Monday, October 17, 2016

अनूठा प्रयोग: इस स्कूल के बच्चों को अपने घर के बुजुर्गों को पढ़ाने का मिलता है 'होमवर्क'

धूसरा, झारखंड का धुर नक्सली गांव। यह पूर्वी सिंहभूम जिले का सबसे कम साक्षरता वाला गांव है। इस गांव के बच्चे ही इसे पूर्ण साक्षर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल स्कूल मेंे इन्हें अपने माता-पिता, दादा-दादी के अलावा गांव के अन्य बुजुर्गों को पढ़ाने का होमवर्क मिलता है। बच्चे इन्हें अक्षर ज्ञान से लेकर गिनती हस्ताक्षर
करना सिखा रहे हैं। बड़ों को बच्चों की ही कॉपी में 50 से 100 बार लिखकर होमवर्क करना होता है।  यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अगले दिन स्कूल में कॉपी चेक की जाती है। बच्चों को स्कूल में डांट पड़े इसलिए बुजुर्ग हर दिन पढ़ाई कर रहे हैं। बीडीओ सच्चिदानंद महतो ने बताया कि तीन महीने पहले यहां की साक्षरता दर 41 फीसदी थी, जो बढ़कर 90% तक पहुंच गई है। जिला जनसंपर्क अधिकारी संजय कुमार ने बताया कि झारखंड स्थापना दिवस (15 नवम्बर ) तक गांव को पूर्ण साक्षर बनाने का लक्ष्य है। 1200 की आबादी वाले गांव में यह मॉडल सफल रहा तो सरकार इसे पूरे प्रदेश में लागू करेगी। 
ग्राम प्रधान गंगाधर सिंह ने बताया- उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय की दो महिला शिक्षिकाएं घर-घर जाकर साक्षर होने के लिए प्रेरित कर रही हैं। स्कूल की प्रधानाध्यापिका राधा कुमारी रोजाना अचानक किसी के घर पहुंचकर यह जानने को टेस्ट ले लेती हैं कि लोगों ने कितना लिखना-पढ़ना सीखा। उनका कहना है कि इस मॉडल से बच्चों में आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है। स्कूल में 132 बच्चे पढ़ते हैं। घर के सदस्यों को अक्षर ज्ञान होते ही बच्चों को पड़ोसियों को भी साक्षर करने के लिए कहा गया है। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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