Sunday, September 4, 2016

मानेसर जमीन घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी

गुड़गांव के मानेसर भू-अधिग्रहण घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) की टीम ने शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रोहतक व चंडीगढ़ स्थित आवास के अलावा दिल्ली, गुड़गांव और पंचकूला समेत हरियाणा में कुल 24 जगहों पर छापे मारे। जिन लोगों के यहां छापे मारे गए, उनमें हुड्डा के अलावा, एक
आइएएस व दो रिटायर्ड आइएएस अधिकारियों के अलावा हुड़्डा के कुछ नजदीकी लोग भी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ ने 1.15 करोड़ रुपये से जुड़े दस्तावेज सीज किए हैं। चंडीगढ़ में सीबीआइ की अलग-अलग टीमों ने तीन ठिकानों पर छापे मारे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सीबीआइ की टीमें अपने साथ कुछ दस्तावेज भी लेकर गई हैं। सीबीआइ को आशंका है कि भूमि घोटाले में करीब 1500 करोड़ की गड़बड़ हुई है। छापे की कार्रवाई के दौरान हुड्डा दिनभर अपने दिल्ली आवास पर ही रहे। वहां सीबीआइ की टीम नहीं पहुंची और न ही हुड्डा से अभी किसी तरह की पूछताछ हुई है। सुबह पांच बजे से ही सीबीआइ ने छापे मारने शुरू कर दिए थे। शाम को पांच बजे तक तलाशी की कार्रवाई चलती रही। जांच एजेंसी ने इस मामले में 17 सितंबर, 2015 को मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव की शिकायत पर केस दर्ज कर इस मामले की जांच शुरू की थी। इससे पहले 12 अगस्त, 2015 को हरियाणा पुलिस भी मानेसर पुलिस स्टेशन में इस मामले को लेकर केस दर्ज कर चुकी है। जमीन अधिग्रहण को लेकर मानसेर, नौरंगपुर व लखड़ौला गांव के ग्रामीण अदालत में भी गए थे। शिकायतकर्ता ओमप्रकाश यादव ने आरोप लगाया है कि मानेसर व उसके आसपास के गांवों की करीब 400 एकड़ जमीन किसानों को डराकर बड़ी चालाकी से बिल्डरों को दी गई।1सीबीआइ के अनुसार, प्राइवेट बिल्डरों ने नौकरशाहों एवं सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे नेताओं के साथ मिलीभगत करके किसानों से 400 एकड़ के करीब जमीन खरीद ली। अगस्त-2004 से अगस्त-2007 के दौरान किसानों को भूमि अधिग्रहण के नोटिस देकर डराया गया और उनसे यह जमीन फिर बिल्डरों ने खरीदी। बाद में सरकार ने इस जमीन को रिलीज भी कर दिया। सरकार ने इन बिल्डरों व प्राइवेट कंपनियों को बाद में इस जमीन के लिए सीएलयू व लाइसेंस भी जारी कर दिए। किसानों को लगभग 1500 करोड़ की चपत के आरोप सीबीआइ की एफआइआर में लगाए गए हैं।
ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इनेलो सरकार ने अगस्त-2004 में मानेसर, नौरंगपुर व लखड़ौला गांव की 912 एकड़ भूमि में औद्योगिक श्रमिकों के लिए आवास बनाने की योजना बनाई। मार्च-2005 में हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रद कर दिया। किसानों को सेक्शन-4 के बाद सेक्शन-6 के भी नोटिस जारी किए गए। इसी दौरान कई किसानों ने अपनी जमीन प्राइवेट लोगों व बिल्डरों को बेच दी। 688 एकड़ के करीब ऐसी भूमि बची, जिसके लिए सेक्शन-9 के नोटिस जारी हुए। सरकार ने अवॉर्ड की भी तैयारी कर ली थी, लेकिन एकाएक इसे रद कर दिया गया। इस बीच लगभग 400 एकड़ उस भूमि को सरकार ने रिलीज कर दिया, जो बिल्डरों व अन्य प्राइवेट कंपनियों द्वारा खरीदी गई थी। इन बिल्डरों में कई नामी कंपनियां भी शामिल हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार ने सितंबर 2015 में मानेसर के भूमि घोटाले की जांच सीबीआइ को सौंपी थी। पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप लगाए गए हैं कि उनके कार्यकाल में मानेसर की 912 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने के लिए सेक्शन-4 के नोटिस जारी किए गए। इसके बाद सेक्शन-6 के नोटिस भी जारी हुए। सरकार ने तो कुल 912 एकड़ भूमि को अधिग्रहण करने के नोटिस जारी किए थे लेकिन कई किसानों ने नोटिस के डर के कारण अपनी जमीन बिल्डरों व अन्य लोगों को बेच दी।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के ठिकानों पर सीबीआइ के छापे में कोई राजनीतिक दुर्भावना नहीं है। भले ही कोई पूर्व मुख्यमंत्री हो, मुख्यमंत्री हो या फिर ताकतवर अधिकारी, अगर किसी ने कुछ भी गलत किया है तो कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा। सीबीआइ स्वायत संस्था है और अब तक की जांच व सामने आए तथ्यों के आधार पर ही उसने कार्रवाई की है। - मनोहर लाल, मुख्यमंत्री 
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साभारजागरण समाचार 
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