Thursday, October 6, 2016

बात क़ानून की: एफआईआर और आपके अधिकार

मनोज कुमार (संस्थापक हम्मूराबी एंड सोलोमन लॉ फर्म, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट)
हाल ही में एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट एवं दिल्ली हाईकोर्ट ने दो अहम फैसले सुनाए हैं। इन फैसलों में किसी भी मामले के आरोपियों को प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति तत्काल उपलब्ध कराने
का आदेश दिया गया है। साथ ही इसे वेबसाइट पर 24 घंटे में अपलोड करने के निर्देश दिए हैं। 
प्रथम सूचनारिपोर्ट के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय एवं दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दो अहम फैसले सुनाए हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। आपराधिक मामलों में जो लोग अभियुक्त माने जाते है उनको अधिकार है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट उन्हें तत्काल उपलब्ध कराई जाए। ऐसा करने पर अभियुक्तों को सूचना के अधिकार से वंचित माना जाएगा। 
उच्चतम न्यायालय ने अपने इस अहम फैसले में यह निर्देश दिया है कि हर प्रथम सूचना रिपोर्ट को पंजीकरण के 24 घंटे के अंदर आरक्षी विभाग की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए। ऐसा करने से अभियुक्तों को प्रथम सूचना की जानकारी तत्काल मिल पाएगी तथा वह अपने मानव अधिकार और कानून के अनुसार कानूनी प्रक्रिया में सहयोग दे पाएंगे एवं अपने अधिकारों का बचाव कर पाएंगे। दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पुलिस के काम में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है। 
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले के माध्यम से निर्देश दिया है कि किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता पर अंकुश लगने की संभावना हो तो फौजदारी कानून एवं पुलिस के कार्य में पारदर्शिता होनी चाहिए। हर नागरिक के पास पूरी सूचना होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में हर नागरिक को अपनी सभी शिकायतों का निवारण कराने का हक़ है जो पूरी सूचना के बिना संभव नहीं होता। 
न्यायालय ने इस फैसले से कुछ संवेदनशील मामलों को बाहर रखा है। जैसे- देश विद्रोह, बाल शोषण, यौन शोषण एवं आतंक से जुड़े अपराध। इन संवेदनशील मामलों से जुड़ी प्रथम सूचना रिपोर्ट को वेबसाइट पर डालना अनिवार्य नहीं होगा क्योंकि राष्ट्र हित में इन्हें गुप्त रखना आवश्यक हो सकता है। इस विषय पर आरक्षी विभाग के उप अधीक्षक, जिला मजिस्ट्रेट या उनके ऊपर के पदाधिकारी फैसला ले सकते हैं कि कौनसा मामला संवेदनशील हो सकता है। 
जिन क्षेत्रों में इंटरनेट की उपलब्धता सीमित है, उन क्षेत्रों में प्रथम सूचना रिपोर्ट अपलोड करने की समय सीमा 48 घंटे होगी या अन्य क्षेत्रों में अत्यधिक 72 घंटे होगी। 
इसी से जुड़े एक और अहम फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट इलेक्ट्रॉनिक रूप में भी मजिस्ट्रेट को भेजी जा सकती है। इस फैसले से केवल अभियुक्त को, बल्कि मजिस्ट्रेट को भी तत्काल हर प्रथम सूचना रिपोर्ट उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। 
दो न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने यह अहम फैसला लेते हुए कहा है कि पुलिस के पास अब संचार के इलेक्ट्रॉनिक तरीके उपलब्ध हैं। इसलिए इस सुविधा का पुलिस को उपयोग करना चाहिए। इससे अदालती मजिस्ट्रेट को प्रथम सूचना रिपोर्ट तत्काल मिल सके और मजिस्ट्रेट उस मामले से जुड़े अपने कार्य प्रभावी रूप से कर सकें। जांच एजेंसियों को यह चाहिए कि प्रथम सूचना रिपोर्ट अदालती मजिस्ट्रेट को तत्काल भेजकर अदालत के मूल्यवान समय की बचत करें एव नागरिकों के मूल अधिकार की रक्षा करें। 
दोनों ऐतिहासिक फैसले यह दर्शाते हैं कि प्रथम सूचना रिपोर्ट तत्काल नागरिकों को एवं अदालती मजिस्ट्रेटों को उपलब्ध होने की वजह से पुलिस एवं जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर सवाल उठते रहे हैं। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी पाई गई है। इन फैसलों से फौजदारी कानून में नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने में फायदा मिलेगा। 
हालांकि इन फैसलों का कार्यान्वयन करने में सरकार के समक्ष कई तरह की कठिनाइयां सकती हैं। इसमें तकनीकी तत्परता एवं तकनीकी प्रशिक्षण मिलना महत्वपूर्ण है। हर राज्य की सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एक पुलिस स्टेशन संचार प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक मोड से सज्जित हो तथा आरक्षी अधिकारियों को तकनीकी प्रशिक्षण मिले एवं पुलिस स्टेशन हर समय तकनीकी रूप में अपडेट हो। जो भी कठिनाइयां हो, यह पारदर्शिता एवं नागरिक अधिकर को सुरक्षित रखने में एक अहम कदम होगा। 
फैक्ट यदिथाना परभारी एफआईआर दर्ज करने से मना करता है तो उक्त सूचना को रजिस्टर्ड डाक द्वारा क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को भेजा जा सकता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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