Thursday, August 14, 2014

1947 से पहले के भारत की पांच अहम जगहें

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गुलाम भारत को आज़ाद भारत में तब्दील करने में कुछ जगहों ने खासी भूमिका निभाई है। आज भी इन जगहों का अपना  महत्व है और ये पर्यटन स्थल के रूप में अधिक पसंद की जाती हैं। हर जगह से हमारे पराधीन भारत की कोई न कोई याद जुड़ी हुई है,जो इसे खास बनाती है। इतिहास के पन्ने पलटते हुए आज हम इन जगहों के महत्व के बारे में जानते हैं:
लाल किला - स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष का साक्षी: हर 15 अगस्त की अल-सुबह एक ओर सूर्य उदय हो रहा होता है,वहीं दूसरी ओर मुगलकालीन लाल किले के शिखर पर तिरंगा लहराता नज़र आता है। साथ ही इसकी प्राचीर से प्रधानमंत्री देश की जनता को संबोधित करते हैं। स्वतंत्रता दिवस पर इस इमारत का इस्तेमाल देश की प्रगति बताने के लिए अवश्य किया जाता हो, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए गए संघर्ष में भी इसका अहम योगदान रहा है। 1857 की क्रांति की रणनीति अंतिम मुगल बादशाह शाह ज़फर द्वितीय के नेतृत्व में यहीं बनी, मगर अफसोस की वह पूरी न हो सकी। दिल्ली में पांचवे मुगल बादशाह शाहजहां ने साल 1648 में इस इमारत का निर्माण करवाया और इस इलाके को शाहजहांनाबाद नाम दिया। लाल पत्थरों से बने होने के कारण इस इमारत का नाम लाल किला पड़ा और आज यह इमारत यूनेस्को की वर्ल्ड हेरीटेज साइट में शामिल है। हर साल लगभग 25 लाख लोग इस इमारत का दीदार करते हैं। 1648 में इस इमारत का निर्माण दिल्ली में पांचवें मुगल बादशाह शाहजहां ने करवाया। 
काला पानी (सेल्युलर जेल) - फिरंगियों की दहशत का आइना: गुलाम भारत के समय काला पानी शब्द दहशत के लिए काफी था। आजीवन कारावास या फांसी की सजा पाए स्वतंत्रता सेनानियों को अंडमान निकोबार द्वीप स्थित सेल्युलर जेल में भेजा जाता था। इसकी शुरूआत 1857 की स्वतंत्रता क्रांति के बाद शुरू हुई, जब पहली बार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इस द्वीप पर ले जाया गया। जेल में 698 से ज़्यादा काल-कोठियां थीं, जो आज भी ब्रिटिश राज की ज़्यादतियों की गवाह हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इस सजा को समाप्त कर दिया गया। 1896 में पोर्ट-ब्लेयर स्थित सेल्युलर जेल का निर्माण हुआ। 
जलियांवाला बाग, अमृतसर(पंजाब) - क्रूरतम नरसंहार का चश्मदीद गवाह: 13 अप्रैल 1919 की एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को ज्वाला में तब्दील कर दिया। अमृतसर में लगे कर्फ्यू और दो नेताओं की गिरफ्तार के विरोध में बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में विरोध प्रदर्शन और भाषण का आयोजन किया गया। इसमें हजारों लोग शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान बाग के इकलौते दरवाज़े को घेरकर अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने निहत्थे लोगों पर गोली चालने का आदेश दे दिया, जिसमें 1500 से ज़्यादा लोग शहीद और हज़ारों घायल हुए। इसमें आज भी हजारों शहीदों की यादें सिमटी हुई हैं। 1961 में जलियांवाला बाग को मेमोरियल में तब्दील कर दिया गया। 
चंद्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद - देशभक्त आज़ाद का स्वाभिमान: ब्रिटिश राज के दौरान भारत में ऐसी बुहत-सी चीज़ों का निर्माण हुआ, जो किसी अंग्रेज को प्रसन्न करने के लिए बनीं। इलाहाबाद में 133 एकड़ में बना अल्फ्रेड पार्क भी उन्हीं में से एक है। स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस से मुठभेड़ करते हुए इस पार्क के अंदर घुस आए और पेड़ की आड़ लेकर उन्होंनें काफी देर ब्रिटिश पुलिस को छकाया। इसी जगह खुद को गोली मारकर उन्होंने आजीवन आजाद रहने का वचन पूरा किया। उनके नाम पर इस पार्क का नाम रखा गया। 1870 में प्रिंस अल्फ्रेड की भारत यात्रा के मौके पर इसे बनाया गया। 
साबरमती आश्रम,अहमदाबाद - आज़ादी की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण केंद्र: जुलाई 1917 में अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम की नींव रखी और यहीं से उनके सामुदायिक जीवन,खादी और ग्रामोघोग जैसे प्रयोगों की शुरूआत हुई। आश्रम से दांडी यात्रा पर निकलते वक्त गांधीजी ने प्रण लिया था कि पूर्ण स्वराज्य लिए बिना वे आश्रम नहीं लौटेंगे। दांडी यात्रा कर नमक कानून तोड़ने के बाद गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने के बाद 1936 में वे वर्धा के 'सेगांव' गए और 1940 में इसका नाम सेवाग्राम कर दिया। 1930 में साबरमती आश्रम से ही 241 मील की दांडी यात्रा की शुरूआत की।


साभार: भास्कर समाचार
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