Tuesday, November 24, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: क्या हम नाम रखना बंद नहीं कर सकते ?


एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
2013 में जब से वे देहरादून आई थीं पूरी बटालियन की आंख का तारा बन गई थीं। दोनों बहुत ही खूबसूरत थे और वे उन सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती थीं। जैकेट का उनका चयन सभी को खूब लुभाता था। कई बार तो उन्हें लेकर ही चर्चा होती थी। सभी अधिकारी उनसे बात करना पसंद करते थे, क्योंकि वे जिंदादिल, खुशमिजाज थीं और लोगों को चुंबक की तरह अपनी और खींचती थीं। कोई भी अगर जैकेट के बारे में पूछता था तो वे कहतीं, 'अगली बार जब जयपुर जाऊंगी तो आपके लिए भी ले आऊंगी'। उनके पति ऊंचे-पूरे और खूबसूरत अधिकारी थे। दोनों एक-दूसरे के एकदम पूरक थे और यह जोड़ी बहुत सराही जाती। अगर पड़ोसी अधिकारी की पत्नी बीमार हो जाती तो वे उनके लिए खिचड़ी बना देतीं और उनके बिस्तर के पास रख देतीं। पार्टी में अधिकारी पति बार टेंडर बन जाता और वे मछलियों-सी चपलता लिए सभी लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलतीं, उन्हें ऊंची आवाज में संगीत की इजाजत देतीं और देर रात तक पार्टी में मौज-मस्ती चलती रहती। अगली सुबह जब हर अधिकारी रात के हैंगओवर से बाहर निकलने के तरीके सोचता रहता, उनका घर किसी म्यूजियम-सा नज़र आता। सभी चीजें अपनी तय जगह पर, जहां उन्हें होना चाहिए, सुंदरता से सजाई हुई - कश्मीरी कुशन से लेकर राजस्थान और दिल्ली के लिनन तक और जयपुर की पॉटरी सहित कई अन्य सुंदर चीजों तक। उनका घर परफेक्ट था। 
जब अधिकांश अधिकारियों की पत्नियां यह शिकायत करती कि उनके पति गोल्फ क्लब में ज्यादा समय बिताते हैं, तो वे अपनी गर्मजोशी से इसे भुला देने का रास्ता निकाल लेती। जब सभी अधिकारी ड्यूटी पर होते- देश की सीमाओं की रक्षा में और हथियारों का प्रशिक्षण देने-लेने में - ऐसे अकेले क्षणों में वे साथी बनतीं। बेतकल्लुफी से हंसना, कभी कॉफी, गैर जरूरी शॉपिंग, फिल्में देखना, बहुत ज्यादा सोना, मुलाकात, सामाजिक कार्यों के लिए बैठकें, डांसिंग पार्टी में तब तक नाचना जब तक कि पैर थक जाएं, वे कई लोगों के लिए टॉनिक का काम करतीं। और हमेशा जमीन पर बनी रहतीं। 
वे सुरभि हैं- जोश से भरपूर, दोस्ताना और पूरी तरह नि:स्वार्थ। साल 2015 की शुरुआत में सुरभि ने अपने दोस्तों को बताया था कि वे मां बनने वाली हैं। 22 सितंबर को जब वे 7 महीने की गर्भवती थीं, पति को तीन महीने के लिए फौजी ड्यूटी पर जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। एक दिन पहले ही उन्होंने टैंक पर बैठकर शानदार फोटो भेजा था। सुरभि ने उस फोटो को चूमा था और सो गई। उस रात कुछ हुआ - एक शार्प नेल पता नहीं कहां से आई और मेजर ध्रुव यादव के गले में लगी। और इसके बाद सुरभि के जीवन का सूरज फिर कभी नहीं उगा। प्रेगनेन्सी की वजह से वे जैसलमेर में अंतिम संस्कार में भी नहीं जा सकी। वे इतनी मजबूत थीं कि जब माता-पिता लौटे तो उन्होंने पूछा कि 'ध्रुव को ज्यादा दर्द तो नहीं हुआ'? 
जब लोग उनसे मिलने आते और उन्हें गले लगाते तो वे उन्हें मजबूती से थाम लेतीं और कानों में कहतीं - 'वह चला गया'! लोग रो पड़ते, उसके गालों पर आंसू खामोशी से ढुलक जाते। नम आंखों के पीछे सख्त सुरभि नज़र आती, कल्पना से ज्यादा मजबूत, जबकि यह सबसे नाजुक पल थे। सुरभि सभी से हमेशा की तरह अच्छे से मिली, लेकिन एक दिन वह टूट गई। उस दिन आधिकारिक पत्र आया था, जिस पर उसे दिवंगत मेजर ध्रुव की 'विधवा' के रूप में हस्ताक्षर करना थे। टूटे दिल से सुरभि अपने जीवन में रफ्तार पकड़ रहीं हैं। 15 नवंबर को उन्होंने बेटे को जन्म दिया। 18 नवंबर को उनकी शादी की चौथी सालगिरह थी। 
फंडायह है कि इंसान अपना हौसला खो बैठता है जब उसे किसी कृत्रिम नाम से संबोधित किया जाता है। बेवजह नाम रखेे जाते हैं। तब यह सच में काफी दर्द पहुंचाता है। क्या हमारा समाज हमारे युवाओं को ऐसे फेल्युअर और लूजर जैसे उपनाम देना बंद नहीं कर सकता? पता नहीं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभारभास्कर समाचार 
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