Thursday, September 8, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: कौन कहता है कि गुनाहों को धोया नहीं जा सकता

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्थान: भारत-पाकिस्तानसीमा से सिर्फ 22 किलोमीटर दूर, 12-टेके गांव, तहसील रायसिंह नगर, जिला गंगानगर, राजस्थान। 11 साल का एक लड़का खेत के काम में माता-पिता की मदद करता है। वह पढ़ने भी जाता है। क्लास लगती है नीम के पेड़ के नीचे। यहीं उस बंजर इलाके में कुछ छांव मिलती है। एक दिन पेड़ को रोग लग
गया, तो चिंतित लड़का पिता से खेत में इस्तेमाल होने वाला पेस्टिसाइड ले आया और स्प्रे कर दिया, जिसने पेड़ की जान ले ली। उसके मासूम दिल में अपराध बोध पैदा हो गया। उसने प्रायश्चित करने का निश्चय किया। उसने नीम के पेड़ के बिना पढ़ाई जारी रखी। 2001 में वह बीकानेर में सरकारी डूंगर कॉलेज में लेक्चरर बना। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।कॉलेज में देखा कि गर्म हवा के कारण नीम के 30 पेड़ सूख रहे हैं। उसने उन्हें बचाने के प्रयास शुरू किए, साथ ही कॉलेज परिसर में नए पेड़ भी लगाए। दो साल बाद उसे नेशनल सर्विस स्कीम में अतिरिक्त चार्ज भी मिला, जो युवा और खेल मंत्रालय के मातहत है। 
बीकानेर से 15 किलोमीटर दूर हिम्मतगांव में 15 दिन की छात्रों की एक ट्रिप में उन्होंने सूखा राहत कामों देखें। इसमें काम के बदले अनाज दिया जा रहा था, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा था, कोई भी काम नहीं कर रहा था। उन्होंने आपत्ति जताई और प्राकृतिक तालाबों की मरम्मत शुरू कर दी। 125 परिवारों के गांव को बाहरी आदमी के काम करने से शर्मिंदगी महसूस हुई तो वे भी अभियान में शामिल हो गए। उन्होंने गांव वालों से वादा लिया कि कम से कम एक पेड़ घर में लगाएंगे। तब पूरे गांव में सिर्फ पांच पेड़ थे। उन्होंने अपने वेतन से पौधों की व्यवस्था की और अभियान को नाम दिया 'फेमेली फॉरेस्ट्री'। जब प्रिंसिपल गांव के दौरे पर आए तो प्रभावित होकर उन्होंने अभियान जारी रखने को कहा। 2007 में जिले को हरा-भरा करने की असली ग्रीन यात्रा गातसुखदेसार गांव से शुरू हुई। यह गांव बीकानेर से 100 किलोमीटर दूर है। हरियाली के प्रति उनकी दीवानगी के कारण कई गांव वाले अनुरोध करने लगे कि उनके गांव में भी कैंप लगाएं और मदद करें। इसमें कलेक्टर और ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी भी शामिल हो गए। अभियान के लिए फंड तो रहा था, परंतु यह अनियमित था। लेकिन उन्होंने कभी अपनी यात्रा रोकी नहीं और एक गांव के बाद दूसरे को हरा बनाते रहे। 2008 में शुरू हुई मनरेगा योजना से उनके अभियान को मदद मिली, जिससे वे पानी संग्रहित करने के लिए टैंक बनाने लगे। मिड डे मील योजना के तहत उन्होंने टीचर्स से अनुरोध किया कि वे बच्चों को नमक लगे जामुन दें और अगर बच्चे देखभाल का वादा करें तो उन्हें पौधे दें। हर रोज सुबह प्रार्थना में पेड़ों को पानी देने की बात भी हो। 
मिलिए श्याम सुंदर ज्ञानी से। इन्होंने लोगों की मदद से 1.05 लाख पौधे सिर्फ 3.50 मिनट में रोपने का लिम्का बुक रेकार्ड बनाया है। 2009 में राज्य ने ग्रीन राजस्थान को आगे बढ़ाया तो ज्ञानी ने अलग तरीका आजमाया। मुफ्त पौधे बांटने के स्थान पर उन्होंने लोगों में इसकी मांग पता की। ताकि सिर्फ खानापूर्ति हो। जो लोग पौधे लें वे इनकी देखभाल भी करें। छात्रों और टीचर्स ने घर-घर जाकर सर्वे किया, जिसमें 2.93 लाख पौधों की मांग आई। यह मांग 2,231 स्कूलों और 2,086 गांव वालों की ओर से थी। पौधों के दम तोड़ने की दर कम करने के लिए जो आम तौर पर 20 प्रतिशत होती है, ज्ञानी ने अपनी जेब से पैसा खर्च किया और अलग-अलग गांवों में माइक्रो नर्सरी शुरू की। अभियान से चुरू, हनुमानगढ़, बीकानेर और गंगानगर को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। आज 2,100 गांवों में माइक्रो नर्सरी है, जो अब तक 70 हजार से ज्यादा पौधे तैयार कर चुके हैं। ज्ञानी ने खुद अपने प्रयासों से 11 साल में छह लाख पौधे लगाए हैं। अपने समर्पण के लिए राष्ट्रपति और राज्य की ओर से पुरस्कृत ज्ञानी का गलती से एक पेड़ मारने का प्रायश्चित आज तक जारी है। 
फंडा यह है कि कौन कहता है कि कोई अपने गुनाहों को धो नहीं सकता? आप इस जीवन में इसे कई बार धो सकते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारजागरण समाचार 
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