Thursday, October 8, 2015

सुप्रीम कोर्ट अपडेट: पंचायत चुनाव में योग्यता तय करने से कमजोर होगा लोकतंत्र

हरियाणा में पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों के लिए शिक्षा सहित विभिन्न शर्तें निर्धारित करने के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू हुई। याचिकाकर्ताओं ने शर्तों को मनमाना करार देते हुए सवाल उठाया कि जब सांसद और विधायक ही नहीं बल्कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केबिनेट मंत्री बनने केलिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं है तो सरपंच के लिए ऐसी अनिवार्यता क्यों? इस मामले में वीरवार को फिर बहस होगी।
हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2015 की वैधता को चुनौती पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कीर्ति सिंह ने न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करना लोकतंत्र को कमजोर करना है। एक और जहां सांसद और विधायक बनने के लिए कोई शैक्षिणक योग्यता निर्धारित नहीं है, वहीं लोकतंत्र के सबसे निचले स्तर पंचायत के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित कर दी गई है। उन्होंने कहा कि सांसद और विधायकों का काम वृहद है। वे कानून बनाते हैं। बावजूद उनके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि यह मानना कि सिर्फ शिक्षित लोग ही शिक्षा को प्रमोट कर सकते हैं, यह सही नहीं है। न तो संविधान में और न ही जन प्रतिनिधि कानून में इस तरह की योग्यता निर्धारित करने की बात है।
याचिकाकर्ता के वकील संजय पारिख ने कहा कि बैंक लोन न देने वाले लोगों को चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि लोन न चुकाने के कई कारण हो सकते हैं। खेती खराब होने या किसी अन्य कारणों से अगर कोई लोन नहीं चुका पाता तो उसे चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाना गलत है। गांवों में गरीबी बहुत ज्यादा है। लोन न चुकाना उनकी मजबूरी हो सकती है। बिजली बिल का भुगतान न करने वालों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी को भी गलत बताते हुए पारिख ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का बिजली बिल अधिक आया हो और उसने इसको चुनौती दी हो तो क्या उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए।
क्या हैं नए नियम: नए नियम के तहत पंचायत चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के लिए 10वीं और महिलाओं व दलित वर्ग केलिए आठवीं पास होना अनिवार्य कर दिया गया है। न्यूनतम शैक्षिणक योग्यता निर्धारित करने के साथ, घरों में शौचालय होना, बिजली बिल और सहकारी बैंकों का कर्ज बकाया नहीं होने की शर्त भी थी।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने: क्या बात कर रहे हैं आप। किस तरह की दलीलें दे रहें आप। ये तर्क कहीं और के लिए हैं और इस तरह की दलील आप अदालत के समक्ष नहीं दे सकते हैं। कृपया कानून और संविधान के मुताबिक आप अपनी दलील रखें।
क्या थी दलील: याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जिन लोगों पर बिजली बिल बकाया है उनके चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगाया जा सकता क्योंकि सांसदों और विधायकों पर विभिन्न सर्विस प्रोवाइडर के लाखों रुपये बकाया होते हैं फिर भी उनके चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है।
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साभारअमर उजाला समाचार 
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