Wednesday, October 5, 2016

कचरा हमारा दुश्मन भी है और 'अवसर' भी

बदलाव के लिए अलग तरह का विषय लेते हुए आइए देश के चुने हुए शहरों में स्वच्छता प्रबंधन पर गौर करें। पुणे: इस मंगलवार उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती को पुणे के निकट केंद्रीय जल विद्युत शोध केंद्र के शताब्दी समारोह में शामिल होना था। स्थानीय अधिकारियों ने सड़क की दोनों
तरफ हरे पर्दे लगाकर कचरे के ढेर छिपा दिए। फिर स्वच्छ भारत अभियान के साइनबोर्ड हटाने की बारी थी। इसमें स्वच्छता बनाए रखने का आह्वान किया गया था। 
अहमदाबाद: इस महानगर में रोगाणुओं से फैलने वाली बीमारियों ने कहर बरपा रखा है। 1 जनवरी 2016 से 24 सितंबर 2016 तक डेंगू के केवल 722 मामले सामने आए थे, लेकिन 1 अक्टूबर 2016 को खत्म हुए एक हफ्ते में ही यह संख्या 941 तक पहुंच गई। पिछले आठ दिनों में स्थानीय स्वशासन संस्था ने चिकनगुनिया के 11, फेलिसिपेरम के 52 और मलेरिया के 300 मामले दर्ज किए हैं। पेचिश के मामले पिछले एक हफ्ते में 28 से बढ़कर 363 हो गए, जबकि पीलिया के मामले एक माह में 190 से बढ़कर 234 हो गए। 
बेंगलुरू: सिर्फ यह भारतीय सिलिकॉन सिटी कहलाने वाला शहर ही बुरी तरह प्रभावित नहीं है बल्कि पूरे कर्नाटक राज्य में सितंबर माह के अंत तक देश में चिकनगुनिया के सर्वाधिक संदिग्ध मामले दर्ज किए गए हैं। मलेरिया और फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के उपनिदेशक बीजी प्रकाश कुमार ने माना कि संक्रामक रोगों को काबू करने में काफी समस्याएं हैं। इसके लिए उन्होंने बारिश के िदनों में ठोस कचरे को ठिकानेे लगाने का प्रबंध होने को जिम्मेदार ठहराया। यही डेंगू चिकनगुनिया के मामलों की बड़ी संख्या का भी कारण है। 
मुंबई: इन आंकड़ों से तो देश की औद्योगिक वित्तीय राजधानी को शर्म आनी चाहिए। डेंगू के जो मामले 2011-12 में 1,879 थे वे 2015-16 तक बढ़कर 15,244 तक पहुंच गए। इसी अवधि में डेंगू से होने वाली मौतों की संख्या 62 से 126 तक पहुंच गई। दादर में प्रसिद्ध सिद्धी विनायक मंदिर के पास रहने वाले उच्च-मध्यवर्ग के 60 लोग प्रदूषित जल के कारण लिवर नाकाम होने के जानलेवा खतरे का सामना कर रहे हैं। अधिकारी बारिश का मौसम लंबा खिंचने को दोष दे रहे हैं, जो मंगलवार को भी नहीं थमी। 
नई दिल्ली: देश की राजधानी के बारे में तो जितना कम बोला जाए उतना ही बेहतर है। एक ही उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि महानगर किस संकट से गुजर रहा है। सोमवार शाम को मैंने डॉ. दिनेश जोशी को ठीक 5.45 बजे अपनी पूर्वी दिल्ली के पतपड़गंज स्थित घनी आबादी वाले मंडावली स्थित डिस्पेंसरी में देखा और उनके पहुंचने के पहले ही वहां मरीजों की लंबी सर्पाकार कतार लगी थी। ये डॉक्टर साहब इलाके के लोगों के लिए ईश्वर की तरह हैं। वे तब तक काम करते हैं, जब तक कि अंतिम मरीज की जांच नहीं कर लेते। तब तक आधी रात के बाद 1:30 बज चुके होते हैं। 
अवसर: मजे की बाद है इन शहरों को स्वच्छता के लिए कुछ अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। ठोस कचरे का प्रबंधन ही ऐसी दयनीय स्थिति के लिए दोषी है। भारतीय समुदाय के रूप में कचरा निष्पादन में हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। स्वच्छता के बोध का यह अभाव ही कॅरिअर और बिज़नेस का अवसर है। हर स्वशासन संस्था ऐसी किसी एजेंसी की तलाश में है, जो कचरा इकट्‌ठा करे, उसे प्रोसेस करे और विशाल ढेर को सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगा दे। जब तक मानव जाति जिंदा है, यह बिज़नेस फलता-फूलता जाएगा। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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