Saturday, September 24, 2016

मैनेजमेंट: व्यापक हित के लिए दूसरों के बच्चों को भी सिखाएं

एन रघुरामन 
स्टोरी 1: कलमैंने बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रभु देवा के बारे में पढ़ा कि तीन भाषाओं में बन रही अपनी हॉरर-हास्य फिल्म की शूटिंग के दौरान पिछले सप्ताह उन्हें अस्थायी पेरलिसिस हो गया। डांस तो दूर, डर यह था कि
भविष्य में प्रभु ठीक से चल भी नहीं पाएंगे। शुक्र है कि बाद में डॉक्टरों ने बताया कि यह अस्थायी है और मांसपेशियों में गंभीर खिंचाव के कारण हुआ है। जब भी आप ऐसी खबर सुनते हैं तो सबसे पहले दिमाग में वे बातें आती हैं, जो आपने उस व्यक्ति के बारे में सुनी हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मेरे दिमाग में फिल्म एबीसीडी- एनी बडी केन डांस की शूटिंग के दौरान उनसे हुई मुलाकात की याद अब भी बनी हुई है। फिल्म में प्रभु देवा स्लम डांसर्स को परखते हैं और सिखाकर छिपी प्रतिभा को बाहर लाते हैं। हालांकि यह फिल्मी परदे की बात है। किंतु मैं जानता हूं कि रियल लाइफ में भी कहीं प्रभु देवा की तरह काम हो रहा है। मिलिए राहुल (24) और विनायक चौहान (18) से। ये एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती कही जाने वाली मुंबई के धारावी में वंचित बच्चों के लिए डांस अकादमी 'स्काय रनर्स' चलाते हैं। 
दोनों भाइयों का बचपन भी इसी झुग्गी में बीता। राहुल ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ली और मुंबई पावर डिस्ट्रिब्यूटर बीईएसटी में नौकरी मिलने के बाद आर्थिक स्थिति सुधरी तो वे नवी मुंबई में रहने चले गए। दो साल पहले इन्होंने झुग्गी बस्ती के बच्चों को डांस सिखाना शुरू किया। वे मानते हैं कि कोई भी चीज समाज के किसी वर्ग विशेष के लिए सीमित नहीं है। इनकी आकादमी खुले म्यूनिसिपल ग्राउंड में चलती है, जहां 59 बच्चे फ्री स्टाइल बॉलीवुड पॉपिंग डांस फॉर्मेट सीख रहे हैं। ग्राउंड में नियमित रूप से आने वाले डांस क्लास के दौरान वहां से हट जाते हैं। 
स्टोरी 2: एक छोटे कमरे में कई परिवारों से करीब 100 महिला और पुरुष जुटे हैं। यह गांव का परंपरागत दृश्य है। रात को भोजन के बाद बहुत से लोग एक फिल्म देखने के लिए जुटते हैं। यह स्थान प्रसिद्ध हिल स्टेशन लोनावला के नज़दीक है, जिसे चिक्की (गुड़- मंुगफली के दाने की पटि्टयां) के लिए भी पहचाना जाता है। गर्मियों में मवानी गांव के लोगों को पानी का भारी संकट झेलना पड़ता है। पानी की टंकियों के अलावा यहां जल संग्रहण के साधन नहीं है। पांचों टंकियों में दारारें पड़ चुकी हैं। गांव की महिलाओं को पानी के लिए पास के गांव वीसापुर फोर्ट जाना पड़ता है। गांव में अधिकांश लोग कभी किसान थे, लेकिन अब यह जगह छोड़ चुके हैं और गर्मियों के दिनों में लोनावला में होटलों और चिक्की बनाने वाली यूनिट्स में दिहाड़ी पर काम करने चले जाते हैं। एक दिन अचानक गांव में कुछ युवा आते हैं और अपने एपल कप्यूटर्स लगाते हैं। एक फिल्म शुरू हो जाती है। ये फिल्म कम्यूनिकेशन ग्रेजुएट्स ने बनाई है। इनका प्रोजेक्ट है- डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से गांव वालों को शिक्षित कर राज्य के सूखा प्रभावित गांवों की मदद करना। इस पायलट प्रोजेक्ट का नाम है 'अपरूटेड'। इसमें कई गांवों की सफलता की कहानी की फिल्में हैं, जो कभी सूखे की समस्या से जूझ रहे थे और फिर इससे बाहर गए। आखिरी दो स्क्रीनिंग्स में गांव वालों ने कमाई के वैकल्पिक साधन और भूमि के क्षरण को रोकने के स्थायी उपाय देखें। इस समय जारी बरसात के मौसम में इन लोगों ने पौधे लगाए हैं। इन्होंने जामुन, जाम और आम के पेड़ लगाए हैं। इससे भूमि का क्षरण रुकेगा और उन्हें गर्मियों में जब पानी की कमी होगी तो फल भी मिलेंगे। ये फिल्में उन्हें शॉर्ट और लॉन्ग टर्म में गांव वालों को अपना प्रबंध करने के विजुअल उदाहरण देती हैं। छात्रों के लिए यह फिल्म बनाने का सफल अनुभव और लर्निंग साबित हुई है। इस तरह यह दोनों के लिए फायदेमंद रहा। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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