Sunday, November 27, 2016

अद्वैत: पुणे का ये छह साल का आल राउंडर पहुंच गया एवरेस्ट बेस कैंप, जानिए पूरी सक्सेस स्टोरी

पुणे का अद्वैत जैसे अपने नाम को साबित कर रहा है। वह कई हुनर में महारत रखता है। सात भाषाएं जानता है। कई खेलों का अच्छा खिलाड़ी और तैराक है। मैराथन भी दौड़ता है। संगीत के कई वाद्य बजाता है। लेकिन अब तो सेंट मैरी स्कूल के क्लास वन के इस स्टूडेंट ने वो कर दिया जो इस उम्र के बच्चे के लिए असंभव लगता
है। अभी अद्वैत के चर्चा में आने का कारण है, उसका एवरेस्ट बेस कैंप की दुरूह चढ़ाई पूरी करना। वह भी मात्र छह साल दस माह की उम्र में, कड़ाके की ठंड में। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इतनी कम उम्र में ठंड के मौसम में ऐसा करने वाला वह भारत का पहला बच्चा है। चढ़ाई पूरी करने में उसे 12 दिन का समय लगा। 3 नवंबर को अद्वैत भरतिया ने 17,593 फीट की ऊंचाई पर बेस कैंप को छू लिया। 
अद्वैत की मम्मी पायल भी ट्रेकर हैं। पहले उन्होंने अकेले ही इस ट्रेकिंग अभियान पर जाने का निश्चय किया था। लेकिन जब अद्वैत को पता चला तो उसने कहा कि मैं भी चलूंगा। मम्मी ने उसे समझाया कि यह संभव नहीं है। मुश्किल चढ़ाई है। लेकिन अद्वैत नहीं माना। आखिर पायल ने कहा कि चलना है तो पहले इसके लिए ट्रेनिंग करनी होगी। ट्रेनिंग थी- रोज अपने चार मंजिला घर की सीढ़ियां 25 बार चढ़ना। यानी सौ मंजिल रोज चढ़ना। सख्त ट्रेनिंग के बाद मम्मी और बेटे की ये यात्रा नेपाल के लुक्ला गांव से शुरू हुई। यह गांव एवरेस्ट वैली में 8900 फीट की ऊंचाई पर बसा है। लेकिन पायल को कुछ डर था, इसलिए उन्होंने नेपाल में रहने वाली अपनी एक फ्रेंड से कहकर ऐसा इंतजाम कर लिया था कि अगर चढ़ाई के दौरान कोई दिक्कत आई तो 1 घंटे में हेलिकॉप्टर पहुंच जाएगा। चढ़ाई शुरू हुई तो आगे बढ़ते हुए रास्ते में दूध कोसी नदी, देवदार के पेड़ों के सुंदर जंगल और फिर बर्फ की चोटियां पीछे छूटती गईं। 
पहाड़ों की थकान, कम होती ऑक्सीजन, शून्य से भी नीचे पहुंचता पारा तो बड़ों को भी पस्त कर देता है। कई बार तो तापमान मायनस 8 से 12 डिग्री तक पहुंच जाता। पायल बताती हैं, अद्वैत को सांस लेने में मुश्किल होने लगी थी। लेकिन वह इसका उपाय ठीक से समझ नहीं पा रहा था। हम बड़े जानते हैं कि चढ़ाई के समय नाक से सांस लेना चाहिए और मुंह से बाहर लाना चाहिए। लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा था। रात के समय वह काफी थकावट महसूस करता, लेकिन फिर भी शांत बना रहता। 
वह उठकर बैठ जाता और गहरी सांसे लेता। रात के समय उसे बहुत प्यास भी लगती। इन सब के बावजूद बुलंद हौसलों वाला अद्वैत कहता है कि अगली बार तंजानिया का माउंट किलिमंजारो पर चढ़ना चहता हूं। पायल बताती हैं वहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए हो सकता है कि 2017 -18 में जाएं। 
दरअसल अद्वैत में भरपूर ऊर्जा है, जो उसके कामों से जाहिर भी होती है। सुबह 7.30 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक वह स्कूल में रहता है। वह फुटबॉल, क्रिकेट खेलता है। मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ले रहा है। तैराकी में उसे बटर फ्लाई और फ्री स्ट्रोक पसंद है। पायल बताती हैं, जिस दिन स्वीमिंग नहीं करता उसे नींद नहीं आती। पुणे इंटरनेशनल मैराथन में वो पहली बार तब दौड़ा था, जब उसकी उम्र तीन साल से कम थी। तब भी पांच किलोमीटर की दौड़ पूरी की थी। तब से हर साल वो इसमें शामिल होता है। संगीत का वो रोज आधा घंटा रियाज करता है। वायलिन, पियानो और तबला बजाता है। वायलिन में ग्रेड थ्री का कोर्स सुजुकी स्कूल जापान से कर रहा है। पियानो बजाने का सर्टिफिकेट कोर्स उसने ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ लंदन से किया। रॉयल स्कूल ऑफ म्यूजिक लंदन और इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में वो परफार्म भी कर चुका है। मराठी, हिन्दी, स्पेनिश, जर्मन और मंडेरियन सहित सात भाषाएं उसे आती हैं। पायल बताती हैं कि अद्वैत टीवी नहीं देखता। खास बात यह है कि जन्म से ही उसने शकर नहीं खाई है। नेचुरल शुगर से ही जरूरत की पूर्ति होती है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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