Sunday, May 17, 2015

चेतक जैसा घोड़ा न था, न होगा: महाराणा प्रताप जयंती पर विशेष

आगामी 20 मई को महाराणा प्रताप की 475वीं जयंती पर मेवाड़ शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके घोड़े के कुछ अछूते पहलुओं पर एक नज़र :
चें तक अरि ने बोल दिया, चेतक के भीषण वारों से।
कभी न डरता था दुश्मन की लहू भरी तलवारों से।

चेत करो, अब चेत करो, चेतक की टाप सुनाई दी।
भागो, भागो, भाग चलो, भाले की नोक दिखाई दी।
चेतक क्या बड़वानल है वह, उर की आग जला दी है।
विजय उसी के साथ रहेगी, ऐसी बात चला दी है।
हल्दीघाटी काव्य में श्याम नारायण पांडेय की ये पंक्तियां महाराणा प्रताप के प्राण प्रिय घोड़े चेतक को लेकर लोक राग की तरह पैठ चुकी हैं। हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप का अनूठा सहयोगी था चेतक। बाज नहीं, खगराज नहीं, पर आसमान में उड़ता था। इसीलिए नाम पड़ा चेतक। स्वामिभक्ति ऐसी कि दुनिया में वह सर्वश्रेष्ठ अश्व माना गया। प्रताप और चेतक का साथ चार साल रहा।
चेतक के मुंह में लगती थी हांथी की सूंड: चेतक की ताकत का पता इस बात से लगाया जा सकता था कि हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ तो चेतक ने अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के सिर पर पांव रख दिए और प्रताप ने भाले से मानसिंह पर संहारक वार किया। चेतक के मुंह के आगे हाथी कि सूंड लगाई जाती थी। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगी थी, तब चेतक प्रताप को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया, जिसे मुगल पार न कर सके। 
अरबी घोड़ा था चेतक: चेतक अरबी था। जब लाया गया, उसके साथ दो घोड़े और भी थे। प्रताप ने युद्ध क्षमता के हिसाब से घोड़ों की परख ली, जिसमें एक मारा गया। बचे दो में से चेतक ज्यादा फुर्तीला और बुद्धिमान था। प्रताप ने मुंहमांगी कीमत चुकाई। मेवाड़ी सेना के श्रेष्ठ अश्व प्रशिक्षकों के साथ प्रताप ने भी उसे प्रशिक्षित किया। तालमेल ऐसा कि ‘देख में दो लागतां, रखण देश री सींव, चेटक पातल जुद्द में, होय भिड्या इक जीव।’
हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ तो चेतक ने अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के सिर पर पांव रख दिए और प्रताप ने भाले से मानसिंह पर संहारक वार किया। मानसिंह का हाथी भयभीत होकर भाग खड़ा हुआ। उसी समय हाथी की सूंड में बंधी तलवार से चेतक का एक पांव बुरी तरह जख्मी हो गया, लेकिन दुश्मनों को छकाकर चेतक ने प्रताप को सुरक्षित कर दिया। 
बाज की तरह लांघ गया था 26 फीट का बरसाती नाला: पीछे मुगल सैनिक लगे तो चेतक ने बरसाती नाले को ऐसे लांघा मानो वह घोड़ा नहीं, कोई बाज हो। स्वामी की ऐसी रक्षा यह उदाहरण विश्व इतिहास में नायाब माना गया है। आगे जाकर इमली के एक पेड़ तले प्रताप रुके, जहां चेतक भी बेसुध होने लगा। यहीं से शक्तिसिंह ने प्रताप को अपने घोड़े पर भेजा और खुद चेतक के पास रुके। चेतक खोड़ा (लंगड़ा) हो गया, इसीलिए पेड़ का नाम भी ‘खोड़ी इमली’ हो गया। कहते हैं, हल्दीघाटी में इमली के पेड़ का यह ठूंठ आज भी है। चेतक युद्ध में एक वीर सैनिक ही था। दुश्मनों का संहार करता था। वह दौड़ता, सिमटता, जमता, उड़ता और दुश्मन की गर्दन तक जा पहुंचता। उसके फुर्तीलेपन से मुगल सैनिक अचंभित थे।
श्याम नारायण पांडेय ने ठीक ही लिखा है:

उड़ा हवा के घोड़े पर, हो तो चेतक सा घोड़ा हो, ले ले विजय, मौत से लड़ ले, जिसका ऐसा घोड़ा हो।
वह महाप्रतापी घोड़ा उड़, जंगी हाथी को हबक उठा। भीषण विप्लव का दृश्य देख भय से अकबर-दल दबक उठा।
अपने सेनापति से चेतक की महानता के किस्से सुनकर अकबर ने अरबी व्यापारियों से कई घोड़े ज्यादा कीमत देकर खरीदे, लेकिन कोई भी चेतक नहीं हो सकता था।

साभार: भास्कर समाचार
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