Tuesday, November 8, 2016

दस साल से अधिक की तैयारी फिर भी जीएसटी में हैं ये पांच कमियां

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) पर एक दशक से अधिक समय से जारी रस्साकशी के बाद अब जीएसटी काउंसिल तेजी से कदम बढ़ा रही है। जो प्रारूप सामने रहा है, उसमें सरलता के साथ कुछ कमियां भी विशेषज्ञों को दिख रही हैं। हालांकि केंद्र सरकार का दावा महंगाई कम होने और जीडीपी बढ़ने का है। जानकार कहते हैं कि
टैक्स स्लैब अधिक होने से भ्रम की स्थिति रह सकती है। इससे कानूनी मामले बढ़ने की आशंका भी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक नियंत्रण के निर्धारण पर भी निर्णय नहीं हो पाया है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, इसकी गारंटी नहीं है। 
पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा इस मामले में कहते हैं जीएसटी सिस्टम को लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य था, अप्रत्यक्ष करों की प्रणाली की जटिलता कम करना। लोगों को टैक्स देने में सुविधा हो जाए। समझौते से भरा हुआ जीएसटी बहुत अच्छा नहीं होगा। अगर तीन से अधिक कर दर होती हैं, तो संघीय कर प्रणाली पर आघात पहुंचेगा। बहुत सारी वस्तुओं को बाहर रखने से भी परेशानी बढ़ती है। इसलिए जीएसटी आगे चलकर कैसे काम करेगा इस पर सवाल उठता है। मुझे लगता है कि अधिक से अधिक तीन टैक्स रेट होने चाहिए, ज्यादा टैक्स दरें करने से टैक्स देने वालों के मन में यह प्रवृत्ति रहती है कि हम पांच फीसदी में ही क्यों रहें 12 या अधिक दरों पर क्यों जाएं? फिर भी मुझे उम्मीद है कि 1 अप्रैल 2017 से जीएसटी लागू हो जाएगा। मैं भी यही चाहता हूं। 
अप्रत्यक्ष करों के विशेषज्ञ कंपनी सेक्रेटरी वीएस दाते के मुताबिक केंद्र सरकार का जीएसटी ढांचा 80 फीसदी सही दिशा में है। कर चोरी में कमी आएगी। लग्ज़री गुड्स और डेली यूज प्रोडक्ट पर एक ही कर दर नहीं हो सकती। लेकिन कुछ कमी है जो जीएसटी के सिद्धांत के खिलाफ है। पेट्रोलियम प्रोडक्ट और शराब पर राज्य अपने हिसाब से कर लगा सकेंगे, इससे देशभर में एक जैसे कर की बात भी नहीं रहेगी। 

इन कमियाें को करना होगा दूर:
  • एक देश-एक कर भी संभव नहीं हो पा रहा हैपेट्रोलियम प्रोडक्ट और शराब आदि पर कर जीएसटी से बाहर रखे गए हैं। इन पर राज्य सरकारों को कर लगाने का अधिकार होगा। ऐसे में राज्य अलग-अलग कर दर तय करेंगे। कर एकरूपता नहीं आएगी। इससे 'एक कर-एक देश' की मूल अवधारणा भी खत्म हो जाएगी। साथ ही एक दर हाेने के कारण भी एक ही प्रोडक्ट की कीमतें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग बनी रहेंगी। जीएसटी में राज्यों को कुछ अधिकार भी दिए जाएंगे। उनके पालन में राज्यों में अंतर सकता है। 
  • एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल देंगे केंद्र और राज्यजीएसटी में केंद्र और राज्य की बराबर भागीदारी है। ऐसे में प्रशासन से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि हम हॉरिजेंटल या वर्टिकल आधार पर तय करने पर विचार कर रहे हैं। टर्नओवर के आधार पर व्यापारियों को बांटेंगे और 1.5 करोड़ टर्नओवर वाले व्यापारियों के मामले अगर राज्य देखेंगे तो केंद्र उन व्यापारियों के यहां अधिक कारोबार के नाम पर रेड आदि कर सकती है। वहीं गुड्स या सर्विस के आधार पर बंटवारा होता है तो भी जटिलता रहेगी।
  • टैक्स स्लैब अधिक होने से कानूनी मामले बढ़ेंगेजीएसटी काउंसिल में चार टैक्स स्लैब 5, 12, 18 और 28% पर सहमति बनी है। रिटर्न भरते समय टैक्स फ्री वस्तुओं और सेवाओं के लिए स्लैब अलग से होगा। पेट्रोल, शराब जीएसटी से बाहर हैं। इनके लिए अलग कर दर होगी। सोने पर अलग टैक्स होगा। यह दो फीसदी हो सकती है। आईजीजीएसटी के लिए अलग दर होगी। अधिक दरों के कारण कारोबारियों की कोशिश होगी कि उनका उत्पाद या सेवा विशेष कम दर के दायरे में आए। भ्रम की स्थिति बनेगी। साथ ही कानूनी मामले बढ़ने की आशंका भी रहेगी।
कर दाताओं को भरने होंगे 1 वर्ष में 61 रिटर्न: अभी ज्यादातर राज्यों में वैल्यू एडेड टैक्स, सर्विस टैक्स या एक्साइज ड्यूटी में अधिकतम तिमाही रिटर्न भरना पड़ता है। लेकिन जीएसटी के प्रस्तावित प्रावधानों के मुताबिक सेल, परचेज सहित 3 रिटर्न प्रति माह व्यापारी को भरने होंगे। यानी व्यापारियों को करीब 37 रिटर्न 1 वर्ष में भरने होंगे। अभी इनकी संख्या करीब 16 है। टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) और टीसीएस (टैक्स कलेक्शन एट सोर्स) को मिला लें तो 1 वर्ष में 61 रिटर्न होंगे। इससे ज्यादा रिकॉर्ड रखने होंगे। ऑफिस खर्च बढ़ेगा।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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