Monday, November 14, 2016

बच्चों को थॉट लीडर बनने के लिए चिंतन की आजादी और मौका दें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी वन 1: ग्यारह वर्षीय अन्विता तेलंग पुणे के बालेवाड़ी स्थित विब्जॉर हाईस्कूल की छठी कक्षा की छात्रा है। इसी वर्ष 3 सितंबर को उसकी मां अर्पणा को अपनी सहेली से चर्चा के दौरान 'डूडल4गूगल' स्पर्द्धा का पता
चला, जिसे टेक्नोलॉजी की बहुराष्ट्रीय दिग्गज कंपनी गूगल ने आयोजित किया था। स्पर्द्धा अलग-अलग आयु वर्गों के लिए उनकी उम्र संबंधी थीम पर थी। अन्विता की ग्रेड 4-6 के लिए कंपनी ने थीम दी थी, 'यदि मैं किसी को कुछ सिखा सकूं तो यह… होगा।' जैसे ही मां ने बेटी को थीम बताई अन्विता ने कहा, 'वे सिखाएंगी और ऐसी दुनिया की उम्मीद रखेंगी, जहां लोग समस्या पर चिंता करने और हमेशा शिकायतें करते रहने की बजाय, अपने फुर्सत के वक्त का पूरा आनंद लेंगे।' यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। स्वभाव से ही अन्विता ऐसी है कि उसे कहानियां पढ़ना और अमूर्त विचारों को स्केच पेंटिंग में उतारना बहुत पसंद है। वह कला की जिज्ञासु छात्रा भी है और वस्तुओं आकृतियों के रेखाचित्र बनाना उसे खासतौर पर पसंद है। इस आधुनिक और प्रतियोगी युग में वह बड़े विचारों वाली बहुत ही शांत छात्रा हैं। इसीलिए मां से थीम सुनने के बाद उसने अपनी राय जाहिर की और परीक्षा की तैयारी में जुट गई, क्योंकि उसे एक ही वक्त में कई चीजें करना पसंद नहीं था। बचपन से ही वह ऐसी लड़की रही है, जो एक काम व्यवस्थित रूप से करने के लिए अपने दिमाग को अधिक जगह देने की मांग करती रही है और इसीलिए एक साथ कई काम करने यानी मल्टी टास्किंग से वह दूर ही रही है। वैसे भी अब दौर मल्टी टास्किंग से लौटकर एक ही काम पर ध्यान देने का है। शायद यह नई पीढ़ी की सोच से आया परिवर्तन है। परीक्षा के बाद अन्विता ने काफी वक्त लगाया और अपनी प्रविष्टि दे दी, जिसका शीर्षक था,'हर क्षण का आनंद लीजिए।' उसमें जमीन, पानी और हवा तथा इन तीन मूलभूत तत्वों के साथ जुड़ी स्वतंत्र-चेतना की भावना को व्यक्त किया गया था। वह तनावमुक्त जीवन और उन चीजों के बारे में सोचने लगी, जिससे उसे खुशी मिलती थी। उसने अपनी प्रविष्टि में वे सारी चीजें जोड़ दीं, जो उसे खुशी देती हैं जैसे पतंग, गुब्बारे, समुद्र, पेड़, पक्षी और समुद्री जीवन, जिन्हें उसने अपनी कलाकृति में स्थान दिया। उसकी सोच एकदम स्पष्ट थी कि दी गई थीम पर वह अद्वितीय कलाकृति भेजना चाहती हैं, लेकिन उसके पीछे कहीं भी जीतने का दबाव या होड़ में होने की भावना नहीं होगी। इनोवेटिव थिंकिंग और स्वतंत्र चिंतन से ही ऐसी सोच और आत्मविश्वास पैदा होता है। 
स्पर्द्धा के लिए भारत के 50 से ज्यादा शहरों से लाखों प्रविष्टियां आईं। कला की गुणवत्ता, रचनात्मकता और थीम को व्यक्त करने की क्षमता के आधार पर भेजी गई कलाकृतियों का मूल्यांकन किया गया। इसमें डूडल के प्रति भागीदार के अनूठेपन को सर्वाधिक महत्व दिया गया। इस सोमवार को वह डूडल4गूगल स्पर्द्धा की राष्ट्रीय विजेता घोषित हुए है और विजयी डूडल गूगल की आधिकारिक वेबसाइट पर आज 14 नवंबर को प्रदर्शित की जाएगी, जिस दिन बाल दिवस मनाया जाता है। जब आप यह पढ़ रहे होंगे तो उनकी कलाकृति गूगल की आधाकारिक वेबसाइड पर अपलोड कर दी गई होगी। यह अलग सोच का सकारात्मक परिणाम है। 

स्टोरी 2: शुभेंदु कुमार साहू 14 साल का है और ओडिशा के गंजम जिले के सोमापुर प्रोजेक्ट अपर प्रायमरी स्कूल का छात्र है। बाल दिवस पर वह राष्ट्रपति भवन में होगा, जहां राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उसे असाधारण उपलब्धि के लिए नेशनल चाइल्ड अवॉर्ड से सम्मानित करेंगे। साहू हमेशा से ऐसी कई गतिविधियों में भाग लेता रहा है, जो हमेशा उसके जिले, राज्य और देश के बड़े मुद्‌दों से संबंधित होती हैं। उसके पिछले साल के साइंस प्रोजेक्ट का शीर्षक था, 'किसानों के लिए उपहार', इनोवेटिव प्रोजेक्ट था, जिसमें एक ऐसा डिवाइस डिज़ाइन किया था, जो किसान को खेती की हर गतिविधि में मदद करेगा- बोवनी, जुताई, कीटनाशकों का छिड़काव, कटाई और धान की फसल की प्रोसेसिंग। अन्विता की तरह उसे भी सोमवार को प्रतिष्ठित सम्मान के लिए चुने जाने का समाचार मिला। यह इनोवेटिव सोच तो है, लेकिन दोनों बच्चों की सोच का दायरा बहुत व्यापक है। जहां अन्विता की सोच के दायरे में पूरी धरती का पर्यावरण आता है तो शुभेंदु की सोच में अपने आसास के सरोकारों से गहरा रिश्ता दिखाई देता है। दोनों बच्चे इसलिए अनूठा कर पाए, क्योंकि उनकी सोच पर कोई दबाव नहीं था और उन्हें मौका दिया गया। 
फंडा यह है कि बच्चों को मर्जी के मुताबिक करने की स्वतंत्रता तो उनके थॉट लीडर बनने की गुंजाइश बहुत ज्यादा होगी, क्योंकि दुनिया को देखने के उनके दृष्टिकोण से हम अनजान होते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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