Monday, August 29, 2016

अनोखी अदालत: घरेलू हिंसा पीड़िताओं के लिए 10वीं पास महिलाएं चला रही हैं नारी अदालत

10वीं-12वीं तक पढ़ीं तृप्ता, सीमा रवीना को भी अपने जीवन में घरेलू हिंसा प्रताड़ना का सामना करना पड़ा था, लेकिन इन्होंने इसे कभी अपनी नियति नहीं बनने दिया। विरोध किया। जीत हासिल की। ये यहीं नहीं रुकीं। संघर्ष जारी रखा। तीनों अब घरेलू हिंसा पीड़िताओं को इंसाफ दिलाती हैं। हिमाचल के छोटे से कस्बे रक्कड़,
थुरल, चंबा, शाहपुर लंज में नारी अदालतें चलती हैं। हाल में एक अदालत सिरमौर में भी शुरू हुई। इनमें से दो अदालतें ये तीनों महिलाएं ही चलाती हैं। तृप्ता सीमा रक्कड़ जबकि रवीना शाहपुर की नारी अदालत में आने वाले मामलों की सुनवाई करती हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इन अदालतों की कार्यशैली और काउंसिलिंग से प्रभावित होकर अब वहां की पुलिस भी ऐसे केस नारी अदालत में भेजने लगी है। तृप्ता बताती हैं कि हर साल घरेलू हिंसा के करीब 100 मामले नारी अदालत में आते हैं। इनमें 85 फीसदी मामले यहीं सुलझा लिए जाते हैं। वे अपने बीते दिन याद करते हुए बताती हैं कि ससुराल पक्ष के लोगों ने हमारी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया था। मैंने विरोध किया तो जेठ ने मुझे पीटना शुरू कर दिया। मैं थाने जा पहुंची। शिकायत की और उसी दिन फैसला कराने पर अड़ गई। पुलिस की मदद से मुझे न्याय मिल गया। 
सीमा कहती हैं कि 12वीं के बाद भी पढ़ना चाहती थी, लेकिन शादी कर दी गई। ससुराल पहुंची तो सास-ससुर की प्रताड़ना झेलनी पड़ी। हालांकि, पति ने मेरा हमेशा साथ दिया। उसी दिन अपनी ही जैसी महिलाओं को न्याय दिलाने की ठान ली। रवीना के पति फौज में थे। घर पर अकेले होने के कारण जेठ उसका शारीरिक शाेषण करता था। रवीना ने खुद पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जेठ को सजा दिलाई। कुछ दिन बाद अलग-अलग मौकों पर ये तीनों एक सामाजिक संगठन के संपर्क में आईं। वहां महिला हिंसा के मुद्दों से जुड़े पहलुओं की जानकारी ली। संगठन ने उनको प्राथमिक रिपोर्ट लिखने, सबूत जुटाने, घर का नक्शा, आस-पड़ोस एरिया, घटनास्थल का नक्शा बनाने, मेडिकल कराने जैसे काम का प्रशिक्षण दिया। 
हिमाचल की ही रहने वाली ये तीनों महिलाएं जब सुनवाई करती हैं, उस दौरान इनके साथ कानून का एक जानकार भी होता है। जैसे, पेशे से वकील पिंकी रक्कड़ की अदालत को सम्भालती हैं। शेष अदालतों को भी ऐसी ही महिलाएं चला रही हैं। 
पिंकी बताती हैं कि शिकायत सिर्फ महिला की बात सुनकर ही स्वीकार नहीं की जाती। क्षेत्र में जाकर तफ्तीश की जाती है। मामला सही पाया जाने पर ही केस लिया जाता है। रवीना का कहना है कि अदालत में हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से भी केस आने लगे हैं। ये कोर्ट सजा नहीं देती। काउंसलिंग के जरिए समझौता करवाती हैं। सुनवाई पर ना आने पर जुर्माना लगाया जाता है। जुर्माना में दूसरे पक्ष का खर्च एक हजार रुपए तक की अतिरिक्त रकम जमा करनी होती है। 16 सालों से चल रही ये अदालत पिछले 10 सालों में 600 से ज्यादा मामलों में न्याय दिला चुकी है। 15 फीसदी दुष्कर्म जैसे बड़े मामले वे मामले, जिनमें दोनों पक्ष समझौते के लिए तैयार नहीं होते, जिला या अन्य अदालतों में भेजे जाते हैं। नारी अदालत केस लड़ने के लिए शिकायतकर्ता को लीगल एड सोसायटी से फ्री में सरकारी वकील दिलवाती है। इस अदालत की शुरुआत आभा भैया ने की थी। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाके में औरतों की स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए मैंने धर्मशाला से 6 किलोमीटर दूर रक्कड़ में नारी अदालत खोला। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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