Tuesday, November 29, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: हर दिन आपके अगले दिन को खुशनुमा बना देता है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस रविवार को मेरी मीटिंग रद्‌द होने के बाद मैं घर लौट रहा था और मुंबई के जुहू बीच पर दोपहर बाद के साढ़े तीन बजे भीड़ नहीं देखी तो कुछ वक्त लहरों के साथ बिताने का निर्णय लिया, गर्मी थी, लेकिन ज्यादा नहीं।
कार पार्क की, जूते उतारे और लहरों को महसूस करने पानी में चला गया। इस उम्र में यह करना मुझे बहुत मजेदार लगा। जैसे ही मैं उसके नजदीक गया मैंने उसे कहते सुना, 'कबड्‌डी कबड्‌डी।' वह अकेला खेल खेल रहा था, अपनी विपक्षी टीम के साथ, जिसमें लहरों के सिवाय कोई नहीं था। जब लहरें पीछे जातीं तो वह दौड़कर जाता और उन्हें छूता और जब वे पलटकर उस पर झपटतीं तो वह बचने के लिए पीछे भागता। लहरें उसके पैरों को छूने का प्रयास करतीं। लड़के की विपक्षी टीम यानी लहरों को उसे पकड़ने की कोशिश करते और लड़के को हार मानते देखना बहुत मजेदार था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पांच मिनट बाद थका हुआ, पसीने से तरबतर लड़का लौट आया। वह कुछ गेम हार गया था तो उतने ही जीता भी था। मैंने उससे पूछा कौन जीता वह या लहरें। उसने अपने दोनों हाथों की दसों उंगलियां फैलाकर कहा, 'वास्तव में मैं नहीं जानता।' मैं जानना चाहता था कि उसे किसने यह खेल सिखाया- लहरों के साथ कबड्‌डी और तत्काल जवाब भी मिल गया, 'डियर जिंदगी' मैंने अपनी भौहें ऊंची कीं क्योंकि उसकी उम्र के हिसाब से जवाब दार्शनिक किस्म का था। मुझे यह समझने में एक मिनट लगा कि वह लड़का आलिया भट्‌ट और शाहरुख खान की इस हफ्ते जारी बॉलीवुड फिल्म का जिक्र कर रहा है। मैंने उसे अपने साथ बैठने को कहा और उसके साथ कुछ देर बातें कीं। वह बोलता ही चला गया। एक बार भी उसकी बातचीत मुझे उबाऊ नहीं लगी। वह देखने में हैंडसम था, ऐसा जो उसकी उम्र के सभी लड़के दिखना चाहते हैं। उसे जिमनास्टिक का जुनून था और उसके कुछ बहुत ही अच्छे दोस्त भी थे। लेकिन वह बहुत जल्दी शोहरत चाहता था और यह भी चाहता था कि उसकी जिंदगी से गुजरने वाली हर लड़की उस पर पूरा ध्यान दें। लेकिन वह एक नाखुश युवा था, अंदर से गहराई तक विचलित और बहुत मुश्किल से ही सो पाता था। मैंने उसे डैन मिलमैन की किताब 'वे ऑफ पीसफुल वॉरियर : बुक देट चेंजेस लाइव्स'। मैंने इसे बरसों पहले पढ़ा था, जिसमें हीरो अपनी जिंदगी का अर्थ पाने के लिए संघर्ष करता है। वह पेशेवर स्तर पर तो सफल है, लेकिन फिर भी उसकी जिदंगी उसे अधूरी लगती है। इस पर बाद में फिल्म भी बनी। 
यह किताब पुरजोर तरीके से बताती है कि आपके आसपास हर कोई बताता है कि आपके लिए क्या अच्छा है। वे नहीं चाहते कि आप अपने उत्तर पाएं। वे चाहते हैं कि आप उनके उत्तरों पर भरोसा करें। एक योद्धा तो वह चीज नहीं छोड़ता, जिसे वह प्यार करता है और वह जो करता है, उसे दिल से चाहता है। जब मैं उससे बात कर रहा था तो उसकी आंखें भीग आईं। मैं कुछ देर रुखा ताकि वह अपनी सीने में भरे गुबार से मुक्त हो जाए। अचानक वह उठा और मुझे गले से लगाकर कहने लगा, 'आप ठीक 'जग' जैसे हैं।' यह फिल्म में मनोवैज्ञानिक का नाम है, जिसकी भूमिका शाहरुख खान ने निभाई है, जो आलिया को अपने दर्द से मुक्त होने में मदद करता है। मैंने उसे बताया कि मैं 'जग' नहीं 'रैग' हूं, मेरे दोस्त मुझे यही कहते हैं। यह मुझपर सही बैठता है, क्योंकि मैं भी 'रैग' (कचरा) में से छोटे मुद्‌दे निकलता हूं और उन पर कहानी लिखता हूं। 
मैं वहां से यह खुशनुमा अहसास लेकर लौटा कि मैं कुछ लोगों को लहरों के साथ खेलने लायक बना सकता हूं। मेरे लिए तो यह नया खेल था ही। वह भी खुश होकर लौटा, यह सोचते हुए की 'रील लाइफ' में 'जग' हैं तो रीयल लाइफ में भी वे मौजूद हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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