Monday, September 26, 2016

हर चार में से तीन नियोक्ता देखते हैं कि आपने पढाई के इलावा क्या सीखा

एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अच्छा एकेडमिक रेकॉर्ड होने से यह तय नहीं हो जाता कि ग्रेजुएशन के बाद अच्छी जॉब मिल जाएगी। मौजूदा दौर में एंप्लॉयर मानते हैं कि कंप्लीट ग्रेजुएट होने के लिए डिग्री ही काफी नहीं है। कॉर्पोरेट नियोक्ताओं के अनुसार यूनिवर्सिटी में अकेडमिक के अलावा अन्य चीजों पर भी फोकस किया
जाना चाहिए। बिज़नेस लीडर मानते हैं कि एक्स्ट्रा कॅरिकुलर एक्टिविटी छात्र को अन्य छात्रों के मुकाबले अलग बनाती है। ये छात्रों के लिए स्किल के विकास में मददगार होती हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कुछ ऐसी गतिविधियां जो अकेडमिक्स के अलावा भी की जा सकती हैं: 
टाइम मैनेजमेंट: प्रोफेशनल्स को काम के दौरान एक साथ अलग-अलग तरह के काम करने होते हैं। इसके लिए मल्टीटास्किंग जैसी स्किल की जरूरत होती है। कॉलेज क्लास के बाद क्लब या सोसाइटी होनी चाहिए, जिसमें छात्र विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग ले सकें। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि दिया गया काम समय पर हो सके। इससे छात्र सीख सकते हैं कि टाइम मैनेज करते हुए कैसे ज्यादा काम किए जा सकते हैं। एंप्लाॅयर को यह अच्छा लगता है कि छात्र अकेडमिक्स के अलावा भी किसी अन्य कामों में भाग लेते हैं। वे यह भी देखते हैं कि वो अपने इंटरेस्ट या पैशन के लिए कितना समय देते हैं। 
एटीट्यूड और इनीशिएटिव: कॉम्पिटिटिव बाजार में ऐसे युवाओं की आवश्यकता होती है, जो चीजों को जल्दी समझ सकें और काम के प्रति उनका रवैया सकारात्मक हो। कॉलेजों में एक्स्ट्रा कॅरिकुलर एक्टिविटी में भाग लेकर इन चीजों को अपने व्यक्तित्व में शामिल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कॉलेज में फेस्टिवल आयोजित करने की जिम्मेदारी आसान नहीं होती है। इसके लिए स्पॉन्सर ढूढ़ना और अन्य अन्य काम करना चैलेजिंग होता है। इससे चीजों को प्लान करना और आैर फिर उसे लागू कैसे करना है, इसकी समझ हो जाती है या इसके बारे में थोड़ा आइडिया मिल जाता है। 
लीडरशिप और टीम वर्क: अकेडमिक के अलावा अतिरिक्त गतिविधियों से छात्रों को नेतृत्व की क्षमता विकसित करने का मौका मिलता है। इसके अलावा ऐसी गतिविधियों में छात्रों को टीम में काम करने का मौका मिलता है और यह वर्ककल्चर में काफी सहायक हो सकती है। एंप्लॉयर को एेसे एंप्लाई की तलाश होती है, जो प्रेशर में और अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर काम कर सकें।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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