Tuesday, July 26, 2016

गवाह हुए गायब और हिरण का शिकारी 'बाइज्जत बरी'

विराग गुप्ता (विधिविशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता)

काले हिरणऔर चिंकारा के अवैध शिकार के 18 साल पुराने मामलों में जोधपुर उच्च न्यायालय द्वारा सलमान खान को बरी किए जाने के बाद मीडिया से उनके वकील ने कहा, 'मैंने सलमान को इन मामलों पर कभी तनाव में नहीं देखा। शायद सलमान इस बात को जानते थे कि उनके खिलाफ गलत मामला चल रहा है।' क्या सलमान के वकीलों ने पुराने दांवों का बखूबी इस्तेमाल करके जोधपुर में भी कानून को चित कर दिया? 
आरोपों के अनुसार सलमान और उसके दोस्तों ने संरक्षित प्रजाति के चिंकारा का जंगल में गोली मारकर शिकार किया फिर चाकू से उसे काटा और होटल में पकाकर खा गए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मामला शायद दब ही जाता, यदि जागरूक ग्रामवासियों द्वारा पुलिस और वन विभाग पर सलमान और अन्य सितारों के खिलाफ कारवाई का दबाव नहीं बनाया जाता। फिल्मी दोस्त सलमान के खिलाफ गवाही कैसे देते? शिकार में गई जिप्सी के ड्राइवर ने पूरे मामले में मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 में अपना बयान दर्ज कराया, जिसका क्रॉस एग्जामिनेशन होने पर अदालत ने उस सबूत को खारिज कर दिया। पुलिस को छापे में सलमान के कमरे में कोई हथियार तो मिलना ही नहीं था पर कुछ दिन बाद छापे में एयरगन की बरामदी दिखा दी गई, जिससे जानवर मारा ही नहीं जा सकता। एक ऐसे चाकू की बरामदगी दिखाई गई, जिससे हिरन का गला काटा ही नहीं जा सकता। दूसरी ओर सलमान के हथियार के लाइसेंस को एक्सपायर्ड बताते हुए उसके लिए आर्म्स एक्ट का मामूली मुकदमा दर्ज कर लिया गया, जिस पर फैसला आना अभी बाकी है। इसके बावजूद वन विभाग द्वारा जीप की जांच में खून के धब्बे मिले और पुलिस जांच में छर्रे तथा हिरण के बाल भी मिल गए पर दो जांचों पर भिन्नता के आधार पर अदालत ने उन सबूतों को संदेहजनक करार दे दिया। 
मुंबई के हिट एंड रन केस में भी तो अदालत ने सलमान द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने के सारे सबूतों को अस्वीकार कर दिया था। पारिवारिक ड्राइवर द्वारा 12 साल बाद दिए गए बयान पर सलमान को रिहा करने वाली मुंबई की अदालत ने पुलिस अधिकारी के साक्ष्य को भी अस्वीकार कर दिया था, जिसके बाद रवींद्र पाटिल अवसाद ग्रस्त होकर गुमनाम मौत का शिकार हो गए। जोधपुर में भी मुंबई के इतिहास ने खुद को दोहराया जहां चश्मदीद गवाह जिप्सी ड्राइवर हरीश दुलानी को सलमान के खिलाफ बयान देने पर धमकी मिली और उसके बाद वह रहस्यमय ढंग से गायब हो गए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2006 में देशराज मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार जोधपुर की अदालत यदि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को स्वीकार करते हुए सलमान को बरी करने की बजाय उनकी सजा को कम करने का फैसला देती तो शायद एक नई नज़ीर बन सकती थी। 21वीं शताब्दी के डिजीटल इंडिया में 20 वीं सदी की मानसिकता से 19वीं शताब्दी के कानूनों को लागू किया जा रहा है। ऐसे लचर कानूनी तंत्र में निरीह लोग जहां दंडित होते हैं, वहीं सलमान जैसे सितारे कानून के हाथों से बच निकलते हैं। कुछ दिनों पूर्व सलमान ने अपनी फिल्मों के टीवी अधिकारों से कमाई हेतु 1000 करोड़ रुपए का अनुबंध किया है। दूसरी ओर 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार देश में न्यायिक व्यवस्था के विकास हेतु 5000 करोड़ का प्रावधान किया, उसमें भी राज्यों द्वारा सिर्फ 867 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए। 
सलमान खान को हिट एंड रन केस में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिसंबर 2015 में दोषमुक्त कर दिया गया था, जहां के न्यायाधीश धर्माधिकारी ने अप्रैल 2016 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, 'महाराष्ट्र सरकार का व्यवहार अशोभनीय है, जहां सरकार के पास बड़े बंगले बनवाने के लिए पैसे हैं पर अदालतों के लिए धनराशि नहीं दी जाती।' जर्ज़र अदालती व्यवस्था में आपराधिक मामलों में बड़े लोगों के खिलाफ गवाही देने वालों को या तो खरीद लिया जाता है या फिर वे गायब हो जाते हैं। विधि आयोग ने अपनी 17वीं रिपोर्ट तथा सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में एनएचआरसी मामले में गवाहों की सुरक्षा पर व्यापक आदेश पारित किए हैं, फिर सरकार इस पर प्रभावी कानून बनाने में क्यों नाकाम रही है? 
देश में अजब न्यायिक पराभव है! आपत्तिजनक वक्तव्य के लिए ही सलमान के खिलाफ महिला आयोग द्वारा कारवाई का हल्ला हो रहा है पर संरक्षित जीव के मारने के भयानक अपराध पर ठोस सबूतके बावजूद सजा क्यों नहीं होती? सलमान के दो मामलों में एक अदालत द्वारा 1 वर्ष तथा अन्य अदालत द्वारा 5 वर्ष की दो सजाओं से असमान दंड व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या यह भी संयोग ही है कि सलमान जैसे सितारों को अदालती मामलों में व्यक्तिगत हाजिरी से छूट मिल जाती है परंतु आम जनता 3.5 करोड़ मुकदमों में अदालतों के चक्कर लगाकर परेशान हो रही है? डब्लूपीएसआई की रिपोर्ट के अनुसार देश में जानवरों की हत्या के लगभग 20 हजार मामले हुए हैं परंतु सजा की दर सिर्फ 11.56 फीसदी है। 
जोधपुर उच्च न्यायालय के जज द्वारा 40 पेज से अधिक के दो फैसले में दिए गए तर्कों को अगर सही मान लिया जाए तो सलमान की रिहाई के आदेश के बाद क्या पुलिस और वन विभाग आरोपों के कठघरे में नहीं गए? राजस्थान सरकार को इस मामले में जांच को कमज़ोर करने वाले अधिकारियों या फिर सलमान पर फर्जी मुकदमा बनाने के दोषियों को दंडित करने की कारवाई करने से देश में सही संदेश जाएगा। 
सलमान खान ने अदालत के अखाड़े में कानून को फिर पटखनी दी है, जिससे उनके प्रशंसक भले ही खुश हों, परंतु कानून का कमजोर होता रसूख लोकतंत्र के लिए सुखद नहीं है। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया में न्यायिक व्यवस्था का मज़ाक बन रहा है। कानून के अनुसार देश में शिकार करने की मनाही है और अगर सलमान ने हिरण नहीं मारा तो दोषी कौन था? इसका जवाब मिलने तक न्यायिक व्यवस्था आमजन के तानों का शिकार तो बनेगी ही! 
(येलेखक के अपने विचार हैं।) 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.