Friday, September 16, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: संवेदनशीलता की शुरुआत हमेशा ऊपर से ही होनी चाहिए

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
यह वार्तालाप मैंने स्पेशल नीड एजुकेशन होम (एसएनईएच) की रिसेप्शनिस्ट और उसके बॉस के बीच होते हुए सुना। एसएनईएच ऐेसा लर्सिंग सेंटर है जो 3 से 40 वर्ष आयुवर्ग के 92 विशेष योग्यता वाले बच्चों वयस्कों को
ट्रेनिंग देता है, जिनका मस्तिष्क विकसित नहीं हो रहा है। गुरुवार को मैं मध्यप्रदेश के नागदा स्थित सेंटर पर सद्‌भावना मुलाकात के लिए गया था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रिसेप्शनिस्ट अपनी कुर्सी पर बैठी थी और उसकी बॉस ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट डॉ. नैना उसके पास खड़ी थीं, जो दफ्तर के शिष्टाचार के विपरीत दिखाई देता था। लेकिन ऐसा इसलिए था, क्योंकि 35 वर्षीय रिसेप्शनिस्ट ममता चावंद के दोनों पैर पोलियो के कारण निरुपयोगी हो गए थे। उसने याचना के स्वर में कहा, 'मेडम क्या आप मुझे बैंक जाने के लिए दो घंटे की छुट्‌टी देंगी? मुझ कुछ पैसे निकालने हैं।' बॉस ने उससे पूछा, 'तुम्हें बैंक जाने की क्या जरूरत है? क्या तुम्हारे पास एटीएम कार्ड नहीं है?' ममता ने कुछ और धीमी आवाज मंे कहा, 'मेडम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए एटीएम कार्ड का क्या उपयोग, मैं तो एटीएम स्क्रीन तक या पासवर्ड पंच करने की जगह तक भी नहीं पहुंच सकती। वहां स्टूल भी नहीं होता कि उसके सहारे हम अपना पैसा निकाल लें।' मैं बॉस के चेहरे की प्रतिक्रिया तो नहीं देख सका, लेकिन मेरा चेहरा पीला पड़ गया। वे बिल्कुल ठीक कह रही थीं। एक तरफ तो हमने ज्यादातर भारतीयों को बैंक खाते खोलने के लिए आकर्षित किया है ताकि कमजोर तबकों को योजनाओं के आर्थिक लाभ और रियायतें सीधे उनके खातों में हस्तांतरित करके दिए जा सके। दूसरी तरफ हमारी टेक्नोलॉजी और नई पहल इतनी समावेशी नहीं है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश के कम से कम 2.68 करोड़ पंजीकृत दिव्यांगों तक देशभर में विभिन्न बैंकों द्वारा स्थापित लाखों एटीएम का फायदा पहुंचा सकें। 
आपको यह जानकर अचरज होगा कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने हाल ही में दिव्यांगों के लिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग की सुविधा शुरू की है, जो 16 मार्च 2016 के पहले उन्हें उपलब्ध नहीं थी। बरसों तक उन्हें प्राप्त सुविधा का लाभ वे रेलवे स्टेशन के बुकिंग काउंटर पर जाकर ही ले सकते थे। अब वे ऑनलाइन टिकट बुक कर सकते हैं और यात्रा के दौरान टिकट चेकर उनका सर्टीफिकेट उसी तरह चेक कर सकता है जैसे वे वरिष्ठ नागरिकों के करते हैं। हाल ही में मैंने सुना है कि रेलमंत्री के पास दिव्यांगों की बोगी ट्रेन के मध्य में रखने का अनुरोध लंबित पड़ा है ताकि वे स्टेशन पहुंचते ही ट्रेन पर सवार हो सकें। वर्तमान में ये बोगी ट्रेन के दोनों छोर पर होती हैं। 
यदि कार्यक्रम अंतिम क्षणों में रद्‌द नहीं हुअा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना 66वां जन्मदिन 17 सितंबर को गुजरात के नवसारी में दिव्यांग बच्चों के बीच ही गुजारेंगे। वहां प्रधानमंत्री और केंद्रीय सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्री थावरचंद गेहलोत 11,248 दिव्यांगों को 10.44 करोड़ रुपए के सहायक उपकरण प्रदान करेंगे। पता चला है कि दिव्यांगों के प्रति प्रधानमंत्री बहुत संवेदनशील हैं और यही वजह है कि जमीनी स्तर पर कई छोटे-छोटे बदलाव हो रहे हैं ताकि उनकी जिंदगी को आसान बनाया जा सके। यह जानना दिलचस्प है कि भारत ने स्वतंत्रता के लगभग 48 वर्षों बाद 1995 में जाकर पहला विकलांगता अधिनियम बनाया। ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में तेजी से सुधार लाने के लिए प्रधानमंत्री मिसाल सामने रखना चाहते हैं। मोदी के जन्मदिवस का यह जश्न पूरे राजनीतिक वर्ग में बड़ा मानसिक बदलाव लाएगा। 
फंडा यह है कि भावना के रूप में संवेदनशीलता हमेशा शीर्ष से शुरू होनी चाहिए ताकि जमीनी स्तर पर उनका अमल सुनिश्चित किया जा सके। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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