Wednesday, September 3, 2014

भारत के इन ऋषि-मुनियों ने न्यूटन, डाल्टन से पहले ही कर दी थीं ये खोजें

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भारतीय ऋषियों ने घोर तप के जरिए वेदों में छिपे गूढ़ ज्ञान से कुदरत के कई रहस्यों की खोज सदियों पहले ही कर ली थी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं, कुछ ऐसे ही ऋषियों के बारे में जिन्होंने कई ऐसी खोज की थीं जिन्हें आधुनिक विज्ञान ने प्रमाणित किया। आइए, जानते हैं ऐसे ही कुछ ऋषि-मुनियों और उनके आविष्कारों और खोजों के बारे में: 
भास्कराचार्य (गुरुत्वाकर्षण): आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण के रहस्य की खोज न्यूटन से कई सदियों
पहले भास्कराचार्य ने कर ली थी। भास्कराचार्य ने अपने ग्रंथ सिद्धांतशिरोमणि में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है। उन्होंने अपने ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणी के गोलाध्याय भुवनखंड में लिखा है:
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
आकृष्यते तत्पततीव भाति समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।।
अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियां संतुलन बनाए रखती हैं। 
ऋषि भरद्वाज (वायुयान): आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने की खोज कर डाली थी। इसलिए धर्म ग्रंथों के अनुसार ऋषि भरद्वाज को वायुयान का आविष्कारक माना जाता है। 
गर्गमुनि (विविध नक्षत्र): गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण और अर्जुन के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया। वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
ऋषि विश्वामित्र (प्रक्षेपास्त्र/ मिसाइल): ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। विश्वामित्र ने ही  प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले खोजी थी। विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया था। 
महर्षि सुश्रुत (शल्य चिकित्सा/ सर्जरी): शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई सुश्रुतसंहिता ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्य चिकित्सा भी करते थे। 
आचार्य चरक (विभिन घातक रोगों का इलाज): चरकसंहिता जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व त्वचा चिकित्सक भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीर विज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी। 
पतंजलि (कैंसर का इलाज): आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर है।आज इसका उपचार संभव है, लेकिन कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।  
बौद्धयन (त्रिकोणमिति): भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का समकोण समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया। 
आचार्य कणाद (परमाणु): ग्रंथों के अनुसार कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। जबकि आधुनिक विज्ञान के अनुसार अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने द्रव्य के परमाणु की खोज की थी। उन्होंने ही परमाणु की पहली परिभाषा दी थी, जिसमें उन्होंने बताया कि धूल के एक कण के साठवें हिस्से को परमाणु कहा जाता है। उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता यह भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ। 
साभार: भास्कर समाचार
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