Monday, October 10, 2016

क्यों जरूरी है किसी एक क्षेत्र में सौ फीसदी विशेषज्ञ होना

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)

उड़ी हमले के बाद से खबरें हैं कि हमारे सुरक्षा बलों ने नियंत्रण-रेखा के उस पार से घुसपैठ के कई प्रयास नाकाम किए हैं। इनमें एक कबूतर भी पकड़ा गया है, जिसके पैरों में ये संदेश बंधा था, 'मोदीजी, हम वैसे नहीं रहे, जैसे हम 71 में थे -जैश-ए-मोहम्मद।' कोई नहीं जानता की पक्षी सीमा पार से आया है अथवा नहीं। किसी को यह भी
नहीं मालूम कि संदेश को गंभीरता से लेना चाहिए अथवा नहीं। इसलिए पुलिस ने एक पिंजरा मंगवाया और उसे नियमित रूप से दाने चुगा रही है ताकि वे कोई ऐसा महत्वपूर्ण सुराग खो दे जो वह कबूतर दे अथवा भी दे, कौन कह सकता है। उम्मीद है कि कोई कोई कीमत तथ्य उससे पता चल ही जाएगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
संभावना है कि किसी ने सिम कार्ड या अन्य कोई सामग्री कबूतर में छिपा दी हो, इसलिए वे कबूतर की स्कैनिंग का इंतजार कर रहे हैं। सीमा की रक्षा करने वाला कोई वर्दीधारी कबूतर के भविष्य के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं है, क्योंकि सीमा पार संदेश ले जाने की इसकी क्षमता के बारे में कई बातें की जा रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह संभव है अौर कुछ का मानना है कि कबूतर को ऐसा प्रशिक्षण देना कठिन है कि वह अपने आप किसी खास जगह पर पहुंच जाए। यह किंवदंतियों और लोककथाओं का हिस्सा अधिक मालूम पड़ता है। 
सारे भ्रम के बावजूद कबूतर की चौबीसों घंटे रखवाली की जा रही है पर कोई एक्सपर्ट सामने आया नहीं है, कम से कम यह कॉलम लिखे जाने तक तो नहीं आया था, जो कबूतर का व्यवहार समझकर सुरक्षा बलों की समस्या हल कर दे। इससे मुझे याद आता है कि राष्ट्रपति भवन में आवारा बिल्लियों की समस्या आने पर ठेठ तमिलनाडु के मदुराई से बिल्लियों के विशेषज्ञ को बुलाया गया था। यह राष्ट्रपति केआर नारायण के कार्यकाल की बात है, जब उनके स्टाफ को असामान्य काम सौंपा गया था- राष्ट्रभवन में घूम रही बिल्लियों की अच्छी-खासी तादाद को हटाना। बिल्लियां हर जगह थीं, यहां तक कि विशेषज्ञ एन. पन्नीरसेलवम को भी सभी बिल्लियां पकड़ने में मुश्किल रही थी। इसलिए उन्होंने नायाब आइडिया निकाला और राष्ट्रपति के किचन कुक से कहा कि वे रोज एक जगह ही बिल्लियों को खाना दे। धीरे-धीरे सारी बिल्लियों को खाने की जगह समय पता चल गया। एक दिन सारी बिल्लियां उस कमरे में इकट्‌ठी होकर भोजन का लुत्फ उठा रही थीं। विशेषज्ञ ने दरवाजा बंद कर उन्हें दवा से बेहोश कर सुरक्षति स्थान पर भेज दिया। यह सरल-सा विचार लगता है, लेकिन इसके पीछे प्राणियों के व्यवहार की गहरी समझ काम कर रही है। जितनी विशेषज्ञता होती है, उतने आसान समाधान व्यक्ति सुझाने में सक्षम होता है। यह इस तथ्य से साबित होता है। इसी तरह की स्थिति में पन्नीरसेलवम को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आवास के लॉन से पाम सिवेट (बिल्ली जैसी प्रजाति) हटाने के लिए बुलाया था। एक अधिकृत भोज में विदेशी हस्तियों के आने के ठीक पहले की बात है। उसके बाद राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के समय में उन्होंने राष्ट्रपति भवन में इको पार्क विकसित किया था। वे अपने राज्य के अधिकारियों की भी मदद करते हैं जब वे मुख्यमंत्री की ओर से कोई आयोजन करते हैं और उसमें उन्हें मानव प्राणियों के बीच कोई संघर्ष की समस्या आती है जैसे कोई हाथी ही बिना आमंत्रण भोजन पर सूंड मारने जाए! 
मुख्यमंत्री जयललिता के पूर्व कार्यकाल में ऐसी नौबत आई थी। हालांकि, मौजूदा कार्यकाल में ऐसा कोई वाकया नहीं हुआ है। लब्बोलुआब यह कि पन्नीरसेलवम का टेलीफोन नंबर सारे वीवीआईपी के स्टाफ के पास होता है कि यदि किसी भी जानवर की कोई समस्या हो तो उन्हें बुलाया जा सके। ये डॉक्टर महाशय अर्जेंट कॉल सुनते ही अगली फ्लाइट पकड़कर रवाना हो जाते हैं।अब प्राणियों के व्यवहार का अध्ययन हर कोई नहीं कर सकता और जानवरों के प्रति सदाशयता के इस युग में उनसे दिक्कत होने पर तो उन्हें खत्म करना संभव है अौर मानवीयता के नाते ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। ऐसे में यदि विशेषज्ञ की सेवाएं उपलब्ध हो तो बगैर कोई अपराध बोध निर्मित किए उपद्रवी प्राणियों से निजात मिल सकती है। भारत के धार्मिक शहरों में प्राय: ख्यात मंदिरों के आस-पास बंदरों के उपद्रव की बड़ी समस्या रहती है, जो तीर्थयात्रियों की परेशानी का कारण बनते हैं। पर्यटन विभाग क पहल करके विशेषज्ञों की मदद से इनका कोई आसान हल निकालने की पहल करना चाहिए। 
फंडा यह है कि यदि आप अपने क्षेत्र में शत-प्रतिशत परफेक्ट हैं तो लोग आपको ढूंढ़ते फिरेंगे। आपको यात्रा करने और नए लोगों से मिलने और चुनौतियों से दो-चार होने का मौका मिलेगा। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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