पर थपथपाकर कहा, 'बहुत अच्छा गाया, बधाई, लेकिन क्या तुम बताओगे कि इस 'लालालाला' को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?' वह लड़का उसके पालक सकते में गए। तत्काल जवाब आया कि अंग्रजी में 'लालालाला' के लिए कोई शब्द नहीं है। प्रोफेसर साहब ने अपनी संयमित आवाज में कहा, 'जिंदगी में हम जो भी करते हैं, उसके लिए अंग्रेजी में शब्द हैं और 'लालालाला' को 'वोकेबल्स' कहते हैं। अचानक लड़के की जिज्ञासा जाग गई। प्रोफेसर की सीट के पीछे बैठा लड़का दो सीट के बीच के गैप में अपना जूता फंसाने लगा। प्रोफेसर ने तत्काल जूते की लेस निकालकर उससे पूछा, 'जूते की लेस के अंत में लगी प्लास्टिक कोटिंग क्या कहलाती है?' लड़के के चेहरे से लग रहा था कि उसे कुछ पता नहीं है। उसका चेहरा एकदम खाली,निर्विकार जैसा हो गया। यह देख प्रोफेसर ने कहा, 'इसे 'एगलेट'कहते हैं।' 
सारे शोर-गुल का यह निर्णायक मोड़ था। दोनों लड़के अपनी सीट पर खड़े होकर अंग्रेजी के नए शब्द सीखने लगे। अब वे फूहड़ स्वर में गाने और अभद्र व्यवहार करने की बजाय सीखने में लग गए। अन्य यात्री भी उत्सुकता से उनका वार्तालाप सुनने लगे। तीन घंटे तेजी से गुजर गए। विमान उतरने प एक लड़के ने पूछा, 'क्या आपने सैंटा को देखा है?' प्रोफेसर ने कहा, 'हां, यह मेरेे भीतर है और आज मैंने तुम्हें 20 नए शब्द और यह चॉकलेट दिया है।' उन्होंने दोनों को टॉफियां दी और मुस्कराते हुए चले गए। मैं सराहना में ताली बजाने से रह सका। 
फंडा यह है कि जीवनके हर मोड़ पर खुद को उपयोगी बनाना, जिंदगी को रोज सैंटा क्लॉज की तरह जीने जैसा है। अपने आसपास के लोगों को कुछ कुछ देते रहना ही जीवन को सच्चे अर्थ में जीना है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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