Wednesday, September 28, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: डर, उम्मीद और लालच से चलती है जिंदगी

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
डर: उत्तर-पूर्वी भारत के जलपाईगुड़ी के गाेरमारा में उत्तर धूपजोरा गांव में वे रहते हैं। 50 साल के आदिवासी सानिका ओरागोन का शरीर बेंत के समान छरहरा है और फुर्ती किसी भी जानवर से ज्यादा। उनकी कुल्हाड़ी
जानवरों पर बिजली की तेजी से चलती थी। कई बार जेल जाने के बाद भी इस डरावने शिकारी को कोई रोक नहीं पा रहा था। किंतु पिछले दस साल में गोरमारा नेशनल पार्क में शिकार का सिर्फ एक मामला सामने आया, क्योंकि शिकारी अब रक्षक बन गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस कायापलट में वन विभाग की बहुत कम भूमिका है। दस साल पहले जंगल से शाम के समय वे लाैट रहे थे। हाथ में कोई हथियार नहीं था और वे कामना कर रहे थे कि कोई अनहोनी हो जाए, लेकिन डर सही साबित हुआ। तेंदुआ सामने खड़ा हुअा। वे भगवान से प्रार्थना करने लगे कि अगर तेेंदुए ने छोड़ दिया तो वे बची हुई जिंदगी जानवरों की रक्षा में लगाएंगे। भरोसा करें या नहीं, लेकिन तेंदुए ने उन्हें छोड़ दिया, जो इस जानवर के स्वभाव के बिल्कुल उलट था। अब वे पर्यटकों के लिए ड्रम बजाकर जिंदगी चलाते हैं। 
उम्मीद: पेडिएट्रिक पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. भारत रेड्‌डी दुविधा में थे। 13 साल की मालिनी के पिता ने पैसों की कमी के कारण उसका इलाज जारी रखने से इंकार कर दिया था। वो ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर के भरोसे थी। यह मशीन उसे ऑक्सीजन का अतिरिक्त डोज प्रदान करती थी। उसे 3 साल की उम्र से इंटरस्टिशल लंग डीसिज हुई थी। शरीर में बहुत ज्यादा सक्रिय रसायनों की वजह से उसके दोनों गुर्दे खराब हो गए थे। उसके इलाज पर हर महीने पांच हजार रुपए खर्च हो रहे थे, जबकि परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य की आय 6000 रुपए महीना थी। जब रेड्डी ने इस मुश्किल परिस्थिति के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो मैसूर की डॉ. माधुरी मूर्ति ने सहयोग किया और पिछले चार महीनों से वे खर्च उठा रही हैं। मािलनी को अभी छह और महीने मशीन के सहारे रहना पड़ेगा। इसके बाद डॉक्टर्स गुर्दे की बायोप्सी करेंगे और आगे इलाज करेंगे। डॉक्टरों को भराेसा है कि वह ठीक हो जाएगी और अन्य बच्चों की तरह स्कूल भी जा सकेगी। हालांकि, बाद में भी उसका इलाज चलता रहेगा। 
लालच: मध्य प्रदेशके छिंदवाड़ा जिले स्थित पांढुर्णा के अजय डोबले मार्च 2016 में एक दिन अपना 11 एकड़ का खेत गर्व से देख रहे थे। खेत में संतरे के 1800 पेड़ थे और इन पर पांच लाख से ज्यादा फल लगे थे। उन्होंने एक संतरे की कीमत 2 रुपए लगाई थी और कुल दस लाख रुपए की मांग थी। खरीददार ने संतरों के आकार का हवाला देकर कीमत 9.5 लाख रुपए लगाई, लेकिन अजय नहीं माने और डील रद्द हो गई। चार दिन बाद एक तूफान आया। पेड़ उखड़ गए, कई संतरे जमीन पर गिरे और काफी नुकसान हुआ। अजय बचे हुए संतरों के लेकर जबलपुर गए और उन्हें इसके बदले 2.5 लाख रुपए मिले। अजय के ही शहर के एक और शख्स गणेश मांजरेकर 25 बकरियाें और एक बकरे के मालिक थे। 9 सितंबर को वे 25 बकरियों के लिए भावताव कर रहे थे। कीमत तय हुई 1.40 लाख। यह उनके जीवन की सबसे ज्यादा कीमत थी। 12 सितंबर को खरीददार रुपए लेकर आया। यह सोचकर कि सौदा 26 के लिए है, लेकिन गणेश ने कहा कि वह बकरा नहीं बेचेगा, क्योंकि यह भगवान के लिए है। अब खरीददार ने 1.35 लाख रुपए रखी। यह भी पिछले साल के तुलना में 60 हजार ज्यादा थी, लेकिन गणेश ने इंकार कर दिया और डील रद्‌द हो गई। 14 सितंबर 2016 को बकरियों को चारा खिलाते समय बािरश शुरू हो गई और बिजली गिरने से 32 बकरियां मारी गईं। इसमें से 23 गणेश की थीं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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