Friday, September 9, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: गरिमा के साथ लौटती है जिंदगी की रफ़्तार

वे इंडो-तिब्बत बॉर्डर फोर्स में सैनिक थे और देश के लिए हर ईमानदार सैनिक की तरह काम करते थे। आत्म-विश्वास से भरा और युवा यह सैनिक एक दिन घायल हो गया और उसके बांया हाथ और पैर लकवाग्रस्त हो गए। उनकी दुनिया थम गई। आत्म-विश्वास से भरा यह युवा अचानक एकाकी हो गया। समाज ने ऐसा नहीं
किया, बल्कि उन्होंने ही इसे चुना। युद्ध के मैदान में घायल होने वाले सैनिक ने शरीर के अंगों से और भी बहुत कुछ खो दिया। कई लोग ऐसे में अपनी गरिमा खो बैठते हैं। यह मुश्किल समय होता है। कल्पना कीजिए एक व्यक्ति, जिसने सेना में रहते कभी मुश्किल हालात से पीछे हटना स्वीकार किया हो वह बिस्तर या व्हीलचेयर से हिल भी सके। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
लेकिन एक दिन हैदराबाद के पेरा साइकलिस्ट आदित्य मेहता और उनकी टीम उनसे मिली। यह टीम आदित्य मेहता फाउंडेशन का हिस्सा थी जो सेंट्रल आर्म्ड फोर्सेस के दिव्यांग सैनिकों को कई खेलों के लिए ट्रेनिंग देती है। टीम ने उन्हें उनके ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने को राजी किया। ट्रेनिंग प्रोग्राम के अंत में ये सोल्जर मनाली से खारदुंगला साइकलिंग गेम के लिए जा रहे थे। बिना इस बात की चिंता किए कि कोई इस यात्रा में उनके साथ है या नहीं। ऐसे पहले कैम्प में बीएसएफ, सीआरपीएफ और आईटीबीपी सहित अन्य बलों के सैनिक पहुंचे, जिसमें महीनाभर तक उनकी काउंसलिंग हुई। 600 में से 121 ने अलग-अलग खेलों को चुना। जब उन्होंने खेलों में हिस्सा लिया तो खेल विशेषज्ञों और फीजियोथेरेपिस्ट ने हर कैंडिडेट की क्षमता को समझा। इसमें बैडमिंटन, स्वीमिंग और साइकिलिंग शामिल थे। बाद में इन्हें चुना गया और ट्रेंड किया गया। खेलों ने इन सैनिकों को खुली हवा में सांस लेने और खुद को फिर से खोजने का मौका दिया। आदित्य और उनकी टीम नेे तय किया है कि फरवरी 2017 की एशियन चैम्पियनशिप में शामिल होने में अधिक से अधिक लोगों की मदद करेंगे। आदित्य और उनकी टीम फंड जुटाने के लिए 20 सितंबर से 2 अक्टूबर तक वाघा सीमा से दिल्ली तक साइकिल यात्रा करेगी। साइकिल ट्रिप में कई अंदरूनी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है, ताकि लोग इस बड़े उद्‌देश्य के प्रति जागरूक हो सकें और किसी तरह चावला कैम्प, दिल्ली में मददगार हो सकें। कैंप 2 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। 
फाउंडेशन अलग-अलग फीजियोफेरेपिस्ट के साथ विभिन्न खेलों के लिए अलग-अलग टीम बनाएगा। उदाहरण के तौर पर साइकलिंग टीम हैदराबाद में जल्द ही ट्रेनिंग शुरू करने वाली है। इसी तरह बैडमिंटन टीम की ट्रेनिंग मुंबई और बेंगलुरू में होगी। सबसे बड़ी चुनौती खेल का प्रशिक्षण देना नहीं बल्कि खिलाड़ियों का मैंटल ब्लॉक दूर करना है। इसलिए आदित्य की टीम अधिकांश समय काउंसलिंग सेशन पर देती है। इसकी शुरुआत तब हु्ई जब आदित्य को अहसास हुआ कि उन्हें विकलांगों को अक्षमता से निकालने में सक्षम बनना है। जब उन्होंने पहली बार कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल से यात्रा की थी तो उन्हें फंड जुटाने में काफी संकोच हुआ था। उन्हें लगा था कि वे बिज़नेस परिवार से हैं, इसलिए किसी से पैसे नहीं मांगने चाहिए। तब उन्हें यह पता नहीं था कि जो फंड वे एकत्र करेंगे उससे कई लोगों को फायदा होगा, इसलिए अगली बार जब वे और उनकी टीम मनाली से खारदुंगला के लिए रोड ट्रिप पर निकली तो उन्होंने सीखा कि कैसे फंड एकत्र किया जाता है। यह फंड 50 पैरा एथलिट्स को गया और उनके लिए व्हीलचेयर और अन्य उपकरण इससे लाए गए। आदित्य के लिए सबसे खुशी की बात है कि हर प्रतिभागी का कायापलट हो रहा है और वे कैसे फिर से एक आत्म-विश्वास से युवा बन रहे हैं। 
फंडा यह है कि जिंदगी खुद-ब-खुद ही तेज रफ्तार से चलेगी अगर गरिमा और आत्म-विश्वास पर भी अन्य चीजों की ही तरह ध्यान दिया जाए। 
मैनेजमेंट फंडा 
एन. रघुरामन 
मैनेजमेंटगुरु 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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