Wednesday, October 5, 2016

यूं ही नहीं है वेतन की मांग; पंजाब से प्रति व्यक्ति आय ज्यादा तो वेतन क्यों हो कम?

सरकारी कर्मचारियों को समान काम के लिए समान वेतन और न्यूनतम वेतन के रूप में 24 हजार रुपये दिए जाने की मांग यूं ही नहीं है। कर्मचारी नेताओं ने बाकायदा आंकड़ों के साथ इसे तर्कसंगत साबित किया है। मुख्य सचिव डीएस ढेसी की अध्यक्षता वाली कमेटी को सौंपे गए 25 पेज के ज्ञापन में सर्व कर्मचारी संघ ने जो तथ्य
पेश किए, उन्हें सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। तर्को की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही इस पर सहमति बनी कि सातवें वेतन आयोग को लागू करने से पहले पिछली विसंगतियों को दूर किया जाएगा। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के प्रधान धर्मबीर फौगाट व महासचिव सुभाष लांबा द्वारा तैयार ज्ञापन (बुकलेट) में एक-एक बिंदु को क्रमवार तरीके से उठाया गया है। संघ की दलील है कि जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हरियाणा देश के शीर्ष पांच राज्यों में है और राष्ट्रीय औसत आय से 1.79 गुणा व पंजाब से 1.46 गुणा आगे है तो कर्मचारियों को वेतन-भत्ते और सुविधाएं देने में पीछे क्यों। संघ की दलील है कि अपेक्षाकृत कम प्रति व्यक्ति उत्पादन वाले हिमाचल प्रदेश सहित कई अन्य राज्य भी सुविधाएं देने में हमसे कहीं बहुत आगे हैं। हरियाणा में प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से तो केंद्रीय कर्मचारियों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक वेतन-भत्ते दिए जाने चाहिए। खासकर अनुबंध, आउटसोर्सिग व ठेके पर लगे कर्मचारियों के लिए तो श्रम कानून के भी कोई मायने नहीं रह गए हैं।
न्यूनतम वेतन इसलिए हो 24 हजार: सर्व कर्मचारी संघ ने दलील दी है कि एक परिवार (पति-पत्नी, दो बच्चे व माता-पिता) में हर माह भोजन व रसोई से संबंधित कार्यो मकान के किराये व बिजली-पानी पर चार हजार, दवा-दारू पर दो हजार, शिक्षा पर तीन हजार, वाहन पर एक हजार, सामाजिक गतिविधियों में दो हजार, कपड़ों पर दो हजार, ओढ़ने-बिछाने पर आठ सौ और टीवी व इंटरनेट पर पांच सौ रुपये खर्च हो जाते हैं। इस तरह माह में होने वाले औसत खर्च का कुल योग 24, 330 रुपये बैठता है। ऐसे में वेतन के रूप में 24 हजार रुपये तो मिलने ही चाहिए।
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साभारजागरण समाचार 
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