Monday, September 19, 2016

अच्छे बीज बोने जैसा है मानवीयता का व्यवहार करना

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इस शनिवार को आपातकालीन सुरक्षा अभ्यास जारी था। सुरक्षा और अन्य एजेंसियां कुछ तनाव में थीं, क्योंकि निरीक्षण करने वालों की नज़रें उन पर लगी थीं। उनके काम को जांच-पड़ताल की दृष्टि से परखा जा रहा था। 
नतीजा: सुरक्षाद्वार पर असाधारण रूप से भीड़ जमा थी। फिर एक बड़े समूह का आगमन हुअा था, जो तीर्थयात्रा
पर जा रहा था। चूंकि तीर्थयात्रा पर जाने वाले समूह में आमतौर पर कोई युवा नहीं होता और पहली बार हवाई यात्रा करने वाले भी होते हैं तो उन लोगों में पहले ही घबराहट थी, क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि स्क्रीनिंग फ्रिस्किंग एरिया में दाखिल होने के पहले सिक्योरिटी ट्रे या बैग में क्या रखना है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पहली बार यात्रा करने वाले हर यात्री की स्क्रीनिंग में वक्त लग रहा था, क्योंकि उनमें से कोई अपनी पतलून की जेब में मोबाइल ले जा रहा था। उन्हें उनके परिजनों ने बताया था कि चौबीसों घंटे संपर्क बनाए रखने के लिए वे हमेशा मोबाइल अपने पास रखें,तो कुछ अपनी 'चोर' जेब में सिक्के, सूटकेस चाबियों जैसी धातु की चीजें ले जा रहे थे। हर बार उनके आते ही स्कीनिंग मशीन 'बीप' की आवाज करने लगती। सुरक्षा एजेंसी उन्हें वापस सुरक्षा जांच के लिए मशीन की ओर भेज देते ताकि उनका ध्वनि मुक्त प्रवेश हो सके। इस चेक अौर री-चेक का सीधा नतीजा यह था कि हर प्रवेश द्वार पर यात्रियों की लंबी-लंबी सर्पिली कतारें लग गईं। इससे नियमित यात्री चिड़चिड़ाने लगे थे। 
एक प्रशिक्षित सुरक्षा प्रमुख ने इन नए यात्रियों को प्रवेश क्षेत्र से कैसे गुजरना यह सिखाने के लिए सबकुछ किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वे एक्स-रे मशीन के नीचे से गुजरने वाले खुले ट्रे में अपना सामान रखने को तैयार नहीं थे, क्योंकि तब उनकी अलग जगह जांच होनी थी। जिस तरह से वे ट्रे की मूवमेंट पर बार-बार निगाह डाल रहे थे; झांककर देख रहे थे, उससे साफ था कि उन्हें वहां मौजूद हर व्यक्ति पर संदेह था। जब सुरक्षा प्रमुख ने उन्हें आकर बताया कि उनका सामान सुरक्षित है, तब जाकर उन्होंने थोड़ी राहत महसूस की। उनकी बेचैनी दूर हुई। 
नियमित रूप से हवाई यात्रा करने वालों के चेहरे पर परेशानी देखकर बिल्कुल खाली हाथ आया एक युवा एक से दूसरी कतार में घूम-घूमकर तीर्थयात्रियों को समझा रहा था कि वे सुरक्षा क्षेत्र से तेजी से कैसे गुजर सकते हैं। वह उन्हें बता रहा था कि कौन-सी चीजें सुरक्षा जांच के दौरान जाहिर कर दें ताकि आगे मशीन से गुजरते समय 'बीप' की ध्वनि उन्हें रोक दे। यह ठीक उस कार ड्राइवर की तरह था जो अपनी कार से उतरकर सड़क पर लगा जाम खोलने के लिए मदद करने में लग जाए। इस युवा की मदद से सीआरपीएफ के जवानों ने काफी राहत महसूस की। उस युवा की यह अच्छी पहल तुरंत ही वायरल हो गई तथा कई और नियमित यात्री आगे आकर सीआरपीएफ नियमित यात्रियोें के लिए स्थिति सुधारने में लग गए। स्पष्ट है कि कई बार लोग अच्छी पहल करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें किसी की पहल का इंतजार रहता है। 
संयोग की बात थी कि वह युवक मेरी फ्लाइट का ही यात्री था। बातचीत होने लगी। सुरेश पर्रिकर गोवा के उसी पर्रा शहर के थे, जहां से रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर हैं। उसने अपने गांव की कहानी सुनाई, जो मंत्री महोदय ने लिखी थी और सोशल मीडिया पर बहुत शेयर हुई थी। कहानी कुछ ऐसी थी: 
उन दिनों तरबूज उगाने वाले किसान एक स्पर्द्धा आयोजित करते थे, जिसमें बच्चों को सबसे अच्छे तरबूज ज्यादा से ज्यादा खाने और उनके बीज एक अलग बाउल में डालने को कहा जाता था, इसके लिए प्रेरित किया जाता था। इन बीजों का उपयोग अगली फसल के लिए होता था। वक्त गुजरने के साथ अगली पीढ़ी गई। प्रतियोगिता तो जारी रही, लेकिन उन्हें पुरानी पीढ़ी के विपरीत अब बच्चों को बचे तरबूज दिए जाते और श्रेष्ठ किस्में बाजार में बेच दी जातीं। जाहिर तौर पर साल दर साल तरबूज का आकार छोटा होता चला गया। सात साल में तो तरबूज की श्रेष्ठ किस्म खत्म ही हो गई और बाजार में उनके तरबूजों की मांग नहीं रही। उनके तरबूज बिकने मुश्किल हो गए। फलस्वरूप पर्रा के किसान गरीब हो गए। 'यदि हम मानव के व्यवहार में अच्छे व्यवहार के बीज नहीं बोएंगे तो आपको पता भी नहीं चलेगा कि मानवता कब मर ग,' उसने निष्कर्ष निकालते हुए कहानी खत्म की। इस नई उमर में इतना परिपक्व चिंतन देख मुझे उस युवा पर गर्व हुआ। या शायद रक्षामंत्री पर्रिकर ने वह कहानी लिखकर अगली पीढ़ी में सही बीज बो दिए थे। 
फंडा यह है कि जितना आप ऊंचा उठते हैं, उतनी वर्तमान में उचित व्यवहार से बीज बोकर मानवता को जिंदा रखने की आपकी जिम्मेदारी बढ़ती जाती है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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