Thursday, October 6, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: दान को जिंदगी भर का शाश्वत उत्सव बनाइए

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
इस साल 14 अक्टूबर को मैं केरल के कोच्चि की हवाई पट्‌टी पर उतरूंगा, हफ्तेभर की सड़क यात्रा के लिए। पहुंचने के तुरंत बाद मैं स्थानीय रेस्तरां 'पाप्पडवडा,' जिसे स्थानीय केरली व्यंजनों अप्पम से लेकर वेज-नान
वेज करी और बेशक 'पाप्पडवडा' में महारत हासिल है। यह नाम स्थानीय व्यंजन से निकला है, जो पापड़ को चावल के बाटर में डुबाने के बाद उसे फ्राई करके तैयार किया जाता है। मैं आपको बताता हूं कि मैंने लंच के लिए यह रेस्तरां क्यों चुना? यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह कहानी आपने सुनी होगी कि जर्मनी में लोगों ने कुछ भारतीय पर्यटकों को रेस्तरां में जरूरत से ज्यादा आर्डर देने के बाद उसे यूं ही बर्बाद होने के लिए छोड़ते देखा तो वे उनके पास गए और विनम्रता से लेकिन दृढ़ता से उन्हें भोजन बर्बाद करने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा, 'पैसा चाहे आपका हो, लेकिन संसाधन हमारे देश के हैं।' 
अब यही डायलॉग आप इस देश के किसी भी हिस्से में मारकर देखिए! यदि आपके साथ झूमाझटकी नहीं हुई तो आप खुद को खुशकिस्मत मान सकते हैं। लेकिन यह बात तो तय है कि आपको चाहे गालियां सुनने को मिले, एक डायलॉग तो आपको सुनने को मिलेगा ही, 'चलो अपना काम करो, यह मेरा पैसा है और मैं इसका जो चाहे करूं, आपको मतलब।' अपने देश के जिम्मेदार और गैर-जिम्मेदार नागरिकों के बीच इस तरह का अप्रिय संवाद टालने के लिए 'पाप्पडवडा' रेस्तरां की मालकिन मीनू पॉलिन ने अपने रेस्तरां के बाहर 'नानमा मारम' की स्थापना की है, जिसका मतलब है 'अच्छाई का पेड़।' आप पूछेंगे कि यह है क्या? धीरज रखिए, बताता हूं। 
मीनू को यह विचार तब आया जब उन्होंने एक बेघर महिला को उनके रेस्तरां के ट्रैश बिन से बचा खाना उठाते देखा। ननमा मारम दरअसल 420 लीटर का फ्रीज है, जो रेस्तरां के बाहर सड़क के किनारे किसी छोटे पेड़ की तरह दिखता है। बैंकर से रेस्तरां ओनर बनी मीनू सिर्फ अपने ग्राहकों को ही नहीं, कई अन्य लोगों को भी भोजन कराना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने अच्छाई का पेड़ लगाने का निश्चय किया, जो चौबीसों घंटे काम करता है, जिसे बिजली रेस्तरां से मिलती है। इसका भोजन खराब नहीं होता और यह रोज 50 लोगों को भोजन मुहैया कराता है। फ्रिज मार्च 2016 को खोला गया और शुरू में इसमें रेस्तरां का बचा भोजन रखा जाता था, लेकिन अब यह कम्युनिटी फ्रिज बन गया है और बहुत से स्थानीय लोगों को भी फ्रिज में भोजन रखने की अनुमति है। अब कोई भी भोजन दान कर सकता है और ले भी सकता है। चूंकि फ्रिज दिनभर खुला रहता है, इसलिए कोई भी कभी भी आकर बचा भोजन उसमें रख सकता है। साफ-सुथरी पैकेजिंग और भोजन बासी होने के अलावा एक ही शर्त है कि वहां रखे मार्कर से पैक पर तारीख डाल दें ताकि 420 लीटर के आइस कबर्ड, हां फ्रिज को वहां यही कहा जा रहा है, में भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। इस सरल से आइडिया के पीछे विचार यही है कि भोजन बर्बाद होने की बजाय जरूरतमंदों को मिल सके। यही वजह है कि मैंने अपनी यात्रा के पहले लंच के लिए इस रेस्तरां का चुनाव किया। 
अब हम जॉय ऑफ गिविंग वीक के मध्य में पहुंच चुके हैं। इसे 'दान उत्सव' भी कहते हैं। ऐसे अनोखे विचार से कोई भी हफ्तेभर के अच्छे विचार को सालभर के जश्न में तब्दील कर सकता है। दयालुता की ऐसी पहली पेशकश 2014 में सऊदी अरब के शहर हैल में किसी व्यक्ति ने की थी। वह अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहता था। उसने अपने घर के बाहर फ्रिज रखा और पड़ोसियों से उसमें जरूरतमंदों के लिए भोजन रखने का अनुरोध किया। 
फंडा यह है कि कई ऐसी चीजें हैं, जो तब तक जिंदा रहेंगी जब तक मानव जाति मौजूद है और 'दान उत्सव' को उनमें से एक होना चाहिए। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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