Saturday, September 10, 2016

कश्मीर मसले का हल 'वार्ता' नहीं; सख्त रुख अपनाना ही पड़ेगा

ब्रिगेडियर आर. पी. सिंह (रिटायर्ड)

चार सितंबर को कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से मिलने से इंकार कर दिया। कट्टरपंथी धड़े के नेता सैयद अली शाह गिलानी ने भी उनसे मुलाकात करने से मना कर दिया। दरअसल चार सांसद-माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा नेता डी राजा, जदयू नेता शरद यादव और राजद के जयनारायण प्रतिनिधिमंडल से इतर गिलानी से मिलने उनके आवास पर गए थे जहां उन्हें नजरबंद कर रखा गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के विरोध में हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के समर्थकों द्वारा वहां दीवारों पर गो इंडिया गो बैक के नारे लिखे गए और आजादी के समर्थन में नारे लगाए गए। गिलानी ने खिड़की से सभी सांसदों को एक नजर देखा, लेकिन उनसे किसी तरह की वार्ता नहीं की। उनके इस हाव-भाव को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने टिप्पणी की कि अलगाववादियों में न तो कश्मीरियत है और न ही इंसानियत। सांसदों का यह समूह बीएसएफ के एक कैंप में कैद जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक से भी मिला। उन्होंने सांसदों से कहा कि जब वह दिल्ली आएंगे तब उनसे मिलेंगे। पूर्व हुर्रियत प्रमुख अब्दुल गनी भट ने नेताओं का स्वागत किया, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि वह उनसे वार्ता नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि यह व्यर्थ की कवायद है। जब तक भारत कश्मीर पर पाकिस्तान से वार्ता नहीं करता तब तक कश्मीर समस्या का कुछ ठोस समाधान हासिल नहीं होगा। यदि भारत सिर्फ कश्मीरियों या पाकिस्तान सिर्फ कश्मीरियों से वार्ता करता है तो हम किसी भी समाधान पर नहीं पहुंच पाएंगे। इससे पहले दो सितंबर को गिलानी ने कहा था कि संसद में कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताने वाला प्रस्ताव पारित कराने के बाद सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर आ रहा है। जाहिर है, इस प्रतिनिधिमंडल के पास विवाद का हल करने और कश्मीर के लोगों को मौत और विनाशलीला से बचाने का न कोई उद्देश्य है और न ही इरादा। उन्होंने कहा कि प्रतिनिधिमंडल को संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए जहां उन्हें जनमत संग्रह का रास्ता तैयार करने के लिए जम्मू और कश्मीर की विवादित प्रकृति को स्वीकारना चाहिए। अलगाववादियों ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मिलने के निमंत्रण को भी अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह सारी कवायद एक धोखा है और मुख्य मुद्दों के समाधान के लिए पारदर्शी एजेंडा आधारित वार्ता का यह विकल्प नहीं हो सकता है। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के एक अन्य सदस्य असादुद्दीन ओवैसी उदारवादी हुर्रियत के नेता मीर वाइज उमर फारुख और शब्बीर शाह से मिले, लेकिन वे भी मुख्य मुद्दे पर चर्चा से दूर रहे और यह मुलाकात सिर्फ हालचाल पूछने तक सीमित रही। कुल मिलाकर अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल सिर्फ सिविल सोसायटी के सदस्यों से बातचीत कर सका। 

हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के सुरक्षाबलों द्वारा मारे जाने के बाद आठ जुलाई से ही घाटी में सामान्य जनजीवन अस्त व्यस्त है। ग्रामीण कश्मीर के कई हिस्से आजाद क्षेत्र की तरह व्यवहार कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को तहस-नहस कर दिया है जिससे सुरक्षाबलों को उन क्षेत्रों में जाना कठिन हो गया है। सरकार ने सभी शिक्षण संस्थाओं को बंद कर दिया है। प्रीपेड मोबाइल और इंटरनेट सेवा निलंबित है। कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में सिर्फ पोस्ट पेड मोबाइल और बीएसएनएल की ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा ही सुचारु रूप से बहाल है। घाटी में अधिकांश युवा खासकर गरीब परिवारों के आज इस्लामिक विचारधारा से बुरी तरह प्रभावित हैं। उन्हें सोची समझी रणनीति के तहत सुरक्षाबलों के कैंपों पर हमले के लिए उकसाया जा रहा है। जब ऐसे तत्व हथियार छीनने या लूटने या सरकारी संपत्ति को नुकसान करने की कोशिश करते हैं, तब सुरक्षाकर्मी उन पर गोली चलाने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इससे ¨हसा का एक चक्र आरंभ हो जाता है। सुरक्षाकर्मी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पैलेट गन का इस्तेमाल करते हैं, जो कि भीड़ को तितर-बितर करने का एक बेहतरीन विकल्प है। कुछ प्रदर्शनकारी पैलेट गन के चलते अंधे हो गए हैं। यह भी एक अलग मुद्दा बन गया है। प्रदर्शनकारियों को हवाला के जरिये आए पैसे से भुगतान किया जाता है। एनआइए की टीम हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में इस पैसे के लेन-देन का जांच कर रही है। सैयद शाह गिलानी के बेटे से भी पूछताछ की गई है।

घाटी में एक बड़ी आबादी कट्टर मौलवियों के प्रभाव में है और उनमें से कई आज आइएसआइएस के समर्थक बन गए हैं। आजादी से उनका मतलब इस्लामिक कानून लागू करने और हंिदूू बहुल लोकतंत्र का हिस्सा नहीं रहने से है। कश्मीर घाटी आज नरक में तब्दील हो गई है। यहां से युवाओं को जिहाद के खातिर अपनी जान देने के लिए उकसाया जा रहा है। किसी ने अलगाववादियों, कट्टर मौलवियों या हुर्रियत नेताओं से नहीं पूछा है कि यदि तथाकथित जिहाद जन्नत का मार्ग है तो उन्होंने अपनी संतानों को इसमें शामिल क्यों नहीं किया है? क्यों सिर्फ गरीबों के बच्चों को ही अपने कवच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं? क्यों अलगाववादी नेता मस्जिदों से लोगों को उकसाते हैं और वे खुद सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं? दुर्भाग्य है कि आज कोई भी उनसे इस तरह के सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा है।

आज सरकार को दो तरह की रणनीति अपनाने की जरूरत है। सबसे पहले सरकार को अलगाववादियों और उनके समर्थकों की असलियत सामने लाकर उनको अलग-थलग करना चाहिए। अलगाववादियों की संपत्ति और देश-विदेश में समृद्ध जीवन जी रही उनकी संतानों की पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। इसके साथ ही खुफिया एजेंसियों को घाटी और नियंत्रण रेखा के उस पार क्या कुछ चल रहा है, इसकी जानकारी जुटानी चाहिए। पाकिस्तान के साथ उनके किसी भी तरह के संपर्क को खत्म कर देना चाहिए। इसके अलावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित बाल्टिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में पाकिस्तान के दमन के शिकार लोगों को नैतिक समर्थन देना भी भारत की नीति का हिस्सा होना चाहिए। 

बलूचिस्तान, खैबर, पीओके और गिलगित में अशांति की गूंज इस्लामाबाद से अधिक बीजिंग में सुनाई देगी। क्योंकि प्रस्तावित चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर यहीं से होकर गुजर रहा है। चीन पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर से पीछे हटने के लिए मजबूर कर सकता है। पाकिस्तानी सेना सिर्फ युद्ध की भाषा समझती है। एक बार जब पाकिस्तानी सेना की पूंछ दबेगी तब वह भारत के साथ दोस्ताना संबंधों का मूल्य समङोगा। गुजराल सिद्धांत में इस्लामाबाद से निपटने के कई सुझाव हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने मोहरे कुछ इस तरह चलने होंगे कि कश्मीर में दुस्साहस के लिए पाकिस्तान को असहनीय मूल्य चुकाना पड़े। नई दिल्ली को बीजिंग की चेतावनियों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। कश्मीर समस्या को संभालने का एकमात्र तरीका यही है कि पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया जाए। इस्लामाबाद या हुर्रियत के साथ शांति वार्ता हमें कभी भी स्थायी समाधान के रास्ते पर नहीं ले जाएगी।

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साभारजागरण समाचार 
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