Thursday, August 20, 2015

आठवीं में फेल न करने की नीति में बदलाव का रास्ता साफ़, दसवीं में बोर्ड परीक्षा पर भी सहमति

दसवीं बोर्ड की वापसी और पहली से आठवीं कक्षा तक फेल नहीं करने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) को खत्म करने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड यानी कैब की बैठक में इन दोनों मुद्दों पर राज्यों ने केंद्र सरकार से तुरंत निर्णय लेने की मांग की। मगर मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने अंतिम फैसला लेने से पहले एहतियात के तौर
पर सभी राज्यों से लिखित में अपनी राय देने को कहा है। ईरानी ने बैठक के बाद कहा कि दसवीं बोर्ड की वापसी और कक्षा आठ तक फेल नहीं करने की नीति को हटाने की मांग ज्यादातर राज्यों के शिक्षा मंत्रियों ने की। इस मुद्दे पर राज्यों में सर्वसम्मति थी। मगर मंत्रालय ने सभी राज्यों को 15 दिन के अंदर अपनी राय लिखित में देने के लिए कहा है। ईरानी ने कहा कि पिछली सरकार के दौरान दसवीं बोर्ड की वापसी और आठवीं कक्षा तक फेल नहीं करने की नीति को हटाने को लेकर उप समिति बनी थी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट आज की बैठक में ही मंत्रालय को दी है। उन्होंने बताया कि बैठक में इस समिति के सदस्य रहे बिहार के शिक्षा मंत्री पी के शाही ने बताया कि किस तरह अभिभावकों, छात्रों और अध्यापकों ने कमेटी के सामने पिछली सरकार के फैसले पर रोष जताया। यह रिपोर्ट सभी राज्यों को सौंप दी गई है और इस पर अपनी लिखित राय 15 से एक महीने में देने के लिए कहा गया है। सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों ने मंत्रालय की राय पर सहमति जाहिर की। मगर साथ ही नो डिटेंशन पॉलिसी को हटाने की मांग भी की। स्मृति के मुताबिक शिक्षा मंत्रियों का कहना था कि इससे छात्रों के पढ़ने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि दसवीं बोर्ड की वापसी और नो डिटेंशन पॉलिसी को चरणबद्ध नहीं बल्कि एक बार में ही हटाने की मांग की गई है। मंत्रालय इस मुद्दे पर कोई जोखिम उठाने के पक्ष में नहीं है। इसलिए राज्यों से लिखित में राय देने के लिए कहा गया है। ताकि बाद में विपक्षी पार्टियों के राज्य इस मुद्दे को लेकर अपनी बात से पलट न जाए।
अमल इस सत्र से होगा या अगले सत्र से: अब जब दसवीं बोर्ड की वापसी और नो डिटेंशन पॉलिसी को हटाने पर मानव संसाधन मंत्रालय ने भी अपनी सहमति जताई है तो यह सवाल खड़ा हो गया है कि यह फैसला इस शैक्षिक सत्र से लागू होगा या फिर अगले सत्र से। सूत्रों का कहना है कि इसी सत्र से हटाने की मांग राज्यों के शिक्षा मंत्रियों ने की है। मगर मंत्रालय इसे लेकर अभी असमंजस में है। इन दोनों मुद्दों पर बदलाव करने की स्थिति में सरकार को शिक्षा के अधिकार में संशोधन के संसद की मंजूरी की जरूरत पड़ेगी। अगर इसी सत्र से हटाने को लेकर मंत्रालय फैसला लेता है तो सरकार को इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की नौबत आ सकती है क्योंकि संसद का शीत सत्र नवंबर में ही संभव है। 
साभार: अमर उजाला समाचार 
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