Sunday, August 2, 2015

सर्वे: देश के 25 फीसदी बच्चे ट्यूशन के भरोसे

सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही है। साथ ही लोगों का ट्यूशन पर खर्च भी बेहद ज्यादा बढ़ रहा है। देश के एक चौथाई बच्चे ट्यूशन के भरोसे कैरियर बना रहे हैं। इन छात्रों के अभिभावकों को सार्वजनिक शिक्षा पर ज्यादा भरोसा नहीं है। पश्चिम बंगाल, बिहार, त्रिपुरा, दिल्ली, चंडीगढ़, ओडिशा में सबसे अधिक बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी एनएसएसओ
की ओर से करवाए गए ‘सामाजिक उपभोग: शिक्षा सर्वेक्षण’ के मुताबिक निजी कोचिंग पर देश के नागरिक 11.60 फीसदी आय खर्च करते हैं। तकनीकी और पेशेवर शिक्षा के मुकाबले स्कूली शिक्षा के दौरान ट्यूशन पर ज्यादा खर्च हो रहा है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एनएसएसओ के पिछले और अभी के सर्वेक्षण के अध्ययन में पाया है कि सालों से निजी ट्यूशन पर खर्च कम होने का नाम नहीं ले रहा है। वर्ष 2007-08 में एनएससओ के 64वें चरण के सर्वेक्षण में निजी ट्यूशन पर खर्च 11.50 फीसदी था। जबकि 71वें चरण यानी जनवरी से लेकर जून, 2014 तक के सर्वेक्षण में इसे लेकर कोई खास अंतर देखने को नहीं मिला है। हालांकि, मंत्रालय अपनी रिपोर्ट में इस बात से संतोष जता रहा है कि निजी खर्च पर ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। खास बात है कि सामान्य कोर्स करने वाले खासकर स्कूली छात्र 15 फीसदी कोचिंग पर खर्च करते हैं। जबकि तकनीकी और पेशेवर शिक्षा ले रहे छात्र सिर्फ तीन फीसदी खर्च ट्यूशन पर करते हैं।
बिहार के छात्र अव्वल: बिहार में लड़के और लड़कियां ट्यूशन लेने में अव्वल हैं। राज्य में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं में प्रति हजार 672 लड़के और 631 लड़कियां कोचिंग ले रहे हैं।
यहां संख्या बेहद कम: मिजोरम, मेघालय, हिमाचल, तेलंगाना, नागालैंड और लक्षद्वीप में बेहद कम छात्र प्राइवेट कोचिंग ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश में प्राइवेट कोचिंग ले रहे छात्रों की संख्या (प्रति एक हजार) के मुताबिक प्राथमिक कक्षा में 122 पुरुष, 90 महिला, उच्च प्राथमिक में 137 पुरुष, महिला 109 तो माध्यमिक और उच्च माध्यमिक में पुरुष 386 और 183 महिलाएं प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं। चंडीगढ़ में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में 691 पुरुष और 696 महिलाएं कोचिंग ले रही हैं। जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा 425 और 488 हैं।  
14 लाख सरकारी स्कूलों में वैश्वीकरण के चलते सरकार ने जानबूझकर शिक्षा का स्तर गिराया है। इसके चलते देश के मुट्ठी भर स्कूल (केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और मॉडल स्कूलों) की कुछ बेहतर कर पा रहे हैं। निजी स्कूल इस स्थिति का लाभ उठाकर भ्रम फैला रहे हैं। जबकि सच यह है कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूल भी कुछ बेहतर नहीं हैं। -प्रो. अनिल सदगोपाल, शिक्षाविद  

साभार: अमर उजाला समाचार 

For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE . Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.