Sunday, September 11, 2016

आखिर क्यों हमारे देश में समय पर नहीं पहुँच पाती एम्बुलेंस

दो दिन पहले छत्तीसगढ़ में रायपुर के टिकरापारा में मरीज को ले जा रही एम्बुलेंस रास्ते में खराब हो गई। मरीज को एक घंटे के बाद दूसरी एम्बुलेंस मिली। उसे सांस लेने में तकलीफ होती रही। लेकिन एम्बुलेंस में ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं था। दरअसल यहां 1100 एम्बुलेंस में से एक तिहाई खटारा हैं। एम्बुलेंस को लेकर
लगातार देश भर से खबरें रही हैं। कहीं मरीजों को ठेले पर अस्पताल पहुंचाया जा रहा है तो कहीं ऑटो से। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ऐसे में भास्कर ने देश में एम्बुलेंस की स्थिति को लेकर पड़ताल की तो पता चला कि देश में एक लाख की आबादी पर मात्र एक एम्बुलेंस है, जबकि सरकार कहती है कि उसकी कोशिश है कि 60 हजार की आबादी पर एक एम्बुलेंस उपलब्ध हो। दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ संगठन के मानकों के अनुसार 10 मिनट में एम्बुलेंस मरीज तक पहुंच जानी चाहिए, लेकिन हमारे यहां अधिकांश मामलों में तो 30 मिनट तक लग जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक देश में किसी गंभीर सड़क दुर्घटना के हो जाने पर मात्र 11 से 49 फीसदी मरीज ही एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंच पाते हैं। 
पूरे देश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य सरकारों द्वारा लगभग 34 हजार एम्बुलेंस चलाई जा रही हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि प्रति एक लाख की आबदी में मात्र एक बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) एम्बुलेंस उपलब्ध है। इसी तरह हर एक लाख की आबादी में एक एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) एम्बुलेंस ही मौजूद है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में निदेशक कैप्टन कपिल चौधरी कहती हैं कि एम्बुलेंस उपलब्ध कराने के लिए राज्यों को आगे आने की जरूरत है। हम मांग के आधार पर स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्यों को पैसा उपलब्ध करा सकते हैं। सेव लाइफ फाउंडेशन के ऑपरेशन प्रमुख साजी चेरियन का कहना है कि भारत में मौजूदा ज्यादातर एम्बुलेंस सेवाओं में इस्तेमाल होने वाले वाहनों में स्वास्थ्यकर्मी आपातकालीन सेवाओं के लिए ट्रेंड नहीं होते। दुर्घटनाओं के बाद होने वाली मौतों की एक बड़ी वजह यह भी है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार हाईवे पर प्रति 50 किमी पर एक एंबुलेंस तैनात करना अनिवार्य है। लेकिन हाईवे पर सर्विस प्रोवाइडर ऐसी व्यवस्था के नाम पर मात्र एक साधारण गाड़ी में ड्राइवर तैनात कर देते हैं जो आपातकालीन स्थिति में घायलों को पास के अस्पताल तक ही पहुंचाना जानते हैं। जबकि ज्यादातर सड़क दुर्घटनाओं में तुरंत उपचार शुरु करना होता है। 
साजी चेरियन का कहना है - विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार मैदानी इलाकों में प्रति लाख जनसंख्या में एक एंबुलेंस और पहाड़ी-कठिन इलाकों में प्रति 70 हजार की आबादी में एक एंबुलेंस उपलब्ध होना चाहिए। 
वैसे पिछले कुछ वर्षों में एंबुलेसों की स्थिति में कुछ सुधार तो हुआ ही है। 1990 में प्रसव के दौरान प्रति लाख महिलाओं में से 560 की मौत हो जाती थी। लेकिन कुछ साल पहले शुरू किए गए जननी शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 30 मिनट के भीतर मुफ्त एंबुलेंस सेवा बहाल करने के बाद मातृ-मृत्युदर में भारी गिरावट आई है। 
निजी एजेंसियां भी इस क्षेत्र में आगे रही हैं। आंध्र प्रदेश से संचालित होने वाली संस्था जीवीके-ईएमआरआई पिछले कुछ सालों से एंबुलेंस सेवा को दुरुस्त करने के लिए राज्य सरकारों के साथ साझा सेवा उपलब्ध करा रही है। संस्था की लीड पार्टनर चंदन दत्ता ने कहा "दुर्घटना में घायलों और मरीजों को समय से एंबुलेंस सेवा उपलब्ध कराने के लिए हम 16 राज्य सरकारों के साथ लगभग 10 हजार से ज्यादा एंबुलेंस चला रहा हैं। इनमें से 3579 एंबुलेंस सिर्फ गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को अस्पताल लाने-ले जाने के लिए तैनात हैं। इसके बावजूद आपात स्थिति में एंबुलेंस उपलब्ध कराने के लिए अभी लंबी दूरी तय करना बाकी है।"
इसी तरह मुंबई से संचालित होने वाली कंपनी जिकित्जा हेल्थकेयर लिमिटेड 1298 और 108 हेल्पलाइन के लिए 17 राज्यों में 786 एम्बुलेंस मुहैया करा रही है। एयरबस हैलिकॉप्टर के प्रमुख जेवियर हे का कहना है कि एयर एम्बुलेंस के लिए पहला हैलिकॉप्टर भारत चुका है। दो और हैलिकॉप्टर जल्द आने की उम्मीद है। महानगरों में बढ़ते ट्रैफिक की वजह से मरीजों को सड़क मार्ग से अस्पताल पहुंचाना असंभव सा होने लगा है। ऐसे में एयर एम्बुलेंस ही महानगरों के लिए एक सही विकल्प है। 

92851 हजार किमी नेशनल हाईवे के लिए है मात्र 106 एम्बुलेंस: हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गड़गरी ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि विभिन्न राज्यों से जुड़े राष्ट्रीय राजमार्गों में कुल 106 एम्बुलेंस तैनात किए गए हैं। सरकार ने राजमार्गों में सालाना होने वाली दुर्घटनाओं के मामलों को ध्यान में रखकर इन एंबुलेंसों को रखने का स्थान चुना है। राजस्थान के चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र राठौड़ बताते हैं कि राजस्थान देश का पहला राज्य है, जहां इंटीग्रेटेड एम्बुलेंस की सुविधा है। यानी 108 या 104 पर इमरजेन्सी, जननी, बेस एम्बुलेंस तथा चिकित्सा परामर्श की सुविधा है। सॉफ्टवेयर से काल करने वाले व्यक्ति के मोबाइल पर एम्बुलेंस का नंबर चालक के मोबाइल नंबर चला जाता है। 
मध्यप्रदेश में संचालित जननी एक्सप्रेस एम्बुलेंस में मरीज की हालत बिगड़ने पर उसका इलाज करने कोई मेडिकल टेक्नीशियन अथवा डॉक्टर ड्यूटी नहीं करता। मरीज को एम्बुलेंस ड्राइवर के भरोसे घर से अस्पताल तक का सफर करना होता है। इसके अलावा इस एंबुलेंस में इमरजेंसी के लिए आक्सीजन सिलेंडर भी नहीं है। इस कारण दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज घर से अस्पताल जाने के लिए इमरजेंसी में एम्बुलेंस 108 को कॉल करते हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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