Tuesday, September 13, 2016

जुनून से बनता है चरित्र, धर्म अथवा पेशे से नहीं

एन रघुरामन 
स्टोरी 1: कल्लादकाकेरल का सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील जिला है और हाल ही में गौ रक्षक विवाद ने यहां आग में घी का काम किया है। कोई भी मवेशी के झुंड के साथ दिख जाए तो उसे रोक लिया जाता है और तब तक
नहीं छोड़ा जाता जब तक संतोषप्रद जवाब मिल जाए। लेकिन मवेशी ले जाते एक 49 साल के बिज़नेसमैन का वाहन कभी नहीं रोका जाता। सभी समुदायों के लोग उनके फार्म पर अपने बछड़ों को पालने के लिए लेकर आते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उनका फार्म सिर्फ एक डेरी फार्म नहीं है, पूरा लर्निंग सेंटर है, उन लोगों के लिए भी जिनकी दिलचस्पी खेती में है। ये हैं- अहमद मुस्तफा गोलथामाजल। गौ रक्षा के नाम पर हुई हिंसा से ये कभी भी विचलित नहीं हुए। कई दशकों से लाभदायक होने के बावजूद मवेशियों के लिए उनका प्यार बरकरार है। 
मुस्तफा बिज़नेसमैन हैं, जिन्हें मवेशियों को लेकर जुनून है। वे एक डेरी चलाते हैं- हजाज फार्म्स और हर रोज 230 लीटर दूध कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को सप्लाई करते हैं। इसके अलावा सभी हिन्दू उत्सवों के लिए गाय का गोबर और गौमूत्र मुफ्त उपलब्ध कराने वाले एक मात्र सप्लायर हैं। सिर्फ दो जर्सी गायों से शुरुआत करने वाले मुस्तफा के फार्म में आज 33 गाय हैं। इसमें थारपार्कर( यह पाकिस्तान के जिंद के थारपार्कर जिले से संबंधित है), गिर (मूल रूप से गुजराती), होल्स्टेन फ्रीशंस (नॉर्थ हॉलैंड और फ्रीशलैंड के डच प्रांत की एक डेरी ब्रीड) और जर्सी (यह मूल रूप से जर्सी के चैनल आइलैंड से है। नस्ल हाई फैट मिल्क के लिए जानी जाती है।) शामिल हैं। उनके पास कई बछड़े हैं। मुस्तफा मांगने वाले को खुशी से बछड़ा देने को तैयार हो जाते हैं। 
स्टोरी 2: किसीपुलिस वाले के घर में पिस्तौल या संभवत: गोला-बारूद, कवच या लाठी होने की उम्मी होगी, लेकिन गुवाहाटी के नजदीक इस पुलिसकर्मी के घर में असम के एक आम गांव की जिंदगी बताने वाला साजो-सामान भरा है। गुवाहाटी में एंटी करप्शन और विजिलेंस विभाग में इंस्पेक्टर सोमेश्वर दत्ता ने महसूस किया कि उनके क्षेत्र के कई युवाओं ने ऐसी कई चीजें नहीं देखी हैं, जिनके साथ वे और उनकी पीढ़ी के लोग बढ़े हुए हैं। उन्हें लगा कि वर्तमान पीढ़ी धीरे-धीरे खेती से दूर होती जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने घर के आगे हल लगाकर प्रयोग किया, जिसने युवा लड़कों और लड़कियों का ध्यान खींचा। इससे उन्हें प्रेरणा मिली और उन्होंने ग्राम्स जीवन से जुड़ी सभी चीजें घर में जुटा लीं। 
आज उनके रूफटॉप-म्यूजियम में सबकुछ है- बैलगाड़ी से लेकर अलग-अलग तरह के हल और मछली पकड़ने का सामान तक। ताकि शहरी युवा अपनी परंपराओं के ज्यादा नज़दीक सकें। एक कोने में एक चूल्हा लगा है जैसा कि पहले इस्तेमाल होता था। चाय की एक केतली बांस के सहारे दिनभर लटकी रहती है, जिसके नीचे चावल की भूसी से लौ जलती रहती है। इसे धुआं चांग कहा जाता है। यहीं ऊपर एक ताक में आग जलाने की लकड़ियां रखी रहती हैं। खार बनाने के लिए केले की छाल भी रखी गई है। एक डलिया में धान के बीज और अन्य चीजें हैं। गांवों में चूल्हे के आसपास ही घर के सभी लोग जमा हो जाते थे और केतली में बन रही चाय को मिलकर पीते थे। केतली में दिनभर पानी उबलता रहता था। दत्ता ने अपनी छत को पांच हिस्सों में बांटा है- झोपड़ी और इसका अंदरूनी हिस्सा, खेती की सामग्री, मछली पकड़ने का सामान, मनोरंजन, खेल और बुनाई के उपकरण। दत्ता पर्यावरणविद भी हैं, जो अलग-अलग स्थानों से दुर्लभ पौधे एकत्रित करते हैं और इन्हें मुफ्त बांटते हैं। न्यूरोसर्जन सत्यकाम फुकन ने उनके म्यूजियम पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है- पुलिसमैन्स म्यूजियम। इसे यूट्यूब पर अपलोड किया गया है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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