Thursday, December 8, 2016

दो सत्य घटनाएं लाइफ मैनेजमेंट की: दूसरों की मदद करके कीजिए खुद की मदद

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: वे कई वर्षों से ये मदद कर रहे हैं और इससे फायदा भी मिल रहा है, लेकिन हाल ही में उनकी ओर ध्यान गया। जब ये 78 वर्ष के बुजुर्ग आपके पास पहुंचेंगे तो इनका लुक आपको भ्रम में डाल देगा। अगर आप किसी
बैंक के पास खड़े हों और संशय हो कि सही ढंग से फॉर्म कैसे भरना है या किस कॉलम में क्या लिखना है या आपके पास पेन नहीं हो तो वे आपके पास आएंगे और पूछेंगे, 'क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं? आपके होठों से जवाब नहीं निकलेगा, लेकिन आपकी आंखें सवाल करेंगी कि जो मुझे नहीं मालूम वह आपको कैसे मालूम होगा? उनकी आंखें समझ जाएंगी और वे आपसे कहेंगे, 'मैंने सेंट जोसेफ इंडियन हाई स्कूल में 1952 में कक्षा नौ तक पढ़ाई की है, लेकिन वह पढ़ाई आज की डिग्री के बराबर है। आपके हाथ के दस्तावेजों को देखेंगे और तुरंत फॉर्म भर देंगे। जैसे वे खुद बैंकर हों। वे कभी भी अपनी मदद के लिए कुछ भी लिखित में नहीं मांगेंगे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसके बाद वे किसी दूसरे परेशान दिख रहे ग्राहक के पास जाएंगे और अपना उसी अंदाज में परिचय देंगे, क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं।' आपका काम हो जाने के बाद आपका दिल इस बात की इजाजत नहीं देगा कि आप भिखारी जैसे दिखने वाले, लेकिन अंग्रेजी बोलने वाले इस व्यक्ति को कुछ दिए बिना घर चले जाएं। कुछ लोग उन्हें कुछ दे देते हैं, कुछ नहीं। लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ लोग उन्हें जब मदद करते देखते हैं तो रुक जाते हैं और उनकी सेवा के बदले कुछ रुपए देने की पेशकश करते हैं। इसी तरीके से वे पिछले कई सालों से अपना वजूद बनाए हुए हैं। मिलिए नवीं पास ए. डेनियल से। वे बेघर हैं और बेंगलुरू में शेषाद्रीपुरम में बैंक के बाहर असहाय खड़े लोगों के लिए उम्मीद की किरण हैं। शेषाद्रीपुरम में अधिकतर बैंकों के ऑफिस हैं। उन्होंने अपने जीवन में कभी भीख नहीं मांगी, हमेशा उनकी जरूरतें वे लोग पूरी करते रहे हैं, जो उन्हें दूसरों की मदद करते देखते हैं। 
स्टोरी 2: हममें से कई लोग इस परिस्थिति गुजरे हैं कि हमारे लैपटॉप की वारंटी एक्सपायर हो जाती है और हमारे पास इसका नवीनीकरण का समय नहीं होता। या हमारे एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर का सालाना मेंटेनेंस का कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो जाता है और हम भूल जाते हैं। हमें तब याद आता है, जब मशीन दिक्कत देने लगती है या एमएमसी कॉन्ट्रेक्टर हमें फोन करता है। हम हमेशा उम्मीद करते हैं कि कोई हमें इन छोटी-मोटी चीजों के बारे में बताता रहे ताकि हम इस पर काम कर सकें। मदद की इस जरूरत को समझते हुए मुंबई के श्रीवत्स प्राभाकर ने एक एप लॉन्च किया है 'सर्विफाई'जो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और अप्लायंसेस के लिए पर्सनल असिस्टेंट की तरह काम करेगा। यह बिल और वारंटी को क्लाउड में स्टोर रखेगा। साथ ही रिपेयर सर्विस देने वाले अधिकृत सर्विस प्रोवाइडर से भी जुड़ा रहेगा। 2015 में शुरू 'सर्विफाई' यूज़र की मदद मोबाइल, पर्सनल गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक होम अप्लायंसेस को खरीदने के बाद के अनुभवों को मैनेज करने में करता है। ये प्लेटफार्म खरीदने से पहले, खरीदने के बाद, उपयोग, इंस्टॉलेशन, मेंटेनेंस, रिपेयर और फिर बेचने की सुविधा एक ही जगह दे देता है। अभी तक छह लाख से ज्यादा लोग इस पर रजिस्टर हो चुके हैं। जब उपभोक्ता संबंधित कंपनियों को इस प्लेटफॉर्म से सर्विस फीस देता है तो कंपनी की कमाई होती है। 85 सदस्यों की इस कंपनी को उम्मीद है कि 2017 के मध्य तक वह 30 लाख लोगों की मदद में सक्षम होगी। यह बिज़नेस मॉडल काफी लाभदायक है, इसलिए बड़ी मात्रा में इनवेस्टमेंट रहा है। एंड्राइड यूजर्स एप को ऑफ लाइन एक्सेस कर सकते हैं, जबकि आईओएस यूज़र के लिए कुछ ही दिनों में यह उपलब्ध होगा। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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