Thursday, September 15, 2016

सभी में होता है 'क्रुसेडर': जरूरत है इसे बढ़ावा देने की

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: क्लॉड लीला परुलेकर आचार-व्यवहार में पूरी तरह फ्रेंच थीं, लेकिन वे इतनी धाराप्रवाह मराठी बोलतीं कि पक्के मराठीभाषी, यहां तक कि पुणे के लोग भी चकित रह जाते। वे जाने-माने मराठी पत्रकार एनबी
परुलेकर और फ्रेंच महिला शांता जानवीएव पामेरे की इकलौती संतान थीं। जैसा कि सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान सही समय पर विवाह कर ले और सेटल हो जाए, परुलेकर ने भी अपनी इकलौती संतान के लिए जीवन साथी तलाश लिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह प्रतिष्ठित समृद्ध परिवार से था। युवती ने रिश्ता चुपचाप स्वीकार कर लिया। उनकी कोई मांग भी नहीं थी, सिवाय एक के। वह यह थी कि वे अपने प्यारे पेट को ससुराल ले जाना चाहती थीं, लेकिन भावी ससुराल ने अपने शानदार घर में कुत्ते के प्रवेश को नकार दिया। उस दिन उन्होंने एक बड़ा फैसला किया कि वह जीवनभर अविवाहित रहंेगी और पूरा जीवन चार पैरों वाले अपने इन दोस्तों को समर्पित कर देंगी। उन्होंने अपने साथ कार्यकर्ताओं का एक समूह जुटाया और वे जीवनभर जानवरों के अधिकारों के लिए संघर्ष करती रहीं। 
इस तरह एक रिश्ता टूटने के साथ उनकी एनिमल केयर की यात्रा शुरू हुई। 1970-1990 के उन दिनों में कुछ ही लोग को प्राणी अधिकारों का पता था। परुलेकर का नाम मेनका गांधी के समान इस मामले में सम्मान से लिया जाता था। पशु कल्याण के प्रति उनके इस समर्पण का ही नतीजा है कि पशु अधिकार के कार्यों में वे शीर्ष लोगों में शामिल की जाती हैं। परुलेकर का पुणे का घर जो उनके 'जीव रक्षा' संगठन का पता भी था, 400 से ज्यादा रोगी पशुओं का आश्रय बना। इस मंगलवार जानी-मानी एनिमल वेलफेयर कार्यकर्ता और प्रसिद्ध पत्रकार परुलेकर का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे 2007 से व्हीलचेयर पर थीं। उन्हें एक के बाद एक लकवे के कई आघात सहने पड़े थे। 
स्टोरी 2: हुसैन पठान की मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में टेलरिंग की दुकान है। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि तीन गुना सस्ते रेडीमेड गारमेंट्स के इस दौर में टेलर की क्या कमाई होगी और वह भी एक दूर के शहर में। लेकिन जब उनके बच्चे मेमोना खान (16) और आमिर खान (14) एक प्रस्ताव के साथ आए कि वे अपने स्कूल में एक टॉयलेट बनवाना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने 10 हजार रुपए बचाए हैं तो उनके सेल्फमेड पिता ने पलकें तक नहीं झपकाईं और नरसिंहपुर के महारानी लक्ष्मीबाई गर्ल्स हायर सेकंडरी स्कूल में टॉयलेट बनवाने में कम पड़ रहे 14,500 रुपए का इंतजाम कर दिया। 1600 बच्चों वाले इस स्कूल में सिर्फ दो ही टॉयलेट हैं और इन बच्चों द्वारा बनवाई जा रही तीसरे टॉयलेट से कुछ समस्या तो कम होगी ही। 
मेमोना और आमिर दोनों के इस काम की खास बात यह है कि वे इसके लिए दो साल से अपने जेबखर्च और उन्हें मिलने वाली 'अल्पसंख्यक समुदाय' स्कॉलरशिप से पैसा बचा रहे थे। पठान को इस बात ने प्रभावित किया कि उनके बच्चों ने जेबखर्च को खाने-पीने और आइसक्रीम पर खर्च नहीं किया। उन्होंने इन छोटी-छोटी खुशियों को छोड़ा और बड़े समूह को बड़ी खुशी और सुविधा देने के लिए काम किया। 11वीं और 10वीं कक्षा के उनके इन बच्चों की समाज के लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा ने पठान को अपनी क्षमता से ज्यादा सहयोग देने के लिए प्रेरित किया। मेमोना 2011 में उस समय चर्चा में आईं थी, जब उसने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 'मामाजी' संबोधित कर लिखे पत्र में स्कूल के पास सड़क बनवाने की मांग की। चौहान ने यह कहते हुए फंड मंजूर कर दिया कि 'भांजियों की बात कैसे टाल सकता हूं?' पत्र लिखने के दो साल बाद सड़क बन गई। 
फंडा यह है कि हर किसी में सुधारों का जीन होता है और अगर इसे सही तरीके से आगे बढ़ाया जाए तो यह एक अभियान का रूप ले सकता है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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