Sunday, October 16, 2016

अच्छे कर्म न्यायोचित होते हैं और अनियोजित रूप से तत्काल होते हैं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
चौदह अक्टूबर को केरल में उतरने के बाद शाम मैंने कथकली कलाकार के साथ बिताई, जिसने अपने राज्य की वास्तविक कथा नाट्य रूप में प्रस्तुत की, जिसमें बोला गया कोई शब्द नहीं था। अखिलेश भूखा है और केरल के मलप्पुरम के होटल सबरीना में आता है। जब वह कुर्सी पर बैठकर डिनर प्लेट का ऑर्डर दे रहा होता है तो उसे
खिड़की के बाहर छोटी-छोटी आंखों की दो जोड़ियां नज़र आईं, जो परोसे जा रहे भोजन को बड़ी हसरतों से देख रही थीं। उसने इशारे से उस छोटे बालक को भीतर आने को कहा। बालक ने इशारे से बताया कि काउंटर पर बैठा आदमी उसे भीतर घुसने नहीं देगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अखिलेश ने फिर इशारा किया कि चिंता मत करो, उसे बताओ कि मैंने बुलाया है। फिर उस लड़के ने एक और हाथ ऊंचा किया, जो उसकी छोटी बहन का था। आंखों से ही उसने अखिलेश से उसे भी भीतर लाने की इजाजत मांगी और अखिलेश ने आंखों के इशारे से ही सहमति दी। 
काउंटर पर बैठे व्यक्ति को अखिलेश का हवाला देकर दोनों भीतर आए। इसके पहले काउंटर वाले व्यक्ति ने अखिलेश की ओर पुष्टि करने के लिए देखा और इशारा पाकर दोनों को भीतर आने दिया। दोनों को सामने बैठाकर अखिलेश ने हाथ के इशारों से ही उनसे पूछा कि वे क्या खाना चाहेंगे? उस बच्ची के लिए परिवार की मुखिया की तरह लगने वाले लड़के ने बिना एक शब्द बोले अखिलेश के सामने रखी थाली की अोर इशारा किया, जिसका मतलब था कि वे दोनों भी वही खाना चाहेंगे। अखिलेश हाथ उठाकर वैटर को बुलाता है और इशारे से ही दो और थालियां लाने को कहता है। वैटर मशीन की तरह छलांग लगाकर किचन में पहुंच जाता है और दो थालियां लेकर लौटता है। वैटर के आने के पहले अखिलेश अपनी थाली बच्ची के सामने सरकाता है, लेकिन बच्ची तब तक लेने से इनकार कर देती है, जब तक कि उसके भाई को भी थाली नहीं मिल जाती। कुछ ही पलों में दोनों थालियां गईं। वह पहली थाली अखिलेश के सामने रखता है, जो वह बालक के सामने सरकाता है और फिर वह वैटर से तीसरी थाली स्वीकार करता है। 
तीनों थालियां अपनी जगह पहुंचते ही वह बालक अपना रोमांच छिपा नहीं सका। अखिलेश की ओर इजाजत के लिए निगाह डालते ही उसे अनुमति मिल गई। लड़का बच्ची को देखता है अौर उसे आंखों से ही भोजन शुरू करने को कहता है। लेकिन इसके पहले कि बालक का हाथ भोजन तक पहुंचता, उसकी बहन उसका हाथ थाम लेती है और बालक जैसे तुरंत अपनी बहन के निर्देश को समझ लेता है और वह उसके साथ हाथ धोने के लिए उठ जाता है। लौटने के बाद दोनों कुछ देर प्रार्थना करते हैं और फिर बड़ी शांति से सामने रखा भोजन समाप्त करते हैं। दोनों ने एक बार भी अखिलेश की ओर नहीं देखा, जो उन्हें उत्सुकता से एकटक देख रहा था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराए। भोजन होने के बाद वे उठे, अखिलेश की ओर देखा और आंखों से धन्यवाद दिया, हाथ धोए और चले गए। अखिलेश का पेट तो शायद वैसे ही भर गया था, क्योंकि उसने तब तक अपने भोजन को छुआ तक नहीं था। 
उनके जाने के बाद वह अपना भोजन करता है और दूसरी बार कुछ भी लेने से इनकार कर देता है। वह वेटर को तीनों का बिल लाने के लिए कहकर हाथ धोने उठता है। जब वह हाथ धोने के बाद टेबल पर लौटा, बिल देखा और उसकी आंखों से आंसू बह निकले, जिन्हें उसने इतनी देर से रोककर रखा था। बिल में कोई राशि नहीं लिखी थी, बल्कि उसके लिए संदेश था, 'हमारे यहां ऐसी कोई मशीन नहीं है, जो मानवता के बिल का हिसाब बता पाए। भगवान आपका भला करे।' यह सच्ची घटना इस जनवरी में घटी और दुबई में सीनियर टेक्निकल सेल्स इंजीनियर के रूप में काम करने वाले अखिलेश कुमार छुटि्टयों पर केरल आए हुए थे। पहली बार यह कहानी मलयालम में प्रकाशित हुई, फिर वह उनके फेसबुक पेज पर पहुंची और फिर कुछ पत्रिकाओं से होती हुई यह कहानी इतनी वायरल हुई कि उसने नाट्य का रूप ले लिया। 
फंडा यह है कि अच्छे कर्म न्यायोचित होते हैं और ज्यादातर अनियोजित, तात्कालिक रूप से होते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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