Saturday, September 10, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: फैसले वही अच्छे जो दूसरों की परेशानी तुरंत दूर करें

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
बिलासपुर-भगत की कोठी (जोधपुर) ट्रेन के एस 2 कोच में इस मंगलवार की शाम अमित चोपड़ा यात्रा कर रहे थे। उनकेे तीन साल के बेटे को रात करीब नौ बजे तेज बुखार आया और उल्टियां होने लगीं। उनके साथ वृद्ध माता-पिता, पत्नी, बेटा और बेटी थे और वे किसी अनुष्ठान के लिए जोधपुर जा रहे थे, जिसे रद्‌द नहीं किया जा सकता था और दूसरी तरफ मनन की हालत में बिल्कुल सुधार नहीं हो रहा था। वे बिल्कुल असहाय हो गए थे। वे ट्रेन में ही डॉक्टर की तलाश करने लगे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। आसपास के कम्पार्टमेंट से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। अमित ने अपने भाई नीलेश चोपड़ा से बात की, जो मुंबई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। किसी अनोखे कारण से मुंबई के कई युवा रेल मंत्री सुरेश प्रभु के सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर फॉलोअर हैं, शायद इसलिए कि मंत्री खुद भी मुंबई से हैं। नीलेश भी उनमें से एक हैं। बहुत कम विकल्प थे इसलिए नीलेश ने सुरेश प्रभु को ट्वीट करके मदद मांगी। दो घंटे बाद एक सीनियर डॉक्टर सहित चार लोगों की टीम ट्रेन में आई और मनन को देखा। 
जब मनन जोधपुर पहुंचा तो उसकी हालत में सुधार हो चुका था। पूरा परिवार समय पर मिली मदद के लिए ट्वीट कर आभार जता रहा था। हाल ही में रेल मंत्री ने एक ऐसे व्यक्ति की मदद की थी जो अपने लकवाग्रस्त पिता और परिवार के साथ यात्रा कर रहे थे। उन्हें मेदाता रोड और बांदीकुई रेलवे स्टेशन पर एक डॉक्टर की जरूरत थी। सीनियर कांग्रेस लीडर अजय माकन ने रेल मंत्री का आभार माना था जब उन्होंने मुंबई से दिल्ली के लिए यात्रा कर रहे एक सीनियर सिटीजन कपल की मदद की थी, जो बिना परिचय-पत्र के यात्रा कर रहा थे। अच्छे सीईओ, मैनेजर्स और विभागों के प्रमुखों से उम्मीद की जाती है कि वे प्रक्रिया के चक्कर में पड़े बिना तेजी से ऐसे निर्णय करें, जो परेशानी में फंसे लोगों के लिए मदगार हों। मुझे लगता है कि किसी शीर्ष व्यक्ति द्वारा मदद करने का सबसे अच्छा उदाहरण है टाटा एंड सन्स के रतन टाटा का है। कहानी कुछ ऐसी है। 
कुछ साल पहले रतन टाटा जमशेदपुर में टाटा स्टील के स्टाफ के साथ फुटबॉल ग्राउंड में साप्ताहिक मीटिंग कर रहे थे। एक कर्मचारी ने टाटा को बताया कि कर्मचारियों के लिए टॉयलेट की क्वालिटी बहुत ज्यादा खराब है। नलों से पानी बहना, बंद कमोड और असहनीय बदबू सबसे बड़ी समस्या है। कर्मचारियों के टॉयलेट में मेंटेनेंस का कोई काम नहीं हो रहा था, जबकि अधिकारियों के टॉयलेट्स में पूरी साफ-सफाई, एयर प्यूरिफायर्स, ड्रायर्स और हैंड टॉवेल्स का इंतजाम था। टाटा ने अपने टॉप एग्ज़ीक्यूटिव से पूछा कि उन्हें स्थिति सुधारने में कितना समय लगेगा। जवाब मिला- एक महीना। टाटा ने कहा मैं यह काम कुछ मिनटों में करके दिखाऊंगा। उन्होंने एक कारपेंटर बुलाने को कहा। कारपेंटर आया और फिर ठीक कुछ ही मिनटों में कर्मचारियों के लिए अच्छा और पांच सितारा टॉयलेट तैयार था। 
आपको आश्चर्य हुआ होगा कि यह कैसे हुआ? बहुत ही आसान जवाब है। रतन टाटा ने कारपेंटर से कहा था कि कर्मचारियों के टॉयलेट का साइन बोर्ड अधिकारियों के टॉयलेट के साइन बोर्ड से बदल दीजिए। उन्होंने इस बात के निर्देश भी दिए कि साइनबोर्ड की यह अदला-बदली हर 15 दिन में होनी चाहिए। जब तक कि ऐसा करने के निर्देश वे खुद दें। अगले दिन दोनों टॉयलेट की साफ-सफाई और क्वालिटी एक जैसी हो गई किसी भी व्यक्ति के इस्तेमाल के लिए अच्छी। रतन टाटा ने शानदार उदाहरण पेश किया था- प्रभावी मैनेजमेंट का और असरदार अमल का।
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साभार: भास्कर समाचार 
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