Saturday, October 29, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: परेशानियों का अंधेरा भी दिवाली जैसा उजाला लाता है

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
यह कोई रहस्य की बात नहीं है कि सौंदर्य और नारी अविभाज्य हैं। सेमैल्या और कनाड़िया गांवों की किरण खिच्ची और रीता जैन अपवाद नहीं थीं, जो मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित कनाड़िया के कनकश्री ब्यूटी पार्लर में
जाया करती थीं। यह पार्लर 2008 से अच्छा चल रहा है। वर्ष 2012 में पार्लर की ओनर बिंदिया शर्मा ने उन्हें एक महीने के ब्यूटी कोर्स का सुझाव दिया। इसे नवसर्वोदय एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी के साथ 500 रुपए की मामूली फीस पर संचालित किया जाना था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दोनों पैसे देकर कोर्स शुरू होने का इंतजार करने लगीं, क्योंकि दोनों की हसरत अपने क्षेत्र में ऐसा ही एक पार्लर खोलने की थी। 
बिंदिया कोर्स के लिए इसलिए राजी हुई थीं, क्योंकि रोज दो घंटे की कोचिंग के लिए संगठन उन्हें 3000 रुपए प्रतिमाह देने वाला था, जो तब आकर्षक वेतन था। उन्हें यह पता नहीं था कि संगठन ने इन दोनों के अलावा 22 लोगों से पैसे इकट्‌ठे किए थे और वह भी बिंदिया का हवाला देकर और अब वे लोग सारा पैसा लेकर फरार हो गए थे। अब बिंदिया को पैसे देने वाली भावी छात्राओं का सामना करना पड़ रहा था। वे ऐसी कठिन स्थिति में फंस गईं थीं, जो चार साल की कड़ी मेहनत से हासिल प्रतिष्ठा पर पानी फेर रही थी। वे अपनी बचत से पैसा लौटाने को राजी थीं, लेकिन किरण और रीता ने ब्यूटी कोर्स में प्रशिक्षण के अलावा कुछ भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। चूंकि बिंदिया ने इन दो की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी तो उन्होंने शेष 22 प्रशिक्षुओं को भी बुला लिया ताकि कम से कम पैसे तो नहीं लौटाना पड़े। कोर्स पूरा करने के 15 दिनों के भीतर दोनों ने पार्लर शुरू कर लिए। किरण का गायत्री और रीता का तन्नू ब्यूटी पार्लर। 
जब उन्होंने अपनी सफलता की कहानी बिंदिया को बताई तो उन्हें दो छात्राओं को आंत्रप्रेन्योर में बदलने की अपनी क्षमता पर रोमांच हो आया। वह और उनके फाइनेंशियल कंसल्टेंट पति विनय ने इस कोचिंग क्लास को आस-पास के गांवों में एक माह के कोर्स चलाकर फैलाना शुरू किया। विनय सीधे बाजार से प्रोडक्ट लाने में मदद कर उन्हें वित्तीय बुद्धिमानी के सबक भी देते। लेकिन समस्या यह थी कि छात्राओं को उत्पादक ढंग से रोजगार में नहीं लगाते रहा था, इसलिए दोनों ने प्रत्येक ग्राम सरपंच से संपर्क किया और उनसे सामाजिक आयोजनों विवाह समारोहों में काम दिलाने का अनुरोध किया। यह आइडिया काम कर गया और ज्यादातर छात्राओं को उन आयोजनों में काम मिलने लगा और उनकी कमाई होने लगी। जैसे-जैसे प्रोजेक्ट आगे बढ़ने लगा, छात्राएं वैध प्रमाण-पत्र की मांग करने लगीं ताकि भविष्य में उनका हवाला दिया जा सके। नई दिल्ली के 'शिखर आर्गनाइजेशन फॉर सोशल डेवलपमेंट' ने काम का निरीक्षण करने के बाद प्रमाण-पत्र देने पर सहमति जताई। दोनों के काम से संतुष्ट होकर संगठन के प्रमोटर और क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने प्रोग्राम को अपना नाम देने की अनुमति दी और प्रोग्राम का नाम हो गया, 'वीरेंद्र सहवाग रुरल वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम।' शिखर संगठन ने उन्हें अपना काम सरकारी स्कूलों में फैलाने और इसके साथ सिलाई प्रशिक्षण भी जोड़ने को कहा ताकि स्थानीय स्कूल छात्राओं को बहुत कम फीस पर हुनरमंद बनाया जा सके। सहवाग के एंडोर्समेंटके बाद पिछले 18 महीनों में इंदौर के आस-पास के 34 गांवों की करीब 3100 छात्राओं ने दो व्यवसायों का प्रशिक्षण लिया, जिनमें से 135 आंत्रप्रेन्योर बन गई हैं। अब शर्मा परिवार अंधेरे में चिंगारी खोजने की अपनी यात्रा को आगे बढ़ा रहा है।  
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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