Wednesday, October 19, 2016

20 साल बाद सुप्रीम कोर्ट में हिंदुत्व पर शुरू हुई सुनवाई: जानिए क्या सवाल जवाब हुए

हिंदुत्व जीवन शैली है या धर्म? इसे तय करने के लिए मंगलवार को सुप्रीम काेर्ट में सुनवाई शुरू हुई। शीर्ष अदालत यह भी तय करेगी कि इस आधार पर वोट मांगना कितना सही या गलत है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संवैधानिक पीठ कर रही है। अभी इसमें केंद्र
को पार्टी नहीं बनाया गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
सुबह साढ़े 8 बजे चीफ जस्टिस की अगुवाई में संवौधानिक पीठ बैठी। मुख्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार मौजूद थे। वरिष्ठ अधिवक्ता इंद्रा जयसिंह और मप्र सरकार की ओर से अधिवक्ता तुषार भी थे। 
1996 के फैसले से जुड़ा है मामला 
1992के महाराष्ट्र चुनाव में मनोहर जोशी ने कहा था कि वे महाराष्ट्र को पहला हिंदू राज्य बनाएंगे। मामला कोर्ट पहुंचा। 1995 में बाॅम्बे हाईकोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई। कोर्ट ने 1996 में फैसला दिया कि हिंदुत्व 'वे ऑफ लाइफ' यानी जीवन शैली है। इसे हिंदू धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। इसलिए हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट के तहत करप्ट प्रैक्टिस नहीं है। 
अरविंद दातार: रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट कहता है कि वर्ण, धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के आधार पर वोट मांगना गलत है। दोषी व्यक्ति का चुनाव रद्द कर दिया जाता है।
चीफजस्टिस: अगर हिंदू अपने लिए नहीं, बल्कि किसी मुस्लिम के लिए अपने समर्थकों से वोट डालने को कहे कि यह तुम्हारे धर्म का है, तब क्या?
वकील: तबभी कानून का उल्लंघन होगा। धर्म के आधार पर वोट के लिए प्रेरित करना भी गलत है।
जस्टिसचंद्रचूड़: तमिलनाडुमें एंटी हिंदी माहौल को कहां रखेंगे? अगर वहां इस आधार पर वोट मांगे जाएं तो?
वकील:इसेभी आरपी एक्ट के उल्लंघन की श्रेणी में लिया जाएगा। क्योंकि भाषा भी इसके दायरे में है।
जस्टिसबोबड़े : धर्मके आधार पर वोट मांगने का वर्गीकरण कैसे होगा?
चीफजस्टिस : तीनतरह से। धर्म के आधार पर वोट मांगना, उस आधार पर मना करना और किसी दूसरे धर्म के नेता को वोट देने के लिए प्रेरित करना।
चीफजस्टिस : जबकोई धर्म गुरु कहे कि धर्म भूल जाओ, इस उम्मीदवार के लिए वोट दो तो क्या कहा जाएगा?
वकील: अगरधर्म गुरु ने ऐसा कहने के लिए उम्मीदवार से सहमति ली है तो यह कानून का उल्लंघन है।
जस्टिसठाकुर : अगरसभी उम्मीदवार हिंदू हैं। पंडित ने कहा कि पंडित को वोट दो और बनिया उम्मीदवार कहता है कि बनिया को वोट दो, तब कानून क्या कहता है?
वकील:यहभी कानून के उल्लंघन के दायरे में ही होगा।
जस्टिसचंद्रचूड़ : सभीप्रत्याशी एसटी हों और उसी आधार पर वोट मांगे जाएं, तो क्या होगा?
वकील: यहभी उल्लंघन है।
चीफजस्टिस : कईबार डेरा जैसे संगठन वोट मांगते हैं। उसे क्या कहेंगे?
वकील: यहइस बात पर निर्भर करेगा कि डेरा प्रमुख ने उम्मीदवार की सहमति ली है या नहीं।
जस्टिसगोयल : डेराक्या होता है?
चीफजस्टिस : डेराधार्मिक संगठन ही है। इसके बहुत से अनुयायी हैं जो डेरा द्वारा तय नैतिक मूल्यों ओर विचारों को अपनाते हैं।
जस्टिसगोयल : यानीसत्संग मंडली जैसे बड़े धर्मगुरुओं वाले संगठन...
चीफजस्टिस : हरियाणाऔर पंजाब में ऐसे बहुत से धार्मिक संगठन हैं।
जस्टिसगोयल : फिरतो किसी राज्य की विधानसभा में 100 सीटें हैं, तो उनमें से 15 सीटें तो धार्मिक संगठनों से ही प्रभावित हो जाती होंगी?
वकील: ऐसाअक्सर होता है।
चीफजस्टिस: धर्मगुरु की सहमति कैसे साबित की जाएगी?
वकील:भाषणदेने वाला बताएगा।
चीफजस्टिस: वहइंकार कर दे तो?
ऐसे सवालों के साथ सुनवाई दिनभर चली जो बुधवार को भी जारी रहेगी।
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साभार: भास्कर समाचार 
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