Tuesday, December 6, 2016

करियर: मरीन सेक्टर में हर साल 10 लाख नौकरियां

विश्व का एक तिहाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है। हालांकि ट्रैवलिंग के लिए समुद्री रास्तों का ज्यादा प्रयोग नहीं किया जाता, लेकिन व्यापार के लिए सबसे सुगम रास्ता समुद्री मार्ग को ही माना जाता है। विश्वभर के गुड्स का लगभग 80 फीसदी ट्रांसपोर्टेशन समुद्री मार्गों के जरिए किया जाता है। भारत में भी बंदरगाहों के विकास के लिए
लगभग 150 प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। सरकार के अनुसार अगले 5 सालों में मरीन इंडस्ट्री में 40 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और 60 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। ऐसे में मरीन इंजीनयरिंग के छात्रों के लिए भी कॅरिअर की बेहतर संभावनाएं हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बंदरगाहांे के विकास के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं बनाई जा रही हैं और इससे संबंधित 150 से ज्यादा प्रोजेक्ट अभी चल रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में देश के बंदरगाहों में छोटे बंदरगाहों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। आने वाले समय में इस सेक्टर में विभिन्न क्षेत्रों में एक करोड़ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के मौके पैदा होने की संभावना है। मरीन इंजीनियरिंग भी इन क्षेत्रों में एक है। 
भारत में फिलहाल 12 बड़े और 200 छोटे बंदरगाह हैं। 2015 में इन बंदरगाहों की क्षमता 180.6 करोड़ मीट्रिक टन थी, जो 2017 में 249.3 करोड़ मीट्रिक टन हो सकती है। कार्गो कैपेसिटी बढ़ने के साथ इन बंदरगाहों पर कार्गाे ट्रैफिक भी तेजी से बढ़ रहा है। 2016 के अक्टूबर तक के आंकड़ों के मुताबिक बड़े बंदरगाहों पर कार्गो ट्रैफिक 60.6 करोड़ मीट्रिक टन था, जिसके 2017 के अंत तक 94.3 करोड़ मीट्रिक टन होने की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 तक भारत में पोर्ट ट्रैफिक 29 फीसदी की सालाना दर से बढ़ेगा। इस क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी होने से निवेश की बेहतर संभावनाएं हैं। 2001 से 2016 के बीच भारत के पोर्ट सेक्टर को करीब 1.64 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला है। बढ़ते पोर्ट सेक्टर में नए जहाजों और इनका मेंटेनेंस करने वाले ट्रेंड प्रोफेशनल की मांग बढ़ने की संभावना है। पोर्ट सेक्टर के तेज विकास के कारण मरीन इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए आने वाले समय में बेहतर अवसर हो सकते हैं। मरीन इंजीनयरिंग में नॉटिकल आर्किटेक्चर और साइंस शामिल है। मरीन इंजीनियरिंग कोर्स में जहाजों समुद्री नौकाओं को बनाना और इनका मेंटेनेंस सिखाया जाता है। जहाज के मेंटेनेंस की पूरी जिम्मेदारी मरीन इंजीनियर की होती है। वे जहाज बनाने के लिए जरूरी मशीनों के चुनाव के लिए जिम्मेदार होते हैं, जिसमें स्टीम ट्रिब्यून, गैस टरबाइन आैर इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल कंट्रोल सिस्टम आदि शामिल हैं। 
डिग्री के साथ फिटनेस भी जरूरी: मरीन इंजीनियर बनने के लिए मरीन या नॉटिकल इंजीनियरिंग में बीई या बीटेक की डिग्री जरूरी है। फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स से 12वीं करने वाले छात्र मरीन इंजीनियरिंग के बीई या बीटेक कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। बीई या बीटेक कोर्स में प्रवेश जेईई के स्कोर के आधार पर मिलता है। कुछ संस्थान खुद की परीक्षा भी आयोजित करते हैं। मरीन इंजीनयर बनने के लिए फिटनेस अच्छी होनी चाहिए। इसके बाद मास्टर डिग्री में प्रवेश ले सकते हैं। मास्टर डिग्री में प्रवेश के लिए संबंधित स्ट्रीम में बीई या बीटेक या एमएससी की डिग्री और गेट स्कोर जरूरी होता है। हालांकि यह कोर्स कराने वाले संस्थान देश में ज्यादा नहीं है। 
प्राइवेट और सरकारी दोनों सेक्टर में हैं मौके: मरीन इंजीनियर सरकारी और प्राइवेट शिपिंग कंपनियों में जॉब कर सकते हैं। नेवी, इंजन प्रोडक्शन फर्म, शिप बिल्डिंग एंड डिजाइनिंग फर्म और रिसर्च करने वाली संस्थाओं में बेहतर जॉब की संभावनाएं हैं। प्रोफेशनल विदेशी कंपनियों में भी जॉब कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ ऑयल और गैस कंपनियों में भी इनकी मांग होती है।
पैकेज भी है अच्छा: इस क्षेत्र में फ्रेशर को 25 से 30 हजार रुपए प्रति माह का सैलरी पैकेज मिल सकता है। प्राइवेट संस्थानों में यह और ज्यादा हो सकता है। मास्टर डिग्री और कुछ वर्ष के अनुभव के बाद सैलरी पैकेज 50 से 60 हजार रुपए प्रति माह तक हो सकता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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